25 दिसंबर 1927 ये वो ऐतिहासिक दिन है जब जातिवाद के कट्टर विरोधी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने अपने कई सौ समर्थकों के साथ मिलकर मनुस्मृतियो की प्रतियां जलाई थी। बाबा साहब का कहना था कि मनुस्मृति जातिवाद को बढ़ावा देता है, ये भेदभाव को सही बताता है, इस कारण इसका अनुसरण नही करना चाहिए। इस घटना को लगभग 90 साल से भी ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन फिर भी मनुस्मृतियों को लेकर विवाद आज भी खत्म नहीं हुआ है। एक बार फिर से मनुस्मृतियो पर विवाद हो रहा है। अब आखिर ऐसा क्या है इसमें जिसके कारण ये हमेशा विवादो में रहता है।
आखिर इन मनुस्मृति में है क्या?
मनुस्मृति के बारे में कहा जाता है कि इसे आदि पुरुष मनु ने लिखी थी लेकिन वही ये भी अवधारणाएं है कि ये दूसरी या फिर तीसरी शताब्दी के आसपास लिखी गई है। ये एक धर्म शास्त्र है जिसे विशेषकर राजा या फिर ब्राह्मणों के लिए लिखा गया था। इसमें 12 अध्याय है, जिसमे 2684 श्लोक हैं। मनुस्मृति में केवल ये बताया गया है कि ऊंची जाति या फिर ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति को किस तरह से अपना जीवन जीना चाहिए।
उन्हे कैसे अपनी जिम्मेदारियों का अनुसरण करना चाहिए। इसमें केवल विचार व्यक्त किए गए थे। इसमें शुद्रो के बारे में, उन्हे नीच होने को लेकर कोई बात जोर देकर नही बताई गई है। इसमें महिलाओं को कैसे रहना है, इसके बारे में बताया गया, जिस कारण इसे महिला विरोधी भी कहा जाता हैं।
मनुस्मृति धीरे धीरे विलुप्त हो गई थी, लेकिन अंग्रेजो ने इसका फिर से अनुवाद किया, और इसका इस्तेमाल जातिवाद और धर्मवाद के नाम पर लोगों को बांटने के लिए किया। जो लोगों की मानसिकता में रचने बसने लगी और ये समाज में बंटवारा करने का बड़ा कारण बना जो आज भी जारी है। जिसके खिलाफ आज भी दलित समाज लड़ रहा है।
क्या है मनुस्मृति पर विवाद ?
मनुस्मृति को एक ऐसी किताब की तरह प्रदर्शित किया गया है जैसे वो एक धार्मिक किताब है, और उसका अनुसरण करके ब्राह्मण समाज या फिर ऊंची जाति के लोग खुद को दलितों से अलग करते हैं। इसे दलित दमन का प्रतीक माना जाता है। इसे जातिवाद को बढ़ावा देने का एक जरिया बनाया गया है।
लेकिन आज में मनुस्मृति की बाते जातिवाद को या फिर बंटवारे को बढ़ावा देने के लिए नहीं है। एक तरफ दलित इसका विरोध कर रहे हैं तो वही दूसरी तरफ ऊंची जाति इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं और इसलिए मनुस्मृति पर रोक लगनी चाहिए। इसकी विचारों पर रोक लगनी चाहिए। ऐसे में अब सवाल ये है कि मनुस्मृति के नाम पर जो भेदभाव हो रहा है, और जो इसकी आड़ में दलितों का दमन हो रहा है। उसके बाद मनुस्मृति पर रोक लगनी चाहिए।