वैसे तो सिख आइडियोलोजी (विचारधारा) तलाक का समर्थन नहीं करती है। लेकिन एक भयावह सच्चाई ये भी है कि बाकी समुदायों की तरह सिखों के लिए भी तलाक एक सामाजिक रिएलिटी है।
गुरबाणी में सिखों के लिए तलाक ना देने की मान्यता है। इतिहास के मुताबिक, सिखों के गुरुओं ने कभी तलाक नहीं दिया। हालांकि उस समय में तलाक का कोई ऑप्शन ही नहीं होता था। क्योंकि उस समय पत्नियों के पास तलाक के बाद खुद को सहारा देने का कोई साधन नहीं होता था। अतीत में तलाक ना देने का एक तथ्य ये भी है कि अतीत में, महिलाएं पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर थीं। इसके अलावा पुराने जमाने में खुद का बचाव करना भी काफी चुनौतीपूर्ण होता था। जिस वजह से तलाक देने की कोई प्रथा नहीं थी।
सिखों में तलाक का नहीं है प्रावधान
हालांकि सिखों में तलाक लेने के लिए उन्हें हिंदू मैरिज एक्ट पर ही वापस आना पड़ता है। क्योंकि सिखों में तालाक के प्रावधान की उपस्थिति नहीं है। सिखों में जहां एक विचारधारा का मानना है कि सिख “रेहत मर्यादा” में तलाक के लिए कोई जगह नहीं है और इसलिए विवाह विधेयक में तलाक का कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए, दूसरे खंड का मानना है कि आनंद विवाह अधिनियम में तलाक का प्रावधान होना चाहिए ताकि सिख तलाक पाने के लिए फिर से हिंदू मैरिज एक्ट पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
आनंद कारज मैरिज एक्ट में हुए ये बदलाव
मालूम हो कि संसद के बजट सत्र के दौरान सिख संप्रदाय के लोगों की शादी के लिए बने आनंद कारज मैरिज एक्ट, 1909 में संशोधन पारित किया गया था, जिसे राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी मंजूरी दे दी। ऐसे में सिख संप्रदाय के लोगों की शादी की रजिस्ट्री हिंदू मैरिज एक्ट के तहत न होकर आनंद कारज मैरिज एक्ट, 2012 के तहत होता था। लेकिन बाद में इस एक्ट में बदलाव किया गया और और 1955 में उसे कैंसिल कर दिया गया और चार समुदायों हिंदू, सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म को जोड़ते हुए सिखों को भी हिंदू विवाह अधिनियम में शामिल कर लिया गया।
सिख में मैरिज सर्टिफिकेट हिंदू धर्म का होता है
हिंदुओं में जहां शादी के समय सात फेरे लिए जाते हैं, वहीं सिखों में उससे कम केवल चार फेरे लिए जाते हैं। इसके अलावा, सिख संप्रदाय के जो लोग विदेश जाते हैं, उन्हें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दिए गए शादी के मैरिज सर्टिफिकेट को लेकर कई समस्याएं होती हैं। मसलन, उनके पासपोर्ट पर सिख लिखा होता है, जबकि मैरिज सर्टिफिकेट हिंदू धर्म का होता है। सिख संप्रदाय के संतों में सहमति नहीं बन पाने के कारण इस नए अधिनियम में तलाक का प्रावधान अभी नहीं रखा गया है। ऐसे में उन्हें तलाक लेने के लिए हिंदू मैरिज एक्ट पर ही वापस आना पड़ता है।
लेकिन आज की कठोर सच्चाई ये भी है कि बाकी समुदायों की तरह तलाक सिखों के लिए भी एक सामाजिक वास्तविकता है। हालांकि इस पर आपका क्या कहना है और आपकी क्या राय है, हमें कमेंट कर जरूर बतायें।