बात धरती मां की हो, या फिर मां-बेटियों की… दोनों की ही रक्षा के लिए सर कटाने तक का जज्बा रखने वाले होते हैं सिख धर्म के जांबाज। कहा जाता है कि ये एक बार जो वचन देते हैं उसे अंतिम दम तक निभाते हैं। एक ऐसा ही वचन निभाया था बाबा दीप सिंह जी ने। जिन्होंने गुरुद्वारा हरिमंदिर साहिब में ये वचन दिया था कि उनका सिर हरिमंदिर साहिब में ही गिरा था, और ये वचन उन्होंने सिर कटने के बाद भी निभाया। वो अपने कटे सिर को लेकर मीलों दूर आए और अंत में हरिमंदिर साहिब में आकर हमेशा के लिए वीरगति प्राप्त की। आज हम आपको भारत मां के एक ऐसे ही लाल की कहानी सुनाने जा रहे है, जिस पर हर एक सिख गर्व करता है।
ये बात करीब 17वीं सदी की है। मुगलों के खिलाफ गुरु गोबिंद सिंह जी युद्ध छेड़ चुके थे। इसी दौरान अमृतसर के पहुविंड गांव में भगतु सिंह अपनी पत्नी जिउनी के साथ रहा करते थे। भगतु सिंह किसान थे, और घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन फिर भी भगतु खुश न थे, क्योंकि इन सभी सुखों को देखने वाला घर का चिराग ही नहीं था। दोनों संतानहीन थे। दोनों हर दरबार में मत्था टेकते और एक औलाद देने की भीख मांगते, लेकिन इसी दौरान उन्हें संत मिले जिन्होंने ये भविष्यवाणी की कि जल्द उनके घर में एक यशस्वी बालक होगा, जो भविष्य में ऐसे काम करेगा, जिससे उसका नाम चारों दिशा में फैलेगा। महात्मा ने बच्चे का नाम दीप रखने के लिए कहा था।
26 जनवरी 1682 के दिन भक्तु सिंह के घर एक बेटे ने जन्म लिया,जिसका नाम रखा गया दीप सिंह। मां बाप की आंखों के तारें थे दीप सिंह। उनकी जिंदगी एक आम बच्चे की तरह ही कट रही थी, लेकिन जब वो 12 के हुए तो उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव हुआ। उनके माता पिता उन्हें आनंदपुर साहिब ले गए, जहां पहली बार उनकी मुलाकात गुरु गोबिंद सिंह जी से हुई। गुरु जी ने देखते ही ये पहचान लिया था कि वो बालक किसी महान मकसद से दुनिया में आया है। गुरु जी ने दीप सिंह को कुछ दिन आनंदपुर साहिब में रखने के लिए उनके माता पिता से कहा। दीप सिंह के माता पिता मान गए, आनंदपुर साहिब में रहते हुए दीप सिंह ने कई भाषाएं सीखी। साथ ही उन्हें घुड़सवारी करना और तलवार बाजी के भी गुण गुरु जी से सीखे।
18 साल के होते ही गुरु जी ने दीप सिंह जो को अमृतपान करवाया और शपथ ली। लेकिन इसी बीच दीप सिंह के माता पिता उन्हें लेने पहुंचे और कहा कि वो अब दीप सिंह को गृहस्थ जीवन जीते देखना चाहते है। गुरुजी की आज्ञा लेकर दीप सिंह गांव आ गए, जहां उनकी शादी हुई।
लेकिन कुछ समय बाद दीप सिंह जी को गुरु जी के आनंदपुर साहिब को छोड़ने और उनके परिवार के बिछड़ने की खबर मिली। दीप सिंह ये सुनते ही गुरु जी की तलाश में निकल गए और काफी तलाशने के बाद दोनों की तलवंडी के दमदमा साहिब में मुलाकात हुई। वहां उन्हें पता चला कि किस तरह से दोनों बड़े साहिबजादे चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए और दोनों छोटे साहिबजादों को सरहिंद में वजीर खान ने बड़ी ही बेरहमी से कत्ल कर दिया।
दीप सिंह लगातार मुगलों के खिलाफ एक सैना तैयार करने में लगे थे, इसी दौरान 1755 में अहमद शाद अब्दाली के सेनापति जहान थान ने भारत में करीब 15 बार लूट मचाई थी, और वो लूट के साथ साथ भारत से महिलाओं को भी बंदी बनाने के लिए ले जा रहा था। लेकिन दीप सिंह को जब पता चला तो उन्होंने जहान खान को बीच में रोक दिया। उन्होंने जहान खान से सारा लूटा हुआ खजाना तो वापिस लिया ही, साथ ही सभी औरतों को भी बरी करवा दिया। 1757 में गुस्साए अब्दाली मे सिखों को खत्म करने की कसम खाई और हरिमंदिर साहिब को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। दीप सिंह को पता चला तो वो सेना के साथ हरिमंदिर साहिब पहुंचे, जहां उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि उनका सिर हरिमंदिर साहिब गुरुद्वारे में ही गिरेगा।
13 नवंबर 1857 के दिन अमृतसर के गोहरवाल गांव में अब्दाली की सेना और बाबा दीप सिंह का युद्ध हुआ। अब्दाली के सेना के कमांडर जमाल खान ने बाबा पर हमला कर दिया, लेकिन 75 साल के बाबा दीप सिंह 15 किलो की तलवार से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने शुरु कर दिए। जमाल खान और बाबा के बीच भयंकर युद्ध हुआ, और दोनों ने एक साथ एक दूसरे के सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन इससे पहले की बाबा का सिर जमीन पर गिरता, एक सैनिक ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने हरिमंदिर साहिब में ये वचन दिया था कि उनका सिर वहीं गिरेगा। बाबा ने ये सुनते ही अपना सिर अपने हाथों पर रख लिया और वो ऐसे ही लड़ते हुए हरिमंदिर पहुंचे। जहां उन्होंने वचन को निभाया और अपना सिर हरिमंदिर साहिब में अर्पित करके वीरगति हासिल की। बाबा दीप सिंह को आज भी महिलाओं का रक्षक माना जाता है। केवल सिख धर्म के लोग ही नहीं बल्कि सभी बाबा जी के अदम्य साहस के लिए उन्हें प्रणाम करते है।