Somnath Temple History: भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत में सोमनाथ मंदिर का विशेष स्थान है। यह न सिर्फ आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय आत्मबल और पुनर्निर्माण की जिजीविषा का भी प्रतीक है। जब भी इस मंदिर की चर्चा होती है, तो सबसे पहले इसके 17 बार तोड़े जाने और हर बार फिर से खड़े होने की कहानी सामने आती है। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति और अस्मिता का साक्षात प्रमाण है।
पौराणिक और धार्मिक महत्व- Somnath Temple History
सोमनाथ को बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला और सबसे प्राचीन माना जाता है। इसे ‘सोमनाथ’ यानी ‘चंद्रमा का स्वामी’ कहा गया है क्योंकि मान्यता है कि चंद्र देव ने भगवान शिव की तपस्या कर यह मंदिर बनवाया था। स्कंद पुराण, शिव पुराण और श्रीमद्भागवत जैसे ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। यह स्थान ‘प्रभास तीर्थ’ के नाम से भी प्रसिद्ध है।
मंदिर का निर्माण – चार चरणों में
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सोमनाथ मंदिर का निर्माण चार अलग-अलग युगों में चार रूपों में हुआ:
- सोने से – भगवान सोम ने
- चांदी से – सूर्य देव (रवि) ने
- चंदन से – श्रीकृष्ण ने
- पत्थर से – राजा भीमदेव ने
हर युग में इस मंदिर का स्वरूप बदला लेकिन श्रद्धा और भव्यता हमेशा बनी रही।
इतिहास में बार-बार विध्वंस और पुनर्निर्माण
सोमनाथ मंदिर का इतिहास विदेशी आक्रमणों और विध्वंस से जुड़ा हुआ है, लेकिन हर बार भारत के राजाओं और आम लोगों ने इसे फिर से भव्य रूप में खड़ा किया।
- 1025-26 में सुल्तान महमूद गजनवी ने इस मंदिर पर हमला कर इसे लूटा और ध्वस्त किया।
- इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।
- 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर अधिकार किया, तो मंदिर को फिर से तोड़ा गया।
- इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर को कुल 17 बार नष्ट किया गया और हर बार इसका पुनर्निर्माण हुआ।
- अन्य हमलावरों में अल-जुनैद, अलाउद्दीन खिलजी, औरंगजेब जैसे नाम भी शामिल हैं।
वर्तमान सोमनाथ मंदिर – स्वतंत्र भारत का प्रतीक
आज जो सोमनाथ मंदिर हमें दिखाई देता है, उसका निर्माण 1947 के बाद भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में हुआ। सरदार पटेल ने इस ऐतिहासिक मंदिर के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया और महात्मा गांधी से परामर्श लिया। गांधी जी ने सार्वजनिक दान से मंदिर निर्माण का सुझाव दिया।
पटेल की मृत्यु के बाद, मंदिर निर्माण का कार्य के.एम. मुंशी ने संभाला। 1995 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। यह मंदिर आज भी राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का उदाहरण है।
वास्तुकला और विशेषताएं
- शैली: कैलाश महामेरु प्रसाद वास्तु शैली में निर्मित
- शिखर की ऊंचाई: 155 फीट
- कलश: 10 किलो वजन का स्वर्ण कलश
- ध्वजदंड: 27 फीट ऊंचा और प्रतिदिन बदला जाता है
- ‘आभास रेखा’: मंदिर से दक्षिण ध्रुव तक एक सीधी रेखा जाती है जिसके बीच कोई भू-भाग नहीं है
यात्रा संबंधित जानकारी
कैसे पहुँचें
- रेलवे स्टेशन: वेरावल (5 किमी)
- हवाई अड्डा: दीव (80 किमी) या राजकोट (200 किमी)
- सड़क मार्ग: गुजरात के प्रमुख शहरों से सीधी बस और टैक्सी सेवा
बेहतर समय
- नवंबर से फरवरी: सुहावना मौसम
- श्रावण मास व महाशिवरात्रि: भक्तों की भारी भीड़
रहने की सुविधा
- धर्मशालाएं, होटल्स, गेस्ट हाउस और शुद्ध शाकाहारी भोजन की अच्छी व्यवस्था
सोमनाथ मंदिर न केवल भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है, बल्कि यह संघर्ष, पुनर्निर्माण और आत्मबल की मिसाल भी है। यह मंदिर बताता है कि कोई शक्ति आस्था को मिटा नहीं सकती। जो मंदिर 17 बार टूटकर भी खड़ा रहा, वह आने वाली पीढ़ियों को धैर्य, समर्पण और साहस का पाठ पढ़ाता रहेगा।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेड्रिक न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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