शादी को लेकर हर धर्म के अपने अपने रीति रिवाज होते हैं, जिनको वो फॉलो करते हैं। सिख धर्म में भी ऐसा ही है। सिख धर्म के लोग अपने रीति रिवाज के हिसाब से ही शादी करते हैं। हिंदू धर्म की शादियों में 7 फेरों का तो काफी महत्व है। 7 फेरों के बिना शादी अधूरी मानी जाती हैं। वहीं सिख धर्म की परंपरा अलग है। सिख धर्म में 7 की जगह शादी में केवल 4 ही फेरे लिए जाते हैं। इसके पीछे की वजह क्या है? साथ ही साथ इन 4 फेरों का मतलब क्या है? आइए इसके बारे में जान लेते हैं…
सिख समुदाय की शादी में 4 फेरे लेकर ही विवाह पूरा माना जाता हैं। इन फेरों को पंजाबी में ‘लावा’ भी कहते हैं। शादी और फेरों की इस रस्म को ‘आनंद कारज’ कहा जाता है। सिख धर्म में शादियां दिन में होती हैं। आनंद कारज विवाह काफी अलग होते हैं। इनमें लग्न, मुहूर्त, शगुन-अपशगुन जैसी चीजें मायने नहीं रखती। सिख धर्म के जो लोग आनंद कारज करते हैं वो ये मानते हैं कि उनके लिए हर दिन पवित्र होता है।
आनंद कारज विवाह में दूल्हे को गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष बैठाया जाता है और फिर दुल्हन उसके बायीं ओर आकर बैठती हैं। शादी किसी भी अमृतधारी सिख द्वारा कराई जाती हैं। वो दूल्हा-दुल्हन को विवाह का महत्व, निभाए जाने वाले कर्तव्यों और सिख सिद्धांतों के हिसाब से जीवन जीने के बारे में बताते हैं। इसके बाद सिख दंपत्ति गुरु ग्रंथ साहिब के सामने झुकते हैं।
परंपरा के अनुसार दुल्हन के पिता पगड़ी का एक सिरा दूल्हे के कंधे पर रखते हैं और दूसरा सिरा दुल्हन के हाथ में देते है। इसके बाद शुरू होते हैं फेरे। सिख समुदाय में दूल्हा-दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब को बीच में रखकर उसके चारों ओर 4 फेरे लेते हैं। पहले फेरे में जोड़े को नाम जपते हुए सतकर्म की सीख दी जाती है। वहीं दूसरे फेरे में सच्चे गुरु को पाने का रास्ता दिखाया जाता है। तीसरे फेरे में संगत के साथ गुरु की बाणी बोलने की सीख दी जाती है। इसके अलावा चौथे और अंतिम फेरे में मन की शांति पाने के शब्द कहे जाते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब के चार लावा लेने के साथ श्लोक भी पढ़े जाते हैं।