नॉन वेज यानी मांस को लेकर अलग अलग धर्म के अपने अपने विचार हैं। क्रिस्चन और मुसलमानों में मांस खाना आम बात है। तो वहीं हिंदू धर्म में मांस खाने को पाप के सामन माना जाता है। बात सिख धर्म के बारे करते हैं। क्या सिख धर्म के लोगों को मास खाना चाहिए? इसको लेकर गुरु नानक देव जी के क्या विचार थे? आज हम इसके बारे में ही जानेंगे…
सिख धर्म में मांस खाने को लेकर काफी कंफ्यूजन हैं। कुछ लोग मांस खाने को सही मानते हैं, तो कुछ नहीं। मांस खाने को लेकर गुरु नानक देव के विचारों को जान लेते हैं। एक बार की बात है जब गुरु नानक देव जी कुरुक्षेत्र की यात्रा पर गए थे। यहां मांस खाने को लेकर ही एक पंडित के साथ ही बहस हो गई थी। तब गुरु नानक देवी जी ने बड़ा ही शानदार जवाब दिया।
गुरु नानक देव जी ने कहा पंडित, जो मनुष्य है वो मां से पैदा होता है। जब वो मां के गर्भ में होता है, तो मां का मांस खाता है। वहीं उसको खुराक के तौर पर मिलता है, जिसे खाकर वो अपना जीवन शुरू करता है। जब मनुष्य मां के गर्भ से बाहर आता है, तो वो स्तन रूप में मांस खुराक मिलती है। जीवन की शुरूआत से ही मांस मनुष्य के साथ जुड़ जाता है, तो तुम कैसे कह सकते हो कि वो एक शाकहारी है। गुरु नानक देव जी ना तो मांस खाने के पक्ष में हैं ना ही इसके खिलाफ हैं। वो नॉनवेज खाने को कहते भी नहीं हैं और ना ही ऐसा करने से रोकते हैं। उनका कहना हैं कि ये इंसान की अपनी मर्जी होती हैं।
सिखों की पवित्र पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब में मांस खाने को लेकर बहस करना मूर्खता बताया गया है। इसमें कहा गया है कि केवल मूर्ख ही ये बहस करते हैं कि मांस खाया जाया या नहीं। कौन परिभाषित कर सकता है कि कौन-सी चीज मांस हैं और कौन-सी नहीं? कौन जानता है, पाप किसमें है, शाकाहारी होने में या एक मांसाहारी होने में?”
सिख धर्म में मांस खाने का निर्णय व्यक्ति पर छोड़ दिया गया है। हालांकि सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह ने अमृतधारी सिखों या जो सिख रेहत मर्यादा का पालन करते हैं, उन्हें कुत्था मांस या वो मांस जो कर्मकांड के तहत पशुओं को मारकर प्राप्त किया गया हो, उसे खाने से मना करते हैं। “अमृतधारी” जो कुछ सिख संप्रदायों जैसे अखंड कीर्तनी जत्था , दमदमी टकसाल , नामधारी, से संबंधित हैं, वो मांस और अंडे के सेवन के सख्त खिलाफ हैं।