Sadhvi Brahma Giri: प्रयागराज में महाकुंभ शुरू होने वाला है और इसके साथ ही नागा साधुओं का आगमन हो चुका है। यह अद्भुत आयोजन 45 दिनों तक चलेगा, जहां आध्यात्म, संस्कृति और परंपरा की झलक देखने को मिलेगी। इस बार महाकुंभ में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति चर्चा का केंद्र बनी हुई है। महिला नागा साधु न केवल कठिन तपस्वी जीवन जीती हैं, बल्कि उनकी उपस्थिति इस समुदाय को और भी रहस्यमयी और रोचक बनाती है।
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कौन थी साध्वी ब्रह्मा गिरी? (Sadhvi Brahma Giri)
वहीं, साध्वी ब्रह्मा गिरी एक ऐसी महिला नागा साधु थीं, जिन्हें भारत में नागा साधुओं की परंपरा में एक विशेष स्थान प्राप्त है। वह पहली और एकमात्र महिला नागा साधु थीं, जिन्हें सार्वजनिक रूप से नग्न रहने की अनुमति दी गई थी। यह अनुमति उन्हें हिंदू परंपरा के अनुसार नागा साधुओं के कठोर नियमों और साधना के तहत दी गई थी।
साध्वी ब्रह्मा गिरी की विशेषता
नग्न रहने की अनुमति:
साध्वी ब्रह्मा गिरी को हिंदू धार्मिक परंपराओं और नागा साधुओं के नियमों के तहत नग्न रहने की अनुमति मिली थी। यह एक ऐसा सम्मान है जो केवल पुरुष नागा साधुओं को ही दिया जाता है।
नागा साधुओं की परंपरा:
नागा साधु बनने के लिए साध्वी ब्रह्मा गिरी ने भी कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य का पालन किया। नागा साधु परंपरा में उनका योगदान और उनकी आध्यात्मिक साधना महत्वपूर्ण मानी जाती है।
महिला नागा साधुओं के लिए प्रेरणा:
साध्वी ब्रह्मा गिरी महिला नागा साधुओं के लिए एक प्रेरणा हैं। उनके जीवन और साधना ने यह सिद्ध किया कि महिलाएं भी कठोर साधना और नागा साधु परंपरा में अपनी जगह बना सकती हैं।
परंपरा का बदलाव:
साध्वी ब्रह्मा गिरी के बाद किसी भी महिला नागा साधु को नग्न रहने की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें गेरुए रंग का बिना सिला वस्त्र पहनने का नियम लागू किया गया, जो अब सभी महिला नागा साधुओं के लिए अनिवार्य है।
कौन होती हैं महिला नागा साधु?
महिला नागा साधु आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने सांसारिक जीवन का त्याग करती हैं। इन साध्वियों को एक विशेष प्रक्रिया से गुजरना होता है, जिसमें उन्हें 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। इस कठिन साधना में सफल होने के बाद ही उन्हें नागा साधु बनने का अधिकार मिलता है।
महिला नागा साधुओं का पूरा जीवन भगवान और तपस्या के लिए समर्पित होता है। उन्हें सांसारिक जीवन छोड़कर अग्नि के सामने कठिन तपस्या करनी होती है, और खुद का ही पिंडदान करना पड़ता है। इसके अलावा महिलाओं को साधु बनने के लिए अपने सिर के बाल मुंडवाने होते हैं।
नागा साधुओं का इतिहास और स्थापना
नागा साधुओं की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी। इन साधुओं को हिंदू धर्म के सैनिक कहा जाता है, जो धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए समर्पित होते हैं। यह परंपरा पुरुष और महिला दोनों साधुओं के लिए समान रूप से कठोर है।
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