सैकड़ों सालों से जाति की ऊंच नीच में समाज फंसा हुआ है। खासकर अगर जाति की बात करें तो दलितों का जिक्र तो सबसे पहले होता है, जो जाति के जंजाल से मुक्ति की चाह में हिंदू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म की तरफ जाते हैं। सवाल ये है कि क्यों दलित हिंदू धर्म छोड़ते हैं? किस हालत पर आकर उन्हें धर्म बदलने की जरूरत पड़ती है? इसके परिस्थितियों के बारे में बात करेंगे।
14 अप्रैल 1891 को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर महू में एक दलित हिंदू परिवार में पैदा हुए। हिंदू धर्म में दलितों के साथ जो भेदभाव और छुआछूत का भाव था उससे वो काफी दुखी थे, जिसके अगेंट्स संघर्ष में उन्होंने कई कई तरह के कदम उठाए। आखिर में उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को लाखों दलितों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया।
आखिर कौन सी ऐसी सिचुएशन आ जाती होगी कि नौबत धर्म परिवर्तन तक आ जाती है। तो शायद होता ये होगा कि हिंदू समाज में बराबरी का हक न मिलने पर दलित अक्सर टूटे मन से धर्म बदल लेते होंगे। जब जब अंबेडकर जयंती आती है, तो हर साल ही लाखों लोग बौद्ध धर्म में दीक्षित हो जाते हैं।
अगर बात महाराष्ट्र की करें तो नवबौद्ध वहां पर काफी ज्यादा हैं। अब उत्तर प्रदेश और बिहार के काफी सारे दलित खुद को बौद्ध धर्म से जुड़ाव स्थापित करने लगे हैं। ऐसा करने के पीछे कई कई कारण हो सकते हैं जैसे कि जातिवाद, भेदभाव और छुआछुत। ऐसा काफी कम होता है कि विचार दर्शन में आए बदलाव की वजह से कोई धर्म बदलता हो।
जानकारों के मुताबिक धार्मिक व्यवस्था में चेंजेज लाए बिना बस लीगली सामाजिक या धार्मिक लेवल पर दलित उत्पीड़न का खात्मा किया नहीं जा सकता है। दलित उत्थान में हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था ही सबसे बड़ी रुकावट है। जागरूक दलितों को शायद ऐसा लगने लगा है कि हिंदू धर्म को छोड़ देना ही सही ऑप्शन है।
अगर राजनीतिक दलों की बात करें तो दलितों का बड़ा वोट बैंक होने से ज्यादा नहीं है। कुछ तो वोट बैंक की दलाली करने लगते हैं तो कुछ दलित अपने आत्मसम्मान के लिए पीड़ा झेलते रहते हैं और आखिर में बौद्ध धर्म अपना लेते हैं। एक अनुमान कहता है कि बौद्ध धर्म के लोगों की देश में कुल जनसंख्या जो है वो 0.84 करोड़ है इनमें ज्यादातर तो नवबौद्ध यानि हिंदू दलितों से बौद्ध बने लोग हैं। अकेले वहां करीब करीब 60 लाख बौद्ध हैं, जिन पर अंबेडकर का खास असर है और तो और देश के बाकी राज्यों में भी हिंदू कर्मकांडों को लाखों लोगों ने छोड़ दिया है।
वैसे हिंदू से बौद्ध बने दलितों की शैक्षिक और आर्थिक हालात पहले से अच्छा है। हालांकि आंतकित तरीके से इन धर्म बदल चुके लोगों की स्थिति कैसी है ये जानना एक अलग विषय है। इस बात से तो कोई भी इनकार नहीं करेगा कि कभी दलितों के साथ तो कभी समाज की महिलाओं के साथ किसी न किसी बात को जरिया बनाकर हिंदू धर्म में भेदभाव किया जाता रहा है। अगर यही चला तो इसके परिणाम काफी अलग तरह के हो सकते हैं।