Premanand Ji Maharaj Real Name: प्रेमानंद जी महाराज, जिन्हें राधारानी के परम भक्त और वृंदावन के संत के रूप में जाना जाता है, आज के समय के प्रसिद्ध संतों में से एक हैं। उनके भजन और सत्संग में दूर-दूर से भक्तगण आते हैं। उनकी आध्यात्मिक यात्रा और भक्ति की गहराइयों ने अनगिनत लोगों को प्रभावित किया है।
भोलेनाथ के दर्शन और भक्ति मार्ग की शुरुआत- Premanand Ji Maharaj Real Name
कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने स्वयं प्रेमानंद जी महाराज को दर्शन दिए, जिसके बाद उन्होंने घर का त्याग कर वृंदावन की ओर रुख किया। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि प्रेमानंद जी महाराज ने साधारण जीवन त्यागकर भक्ति का मार्ग क्यों अपनाया? आइए जानते हैं उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी।
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प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय
प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके पिता श्री शंभू पांडे और माता श्रीमती रामा देवी थीं। उनके दादा जी पहले ही संन्यास ग्रहण कर चुके थे, और उनके परिवार में भक्ति का माहौल था। उनके पिता और बड़े भाई भी प्रतिदिन भगवत पाठ किया करते थे।
बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक झुकाव
प्रेमानंद जी महाराज ने पांचवीं कक्षा से ही गीता पाठ करना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे उनकी रुचि आध्यात्मिकता में बढ़ने लगी। जब वे 13 वर्ष के हुए, तो उन्होंने ब्रह्मचारी बनने का संकल्प लिया और घर त्यागकर संन्यासी जीवन अपना लिया।
संन्यास के शुरुआती दिनों में उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया। वे वाराणसी में रहे और गंगा में स्नान तथा ध्यान करने लगे। दिन में सिर्फ एक बार भोजन करने और कई दिनों तक भूखे रहने का कठिन तप उन्होंने अपनाया।
संन्यास जीवन के दौरान कठिन तपस्या
वाराणसी में वे तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा की पूजा किया करते थे। वे भोजन के लिए कभी भिक्षा नहीं मांगते थे, बल्कि कुछ समय बैठते थे और यदि कोई भोजन दे देता, तो उसे ग्रहण कर लेते। कई बार वे सिर्फ गंगाजल पीकर ही रहते थे।
वृंदावन आने की चमत्कारी घटना
प्रेमानंद जी महाराज के वृंदावन आने की यात्रा एक चमत्कारी घटना के रूप में जानी जाती है। एक दिन एक अपरिचित संत ने उनसे संपर्क किया और उन्हें हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा द्वारा आयोजित चैतन्य लीला और रासलीला के आयोजन में आमंत्रित किया। पहले महाराज जी ने आने से मना कर दिया, लेकिन संत के बार-बार आग्रह पर वे आयोजन में शामिल हुए।
चैतन्य लीला और रासलीला देखकर महाराज जी अभिभूत हो गए। एक महीने तक चला यह आयोजन समाप्त होने के बाद उन्हें इसकी पुनः अनुभूति की तीव्र इच्छा होने लगी। जब वे उसी संत से मिले, तो उन्होंने महाराज जी को वृंदावन आने की सलाह दी, जहां रोज रासलीला का आनंद लिया जा सकता था। इस प्रेरणा से महाराज जी वृंदावन पहुंचे और श्रीकृष्ण-राधा की भक्ति में लीन हो गए।
वृंदावन में भक्ति का विस्तार
वृंदावन आने के बाद प्रेमानंद जी महाराज राधा वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़े और वहां अपनी भक्ति को और अधिक गहराई दी। उन्होंने श्रीकृष्ण और राधारानी की सेवा को ही अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बना लिया।