Premanand Ji Maharaj: वृंदावन के प्रसिद्ध प्रेमानंद महाराज ने संत बनते समय तीन प्रमुख कसमें खाई थीं, जिनमें से एक कसम उन्होंने खुद ही तोड़ दी। महाराज ने यह भी बताया कि आखिर उन्होंने वह कसम क्यों तोड़ी और आज भी बाकी दो व्रतों पर कैसे अडिग हैं। आइए जानते हैं, कौन-सी थीं वे तीन कसमें और किस वचन को निभाने में वे आज भी दृढ़ हैं।
1. कभी अपने पास पैसा नहीं रखूंगा- Premanand Ji Maharaj
प्रेमानंद महाराज ने संत बनने के समय पहला संकल्प लिया था कि वह कभी भी अपने पास पैसा नहीं रखेंगे।
उन्होंने कहा, “मेरी पहली कसम थी कि मैं कभी अपने पास एक पैसा नहीं रखूंगा। आज भी मैं इस कसम पर पूरी तरह कायम हूं। सत्संग में जो भी धन आता है, मैं उसे हाथ तक नहीं लगाता।”
उनके अनुसार, जो भी धन प्राप्त होता है, वह सीधे धार्मिक कार्यों और समाज सेवा में लगा दिया जाता है।
2. कोई संपत्ति मेरे नाम पर नहीं होगी
महाराज का दूसरा वचन यह था कि उनके नाम पर कभी कोई संपत्ति नहीं होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी मकान, प्लाट या जमीन का मालिकाना हक उन्होंने अपने नाम पर दर्ज नहीं कराया।
उन्होंने कहा, “मेरी दूसरी कसम यह थी कि मेरे नाम पर कोई संपत्ति रजिस्टर्ड नहीं होगी। आज भी मैं इस वचन पर कायम हूं।”
उनके अनुसार, संत का जीवन निर्लोभ और त्यागमय होना चाहिए और संपत्ति का मोह संन्यास के मार्ग में बाधा बन सकता है।
3. कभी किसी को शिष्य नहीं बनाऊंगा (पर गुरु के आदेश पर तोड़नी पड़ी)
तीसरी कसम प्रेमानंद महाराज ने यह खाई थी कि वह कभी किसी को अपना शिष्य नहीं बनाएंगे।
लेकिन आगे चलकर उन्हें गुरु के आदेश पर यह संकल्प तोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा,
“मेरी तीसरी कसम थी कि मैं कभी किसी को शिष्य नहीं बनाऊंगा। लेकिन मेरे गुरु के आदेश के कारण मुझे यह संकल्प तोड़ना पड़ा और इसी वजह से आज मेरे इतने सारे शिष्य हैं।”
उन्होंने बताया कि गुरु आज्ञा सर्वोपरि होती है, और उनके मार्गदर्शन में ही उन्होंने अपने शिष्यों को स्वीकार किया।
शिष्य ही हैं उनके सहारे
प्रेमानंद महाराज का कहना है कि वह आज भी अपनी त्याग और संन्यास की जीवनशैली पर अडिग हैं।
- जो फ्लैट वह उपयोग कर रहे हैं, वह उनके शिष्यों द्वारा दिया गया है।
- जिस गाड़ी में वह सफर करते हैं, वह भी शिष्य की दी हुई है।
- न मकान, न वाहन, न ही अन्य संपत्ति – किसी भी चीज़ पर उनका स्वामित्व नहीं है।
उन्होंने स्पष्ट किया, “जो कुछ भी मुझे मिला है, वह मेरे शिष्यों का प्रेम और भक्ति है। मेरा नाम किसी भी संपत्ति पर दर्ज नहीं है।”
संन्यासी जीवन का सच्चा उदाहरण
प्रेमानंद महाराज के इन व्रतों और त्याग ने उन्हें न केवल एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक बल्कि सच्चे संन्यासी का प्रतीक भी बना दिया है। जहां आज के समय में कई संतों पर संपत्ति और धन संचय के आरोप लगते हैं, वहीं प्रेमानंद महाराज ने पैसे और संपत्ति से दूर रहने का व्रत लेकर सच्चे त्याग की मिसाल पेश की है।