हिंदू धर्म के पावन त्योहार में से एक नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समर्पित हैं। इस दिन मां के भक्त उनके इसी स्वरूप की पूजा करते हैं। माना जाता हैं मां कुष्मांडा ने ही संसार की रचना की। मान्यताओं के मुताबिक जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थीं और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तो तब देवी के इस स्वरूप द्वारा ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ।
कष्ट-रोगों से मुक्ति दिलाती हैं मां
मां कुष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं, इसलिए इनको देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं। वहीं आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है।
मां कुष्मांडा अपने भक्तों के कष्ट रोग, शोक संतापों का नाश करती हैं। इसलिए इन्हें दुख को हरने वाली मां भी कहा जाता हैं। मां अपने भक्तों को आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। मां की सच्चे दिल से पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होने लगते हैं। मां कुष्मांडा की साधना करने वालों को विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती हैं।
कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां कुष्मांडा का जन्म दैत्यों का संहार करने के लिए हुआ। कुष्मांडा का अर्थ कुम्हड़ा होता है। कुम्हड़े को कुष्मांड कहा जाता है, इसलिए मां दुर्गा के इस रूप का नाम कुष्मांडा रखा गया। मान्यातओं के मुताबिक जब हर जगह अंधेरा था तब मां कुष्मांडा ने अपने मंद हंसी से इस सृष्टि की रचना हैं। मां कुष्मांडा सूर्य मंडल के पास के एक लोक में निवास करती हैं। वहां निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है।
पूजा विधि:
नवरात्रि के चौथे दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा की विधि विधान से पूजा करें। देवी को पूरी श्रद्धा से फल,फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं। प्रसाद के रूप में मां को मालपुए, दही या फिर हलवा चढ़ाएं। मां के मंत्रों का जाप करें और फिर आरती करें।
आरती:
कुष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
मंत्र:
((ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नम: ))
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
(अर्थात: अमृत से परिपूरित कलश को धारण करने वाली और कमलपुष्प से युक्त तेजोमय मां कुष्मांडा हमें सब कार्यों में शुभदायी सिद्ध हो)