9 दिनों तक चलने वाले चैत्र नवरात्रि का त्योहार जोर-शोर से मनाया जा रहा है। इस दौरान भक्त माता रानी की भक्ति में लीन हैं। नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती हैं। नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा का होता हैं। इस दिन मां के इसी रूप की पूजा होती हैं। मां चंद्रघण्टा के मस्तक पर अद्ध चंद्र घंटे के आकार में सुशोभित हैं, जिसके चलते ही इन्हें चंद्रघण्टा कहा जाता हैं। उनका ये रूप बेहद ही शांतिदायक और कल्याणकारी माना जाता हैं।
मां चंद्रघंटा की हैं 10 भुजाएं…
मां चंद्रघटा के गले में सफेद फूलों की माला हैं। उनका शरीर सोने की तरह चमकता है। देवी दुर्गा का ये स्वरूप सिंह पर सवार रहता हैं। चंद्रघंटा मां की 10 भुजाएं हैं। मां के चार हाथों में कमल का फूल, धनुष, जप माला और तीर हैं। पांचवा हाथ अभय मुद्रा में रहता है। वहीं, अन्य चार हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार है और पांचवा हाथ वरद मुद्रा में रहता हैं।
मां की पूजा से मिलते हैं ये लाभ
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा विधि विधान से करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता हैं। भक्तों को कष्टों और पापों से मुक्त मिलती है। साथ ही साथ मां चंद्रघंटा असीम शांति और सुख सम्पदा का वरदान देती है। इस देवी की पूजा करने से सभी दुखों और भय से मुक्ति मिलती है।
कथा:
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब असुरों का आतंक बढ़ रहा था और उन्हें सबक सिखाना जरूरी हो गया, तब ही मां दुर्गा ने तीसरे रूप चंद्रघंटा का अवतार लिया। तब दैत्यों का राजा महिषासुर, राजा इंद्र के सिंहासन को हड़पना चाह रहा था। महिषासुर चाहता था कि वो स्वर्ग लोक पर अपना राज कायम करें। इस वजह से ही देवताओं और दैत्य की सेना में युद्ध छिड़ गया। देवता इस सबसे काफी परेशान थे। वो अपनी समस्या लेकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे, तो त्रिदेव ये सबकुछ सुनकर क्रोधित हो उठे।
क्रोध के कारण ही तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई, जिसने देवी चंद्रघंटा का रूप लिया। चंद्रघंटा देवी को भगवान शिव ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र दिया। इसी तरह दूसरे देवी-देवताओं ने भी उन्हें अपने अस्त्र सौंपे। देवराज इंद्र ने उन्हें घंटा, सूर्य देव ने तेज और तलवार दिए। इस तरह इन देवी का नाम रखा गया चंद्रघंटा। देवताओं की परेशानी का हल निकालने मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंची और उसका वध कर दिया। महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने मां का धन्यवाद दिया।
पूजा विधि:
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि विधान से की जाएं, तो भक्तों को लाभ जरूर मिलता हैं। पूजा करने के लिए सुबह अच्छी उठकर स्नान कर लें। लकड़ी की चौकी पर मां की मूर्ति को स्थापित करें। मां चंद्रघंटा को धूप, दीप, रोली, चंदन, अक्षत अर्पित करें। मां चंद्रघण्टा को दूध या दूध की खीर का भोग लगाएं
इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और फिर मां चंद्रघंटा के मंत्रों का जाप करना चाहिए। अंत मां की आरती गाएं। पूजा के दौरान में घंटा जरूर बजाएं। कहते हैं कि ऐसा करने से घर की सभी नकारात्मक और आसुरी शक्तियों का नाश होता है।
आरती:
नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा का ध्यान।
मस्तक पर है अर्ध चंद्र, मंद मंद मुस्कान।।
दस हाथों में अस्त्र शस्त्र रखे खडग संग बांद।
घंटे के शब्द से हरती दुष्ट के प्राण।।
सिंह वाहिनी दुर्गा का चमके स्वर्ण शरीर।
करती विपदा शांति हरे भक्त की पीर।।
मधुर वाणी को बोल कर सबको देती ज्ञान।
भव सागर में फंसा हूं मैं, करो मेरा कल्याण।।
नवरात्रों की मां, कृपा कर दो मां।
जय मां चंद्रघंटा, जय मां चंद्रघंटा।।
मंत्र:
((ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम: ))
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
(अर्थात: श्रेष्ठ सिंह पर सवार और चंडकादि अस्त्र शस्त्र से युक्त मां चंद्रघंटा मुझ पर अपनी कृपा करें।)