सिखों के 7वें गुरु गुरु हर राय जी जनवरी 1630 में पंजाब के कीरतपुर साहिब में पैदा हुए। गुरु राय के पिता बाबा गुरदिता जी थे जो छठे गुरु गुरु हरगोबिंद जी के पुत्र थे। गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने संसार छोड़ने के पहले ही अपने पोते हर राय जी को 14 साल की उम्र में ही 3 मार्च 1644 को ‘सप्तम नानक’ के तौर पर घोषित किया और वो 6 अक्टूबर 1661 तक इस पद रहे। गुरु पद पर रहते हुए गुरु हर राय जी ने फिर से अपने दादा गुरु हरगोबिंद जी के बनाए सिख योद्धाओं के दल को संगठित किया।
गुरु हरराय साहिब जी की शादी उत्तर प्रदेश के अनूप शहर के रहने वाले श्रीदयाराम जी की बेटी किशन कौरजी से हुई और गुरु हरराय साहिब जी के दो बेटे हुए। रामरायजी और गुरु हरकिशन साहिबजी। कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब का जो भाई था दारा शिकोह उसकी विद्रोह में गुरु हर राय जी ने मदद की थी और इस बारे में सफाई के लिए जब औरंगजेब ने गुरु हर राय जी को बुलाया तो उन्होंने अपने बेटे बाबा रामरायजी को भेजा अपना प्रतिनिधि बनाकर। रामराय जी ने वहां अपने पिता की तरफ से सफाई दी थी।
एक किस्सा ये भी आता है कि एक बार किसी अनजान बीमारी से दारा शिकोह ग्रस्त था तब गुरु हर राय जी ने ही उनकी मदद कर उसकी जान बचाई। वहीं दूसरी तरफ गुरु हरराय जी ने अपने दूसरे पुत्र हरिकिशन जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। रुपनगर में 20 अक्टूबर 1661 को गुरु हर राय जी ने संसार त्याग दिया। आध्यात्मिक और राष्ट्रवादी महापुरुष के तौर पर गुरुजी की पहचान बनी और एक कुशल योद्धा भी रहे थे।