उत्तराखंड में वैसे तो एक से एक हिस्टोरिकल प्लेसेज हैं, लेकिन उनमें पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है सिखों का तीर्थ स्थान… पवित्र गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब। जिसके बारे में आज हम जानेंगे…
सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी की तपोस्थली है पवित्र गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब। गुरु नानक देव जी अपने शिष्य भाई मरदाना जी के साथ अपनी तीसरी उदासी में इस जगह पर आए और मौजूदा वक्त में ये सिखों का बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है, जहां हर साल विश्व भर से शीश झुकाने आते हैं।
1508 ई. से पहले के वक्त की अगर बात करें तो उत्तर भारत का ये एरिया गोरखमत्ता के नाम से पहचाना जाता था। यहां गोरखनाथ के भक्त बसे हुए थे और तब ये पूरा एरिया सिद्धों का भी निवास करने की जगह हुआ करती थी, इसे सिद्धमत्ता कहते थे तबके वक्त में। पवित्र ग्रंथ गुरुवाणी में इस यात्रा का भी जिक्र किया गया, जिसमें कहा गया कि अपनी तीसरी उदासी में यानी कि तीसरी यात्रा में नानक देव जी यहां आए। गुरु गुरुनानक देव जी जब साल 1515 में करतारपुर से यात्रा पर निकले तो ये उनकी कैलाश पर्वत की यात्रा थी।
गुरु जी अपने शिष्य भाई मरदाना जी साथ ही बाला जी के साथ निकल पड़े और उसी यात्रा के दौरान इस जगह पर आए थे। सिद्ध यहां पर साधना के लिए आते वैसे सिद्ध जो कि घमंडी थे स्वभाव से और यहीं पर गुरु नानक देव जी ने अहंकारी साधुओं के घमंड को तोड़ दिया था और सबको निर्मल ज्ञान और गुरुवाणी दी थी। नानक देव ने इन सिद्धों को कहा कि परिवार की सेवा ही सबसे सच्ची सेवा है। यही ईश कार्य है ऐसा सुनते ही सिद्धों का घमंड चूर हुआ और गुरु की वाणी सुन उनके आगे सभी झुक गए।
नानकमत्ता गुरुद्वारा साहिब के पीपल के पेड़ के नीचे ही गुरु नानक देव जी ने अपना आसन बनाया। इस बारे में क कथा कही जाती है कि गुरु नानक देव जिस पीपल के नीचे बैठे थे छाव के लिए उसे सिद्धों ने अपनी योग शक्ति से आंधी और बारिश करवाकर उखाड़ दिया था जिसे गुरु नानक देव जी ने पीपल पर अपना पंजा लगाया और पेड़ को गिरने से रोक लिया। इस पेड़ को आज भी पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है।
गुरुनानक जी जब संसार छोड़ गए तो सिद्धों ने इस पूरे एरिया पर कब्जा कर लिया और फिर पीपल के पेड़ में आग लगा दी। तब बाबा अलमस्त जी यहां के एक सेवादार हुआ करते थे, जिन्होंने सिखों के छठे गुरु हरगोविंद साहिब जी को इस बारे में बताया। जिसके बाद यहां आकर गुरु जी ने केसर के छींटे मारकर पेड़ को जीवित और हरा-भरा कर दिया। तब से इस पीपल के एक एक पत्ते पर केसर के पीले निशान पाए जाते हैं।
एक कहानी ये भी आती है कि जब एक बारे गुरु नानक देव जी के शिष्यों को जोर की प्यास लगी तो सिद्धों से पानी मांगने को गुरु नानक देव जी ने शिष्यों को कहा। जिस पर सिद्धों ने पानी सूखने का बहाना किया और गुरुजी से पानी मांगने को कहा। नानक देव जी के आदेश पाकर भाई मरदाना जी पानी लेने निकल पड़े पहाड़ की तलहटी की तरफ। भाई मरदाना ने जंगल से निकली गंगा नदी में एक लकड़ी का फावड़ा मार दिया तो हुआ ये कि उनके पीछे ही नदी चल पड़ी। बाऊली साहिब पहुंचकर जब मरदाना जी ने पीछे मुड़कर देखा तो वहीं की वहीं नदी रुक गई। आज भी बाऊली साहिब के नाम से एक कुआं बना हुआ है। जिससे गुरु जी के शिष्यों ने अपनी प्यास बुझाया थी।
यहां तक कि तांत्रिक ज्ञीन से सिद्धों ने आसपास के पानी और गायों के दूध तक को सुखा दिए जिस पर गुरुनानक देव जी ने इसी कुएं से पानी के बजाए दूध निकाला और ये कुआं आज भी दूध वाला कुएं के नाम से फेमस है। यहीं किंवदंती भंडार साहिब के बारे में बताते हैं जिसके मुताबिक यहां बरगद का पेड़ हुआ करता था जिससे भूख लगने पर गुरुजी ने बरगद के पेड़ को हिलाकर फल गिराया जो भोजन बन गया।