पंजाब, जिसकी खूबसूरती में कसीदे कम ही पड़ जाएं। एक ऐसा राज्य जहां जाने के बाद लौट आने का जी ना करे। पंजाब जो सिख गुरुओं की धरती हैं, जहां श्री गुरु नानक देव जी से लेकर दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी तक रहे। जहां एक से एक पवित्र जगह हैं और इन्हीं में से एक है गोइंदवाल साहिब। जिसके बारे में आज हम जानेंगे सबकुछ…
पंजाब का जिला है तरनतारन, जहां पर गोइंदवाइल साहिब स्थित हैं और इसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस पूरे नगर को सिख गुरु गुरु अमरदास जी ने बसाया था। श्री गुरु अंगद देव जी के हुक्म से ही गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म के फैलाव के केंद्र के तौर पर पवित्र ऐतिहासिक नगर श्री गोइंदवाल साहिब को स्थापित किया।
यहीं संगत को आत्मिक और सांसरिक तृप्ति, तन- मन की पवित्रता इसके अलावा ऊंच- नींच, जात पात के भेद को खत्म करने के लिए श्री गुरु अमरदास जी ने एक बाउली साहिब बनवाया था। कहते हैं कि ये बाउली चौरासी सिद्धियों वाली है जिसमें स्नान कर गुरु सिमरन करने से मन को और आत्मिक शांति मिलती है।
ये जगह ऐतिहासिक है और अगर यहां आएंगे आप तो आपको प्राकृतिक के सुंदर नजारे दिखाई देंगे। गोइंदवाल का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व कितना ज्यादा है इसको ऐसे ही समझ लीजिए कि इस पवित्र जगह को सिक्खी का धुरा कहते हैं।
माना जाता है कि गाइंदवाल में आज जहां पर गुरुद्वारा साहिब है श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूप वाणी का वहीं पर संग्रह बाबा मोहन जी वाली पोथियों से शुरू हुआ। सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी भी यहीं पर पैदा हुए। श्री गुरु अमरदास जी साल 1552 में यही पर गुरु गद्दी पर विराजमान हुए।
कहते ये भी है कि गुरु अमरदास जी के दर्शन के लिए और आत्मिक शांति पाने के लिए बादशाह अकबर ने भी गुरु जी के दरबार में शीश झुकाया था।
पंजाब का एक बेहद फेमस त्योहार है बैसाखी, जिसको जोड़ मेले के रूप में मनाने की शुरुआत भी गोइंदवाल साहिब से हुई थी। तो धार्मिक महत्व कितना है इस शहर का आप खुद ही समझ सकते हैं। हालांकि आप भी सिख धर्म को मनाने वालों में से हैं तो एक बार गोइंदवाला तो घूम ही आइए।