श्री गुरुनानक देव जी ने अपने जीवन के करीब-करीब 15 साल सुल्तानपुर लोधी में गुजारे। वहीं से बटाला के गुरु जी की बारात लिए रवाना हुई और फिर जब उनकी शादी हो गई तो सुल्तानपुर लोधी में ही आकर वे रहे। कहते हैं कि यहीं पर गुरु जी को दिव्य ज्ञान मिला और उन्होंने मूलमंत्र ‘इक ओंकार’ का उच्चारण किया। मतलब गुरु ग्रंथ साहिब की उन्होंने नींव रख दी।
ऐतिहासिक शहर से ही 1499 ईस्वी में गुरु नानक देव जी ने पांच उदासियों यानी कि यात्राएं शुरू की थी। आज हम जानेंगे सुल्तानपुर लोधी के गुरुद्वारों के बारे में जिनका गुरुनानक देव जी से गहरा नाता रहा।
पहला है गुरुद्वारा श्री बेर साहिब जो गुरु जी का भक्ति स्थल है और इस वजह से ये गुरुद्वारा श्रद्धा का केंद्र रहा है। गुरु नानक देव जी रोज ही सुबह सुबह बेई नदी में स्नान करते और प्रभु की भक्ति करते। आज यहीं पर श्री भौरा साहिब बना है जिसमें 14 साल 9 महीने 13 दिन तक गुरु जी रोजाना आकर भक्ति किया करते। गुरुद्वारा दर्शन के लिए आए लोग भौरा साहिब के भी दर्शन जरूर करते हैं। माना जाता है कि अपने भक्त खरबूजे शाह के कहने पर गुरु जी ने बेर का पौधा लगाया था। 550 साल बाद भी यह हरीभरी है और दूर तक एरिया में फैली है।
गुरुद्वारा संत घाट… गुरु जी ने मूलमंत्र का यहीं पर उच्चारण किया था। ये गुरुद्वारा श्री बेर साहिब से तीन किलोमीटर दूर है जहां पर रोज स्नान के बाद दिन डुबकी लगाकर 72 घंटे तक आलोप रहे। कहते हैं कि तभी उनको दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और तभी गुरु जी ने एक ओंकार सतनाम करतापुरख का मंत्र उच्चारण किया।
अगला है श्री हट्ट साहिब जहां पर ‘तेरा-तेरा’ का दिया संदेश दिया गुरु जी ने। सुल्तानपुर लोधी में जब गुरु जी रुके तो उस दौरान उन्होंने नौकरी की। नवाब दौलत खान लोधी के मोदी खाने में जो कि किले के दक्षिण में था जहां गुरु जी लोगों को राशन बेचते वक्त खुले मन से जरूरतमंदों को राशन बांटते थे। यहीं पर उन्होंने ‘तेरा-तेरा’ का उच्चारण किया। क्या आप जानते हैं कि 14 पवित्र बट्टे, गुरुजी जिनसे अनाज तोलते थे वो यहां पर यहां रखे गए हैं।
एक गुरुद्वारा है श्री अंतरयाम्ता साहिब जहां पर नमाज की असलियत बताई थी गुरु जी ने। ये वहीं जगह है जहां पर श्री गुरु नानक देव जी ने नवाब दौलत खान और उसके मौलवी को ईदगाह में नमाज की असलियत के बारे में बताया। उन्होंने नवाब व मौलवी को तुरंत बताया था कि कैसे वे नमाज अदा करने में ध्यान लगाने के बजाए काबुल में घोड़े खरीदने में ध्यान लगाया था। अगर नमाज अदा करनी है तो मन को भी प्रभु के आगे अर्पित किया जाए। गुरु जी ने संदेश दिया।
श्री कोठड़ी साहिब जहां पर मोदीखाना में गुरु जी के दिए जा रहे राशन की शिकायत दौलत खान से किसी ने कर दी और हिसाब में गड़बड़ के आरोपों की वजह से राई मसूदी अकाउटेंट जनरल के घर गुरु साहिब को हिसाब के लिए बुला लाया गया जहां पर आरोप बेबुनियाद रहे और हिसाब कम की जगह ज्यादा दिया और ये ज्यादा धन जब गुरु जी को देने की बात हुई तो उन्होंने उसे जरूरतमंदों में बांट देने को कहा। वहां अब गुरुद्वारा कोठड़ी साहिब बना दिया गया है।
गुरु का बाग जहां पर विवाह के बाद परिवार सहित गुरु जी रहा करते थे। गुरु साहिब जी के पुत्र बाबा श्री चंद और बाबा लक्ष्मी दास यहीं पैदा हुए जिसकी वजह से इस जगह को गुरु का बाग कहा गया। पहले यहां छोटी इमारत थी और सुंदर बाग भी थे। फिर धीरे-धीरे बाग तो खत्म हो गया पर गुरु के बाग की यादें अब भी है।
गुरुद्वारा श्री सेहरा साहिब जहां पर गुरु हरगोबिंद साहिब जी की बारात ठहरी थी और जब सुबह हुई तो गुरु अर्जुन देव जी अपने सुपुत्र गुरु हरगोबिंद साहिब जी का सेहरा बांधकर उनकी बारात लिए लिए शादी के लिए पहुंचे थे जिसकी वजह से इस जगह को सेहरा साहिब नाम दिया गया। गुरु नानक देव जी ने इस गुरुद्वारे को धर्मशाला का नाम दिया था। जिसके बाद श्री गुरु अजुर्न देव जी और गुरु हरगोबिंद साहिब जी वहां ठहरे।