सिखों के इतिहास में 10 गुरु हुए हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन सिखों को गुरु के मार्ग यानी ईश्वर के मार्ग पर चलने की शिक्षा देने में बिताया है। हर गुरु ने अपने अनुयायियों को कुछ न कुछ सिखाया ताकि वे जीवन में बेहतर इंसान बन सकें। वहीं कुछ गुरुओं ने समाज को बेहतर बनाने के लिए कुछ ऐसे महान कार्य किए, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इसलिए आज हम आपको सिखों के पहले 4 गुरुओं द्वारा किए गए कुछ ऐसे महान कार्यों के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानने के बाद आप भी इन गुरुओं को नमन करेंगे और समाज को बेहतर बनाने का मार्ग चुनेंगे।
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गुरु नानक देव (1469-1539)
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल 1469 को ‘तलवंडी’ नामक स्थान पर हुआ था। नानक जी के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा। वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान में है। उनका विवाह नानक सुलखनी से हुआ था। उनके दो बेटे श्रीचंद और लक्ष्मीचंद थे। उन्होंने करतारपुर नामक शहर की स्थापना की, जो अब पाकिस्तान में है। गुरु नानक जी की मृत्यु 1539 में इसी स्थान पर हुई थी।
गुरु नानक देव जी के महान कार्य
- गुरु नानक देव ने एक ओंकार का नारा दिया, जिसका अर्थ है ईश्वर एक है।
- गुरु नानक देव जी ने करतारपुर साहिब में 18 साल बिताए थे। माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारा की स्थापना की थी। हालांकि, बाद में रावी नदी में आई बाढ़ में यह बह गया। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने तब वर्तमान गुरुद्वारा बनवाया था।
- गुरु नानक देव जी ने शुरू की थी लंगर की परंपरा गुरु नानक देव जी ने 15वीं शताब्दी में भेदभाव, जातिवाद और अंधविश्वास को खत्म करने के लिए लंगर की शुरुआत की थी। लंगर के दौरान सभी श्रद्धालु एक साथ जमीन पर बैठकर खाना खाते थे। गुरु नानक देव जी ने खुद इसकी शुरुआत की और संगत के साथ बैठकर लंगर खाया।
गुरु अंगद देव (1539-1552)
गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव ने अपने दो बेटों को छोड़कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था। उनका जन्म 31 मार्च, 1504 को पंजाब के फिरोजपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम फेरु जी था, जो पेशे से एक व्यापारी थे। उनकी माता का नाम माता रामो जी था। गुरु अंगद देव को ‘लहिना जी’ के नाम से भी जाना जाता है। अंगद देव जी पंजाबी लिपि ‘गुरुमुखी’ के प्रवर्तक हैं।
गुरु अंगद देव जी के महान कार्य
- गुरु अंगद देव जी ने “श्री खडूर साहिब” में आकर पहला अटूट लंगर शुरू किया। जहाँ हर जाति के लोग बिना किसी भेदभाव और झिझक के एक पंक्ति में बैठकर लंगर खा सकते थे। सही मायनों में उन्होंने जाति-पाति और छुआछूत के भेदभाव को खत्म किया।
- उन्होंने “पंजाबी बोली” को “शुद्ध” तरीके से लिखने के लिए “श्री गुरु नानक देव जी” द्वारा इस्तेमाल की गई गुरुमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया। यानी गुरुमुखी अक्षरों की रचना श्री गुरु अंगद देव जी ने की थी। यह काम 1541 में हुआ था।
- उन्होंने बहुत शोध करके श्री गुरु नानक देव जी का जीवन लिपिबद्ध करवाया। इसका नाम भाई बाले की जन्म साखी के नाम से प्रसिद्ध है।
- उन्होंने एक बहुत बड़ा अखाड़ा बनवाया जहाँ लोगों में उत्साह और शारीरिक शक्ति बनाए रखने के लिए उन्होंने व्यायाम करवाना शुरू किया।
गुरु अमर दास (1552-1574)
सिख धर्म के तीसरे गुरु अमर दास का जन्म 23 मई 1479 को अमृतसर के एक गांव में हुआ था। 61 साल की उम्र में उन्होंने गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु बनाया और 11 साल तक लगातार उनकी सेवा की। उनकी सेवा और समर्पण को देखते हुए गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरु गद्दी सौंप दी। गुरु अमर दास का निधन 1 सितंबर 1574 को हुआ था।
गुरु अमर दास के महान कार्य
- गुरु अमरदास जी ने जाति प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या भ्रूण हत्या, सती प्रथा जैसी बुराइयों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उस समय गुरु अमरदास जी ने सभी के लिए एक ही पंक्ति में बैठना यानि जाति के अनुसार लंगर खाना अनिवार्य कर दिया था। कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह अकबर गुरु दर्शन के लिए गोइंदवाल साहिब आए तो वे भी संगत और लंगर के साथ एक ही पंगत में बैठे।
- इतना ही नहीं, उन्होंने छुआछूत की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए गोइंदवाल साहिब में ‘सांझी बावली’ का निर्माण भी करवाया। कोई भी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इसके जल का उपयोग कर सकता था।
गुरु राम दास (1574-1581)
सिख धर्म के चौथे गुरु रामदास थे। वे सिख धर्म के चौथे गुरु थे। उन्होंने 1574 ई. में गुरु पद प्राप्त किया। वे 1581 ई. तक इस पद पर बने रहे। वे सिखों के तीसरे गुरु अमरदास के दामाद थे। उनका जन्म लाहौर में हुआ था।
गुरु राम दास के महान कार्य
- गुरु रामदास ने 1577 ई. में ‘अमृत सरोवर’ नामक नगर की स्थापना की, जो बाद में अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- गुरु रामदास जी ने सिख धर्म के लोगों के विवाह के लिए आनंद कारज यानी 4 फेरे (लावा) की व्यवस्था बनाई और सिखों को इसका पालन करने और गुरुमत मर्यादा के बारे में बताया। यानी गुरु रामदास जी ने सिख धर्म के लिए एक नई विवाह प्रणाली शुरू की।
- सम्राट अशोक ने गुरु रामदास जी की सलाह पर एक साल तक पंजाब में कर नहीं लिया।
- गुरु हरमंदिर साहिब यानी ‘स्वर्ण मंदिर’ की नींव भी उनके कार्यकाल में रखी गई थी। साथ ही, उन्होंने स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ द्वार बनवाए। इन द्वारों का मतलब है कि यह मंदिर हर धर्म, जाति, लिंग के लोगों के लिए खुला है और कोई भी कभी भी यहां आ सकता है।
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