आज म आप तक लेकर आए हैं सिख धर्म के पांच तख्तों से जुड़ी कुछ बेहद ही Interesting जानकारी। सिखों के पंच तख्त यानी पांच तख्त क्या हैं? इनके नाम क्या हैं? ये कहां कहां स्थित हैं और किन्होंने इनकी स्थापना की? आज हम इसके बारे में डिटेल से जानेंगे…
क्या है पंच तख्त?
तख्त एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ है बैठने की चौकी या राज सिंहासन। सिख धर्म में तख्त सत्ता की चौकी का प्रतीक है। ये पंच तख्त शाही तख्त के नाम से भी जाने जाते हैं। पंच तख्त में सिख कौम की जरूरत के हिसाब से धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक फैसले लिए जाते हैं। सिखों के दसों गुरु गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोविंद सिंह जी तक ने देश और अपने धर्म के लिए अपने प्राण त्याग दिए। इस दौरान ही उन्होंने पांच तख्तों की स्थापना की।
कहां कहां हैं स्थित?
पंज तख्त उन 5 गुरुद्वारों को कहा जाता हैं, जिनका सिख धर्म में खास महत्व हैं। पांच तख्त में अकाल साहिब तख्त, श्री दमदमा साहिब, श्री केशगढ़ साहिब, श्री हुजूर साहिब और श्री पटना साहिब है। ये पंच तख्त भारत के तीन बड़े राज्यों में स्थित हैं। मौजूदा पंच तख्त में से तीन पंजाब, एक बिहार और एक महाराष्ट्र में हैं।
अकाल तख्त
सबसे पहले बात करते हैं अकाल तख्त की। वैसे तो इन पांच तख्तों का ही सिख धर्म में काफी महत्व हैं। लेकिन इनमें से श्री अकाल तख्त साहिब सब से अधिक महत्व रखता है। अकाल तख्त पांच तख्तों में सबसे पुराना है। ये अमृतसर के गोल्डन Temple का ही हिस्सा है। 1609 में सिखों के छठें गुरु गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने इस तख्त की नींव रखती थीं।
श्री केशगढ़ साहिब तख्त
बात करते हैं तख्त श्री केशगढ़ साहिब के बारे में। तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर साहिब में स्थित है। ये खालसा का जन्मस्थान है, जिसकी स्थापना गुरु गोबिंद सिंह जी ने साल 1699 में की थी। यहां गुरु जी के कुछ हथियारों को भी पदर्शित करके रखा गया है।
श्री पटना साहिब तख्त
तख्त श्री पटना साहिब बिहार के पटना में स्थित है। 1666 में गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म यहां हुआ था और उन्होंने अपना बचपन भी यही बिताया। इसके साथ ही गुरु नानक देव जी और गुरु तेग बहादुर जी ने भी अलग-अलग समय पर इस स्थान का दौरा किया था।
श्री हजूर साहिब तख्त
श्री हजूर साहिब तख्त महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित हैं। 1708 में गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड़ आए थे और यहीं गुरु जी ने सिखों को समझाया था कि उन्हें उनके बाद गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु मान लेना चाहिए। गुरु जी और गुरु ग्रंथ साहिब में कोई फर्क नहीं होगा। यहीं पर 1708 में गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी। गुरुद्वारे के आतंरिक कक्ष अंगीठा साहिब भी बोला जाता है। ये ठीक उसी जगह बनाया गया है, जहां गुरु जी का अंतिम संस्कार हुआ था।
श्री दमदमा साहिब तख्त
श्री दमदमा साहिब तख्त भठिंडा के पास तलवंडी साबो पिंड में है। दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी यहां लगभग एक साल रुके थे। 1705 में इसी जगह पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंतिम संस्करण “दमदमा साहिब बीड़” को अंतिम रूप दिया गया था।