खाटू श्याम जी का इतिहास क्या है? पांडवों से जुड़ा है कनेक्शन

Khatu Shyam History in Hindi
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Khatu Shyam History in Hindi– वैसे आजकल श्री खाटूश्याम जी के भक्त बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे भगवान कृष्णा द्वारा उनको दिया गया वरदान सत्य साबित हो रहा है. जो उन्होंने खाटू जी सर के बदले में दिया था. जिस तरह से इनके भक्तो में वृद्धि हो रही है उससे यह कहने में कोई भी आश्चर्य नहीं होगा कि आने वाले 10 सालों में ये बाकियों को श्रद्धा के मामले में पीछे छोड़ देंगे. लेकिन भक्ति में लीन होने के साथ साथ ये भी जानना जरूरी है कि हम अपने आराध्य के बारे में कितना और क्या जानते है? मान्यता है कि जो भी खाटू श्याम के दर आता है उसकी मुरादें कभी खाली नहीं जाती, इसलिए इन्हें हारे का सहारा कहा जाता है.

Story of Barbarik bravery- how barbareek became khatushyam?
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राजस्थान के सीकर स्थित खाटू श्याम का भव्य मंदिर है जहां 12 महीने भक्तों का तातां लगा रहता है. कहते हैं इनकी पूजा से गरीब भी धनवान बन जाता है. बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल (Khatu shyam Mahabharat) से है. ये इतने शक्तिशाली थे कि इनकी प्रतिमा से श्रीकृष्ण बेहद प्रसनन हुए थे लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि इन्हें अपना शीश काटना पड़ा. आइए जानते हैं बाबा खाटू श्याम की कथा.

कौन है खाटूश्याम?- Khatu Shyam History in Hindi

स्कन्द पुराण के अनुसार खाटू श्याम जी महावली भीम और हिडिंबा के पौत्र है इनके पिता का नाम घटोत्कच तथा माता का नाम मोरवी है. माता मोरवी ने तीन पुत्रों को जन्म दिया जिसमे सबसे बड़े पुत्र का नाम बर्बरीक तथा अन्य दोनों का नाम क्रमश: अंजनपर्व और मेघवर्ण था.

बर्बरीक जब छोटे थे तब इनके बाल बब्बर शेर की तरह थे जिसके कारण इनका नाम बर्बरीक(Story of Barbarik bravery) रखा गया.यह माता मौरवी के प्रिय व आज्ञाकारी पुत्र थे बचपन की शिक्षा बर्बरीक ने अपनी माता मौरवी से ही ली थी.खाटू श्याम जी बाल अवस्था से बहुत बलशाली और वीर थे उन्होंने युद्ध कला अपनी माता मोरवी  तथा  भगवान् कृष्ण से सीखी.

बर्बरीक का तीन बाण तय कर सकता था युद्ध परिणाम

घटोत्कच का पुत्र था बर्बरीक जो अपने पिता से भी बलशाली और मायावी था. बर्बरीक देवी दुर्गा का परम भक्त था. देवी की कृपा से उसे तीन दिव्य बाण की प्राप्ति हुई जो अपने लक्ष्य को साधकर वापस लौट आते थे. महाभारत के युद्ध के समय भीम पौत्र बर्बरीक ने प्रण लिया कि इस युद्ध में जो हारेगा वह उनकी तरफ से लड़ेंगे.

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श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध स्थल पर आ गया तो पांडवों की हार तय है. और इन्ही तीन बाणों के चलते ही आज इन्हें ‘तीन बाणधारी’ के नाम से भी जाना जाता है.

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इसलिए काट दिया अपना शीश- Khatu Shyam Story in Hindi

बर्बरीक को रोकने के लिए कृष्ण भेस बदकल उसके सामने उपस्थित हुए और उससे अपनी वीरता का नमूना दिखाने का आग्रह किया. बर्बरीक ने बाण चलाता तो एक पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया. कृष्ण ने एक पत्ता पैर के नीचे छुपा लिया था यह सोचकर कि इसमें छेद नहीं होगा लेकिन तीर सीधे कृष्ण के पैर में जा लगा.

ऐसे बने बर्बरीक से भगवान खाटू श्याम

श्रीकृष्ण बर्बरीक की शक्ति से आश्चर्य चकित रह गए. ब्राह्मणरूपी कृष्ण (Story of Barbarik bravery)ने बर्बरीक से दान की आशा की. बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया. बर्बरीक समझ गया की यह कोई साधारण इंसान नहीं पूछने पर  कान्हा ने अपना वास्तविक परिचय दिया. इसके बाद बर्बरीक ने खुशी से अपना शीश दान कर दिया. कृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे. जो तुम्हारी भक्ति करेगा उसकी सभी मनोरथ पूर्ण होंगे.

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श्याम बाबा का निशान क्यों चढ़ाया जाता है?

सनातन धर्म व संस्कृति में ध्वजा विजय की प्रतीक मानी जाती है.श्याम बाबा द्वारा किए गए महाबलिदान शीश दान के लिए उन्हें निशान चढ़ाया जाता है.यह उनकी विजय का प्रतीक माना जाता है क्योंकि उन्होंने धर्म की जीत के लिए दान में अपना शीश ही भगवान श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया था.निशान केसरी, नीला, सफेद, लाल रंग का झंडा होता है.

इन निशानों पर श्याम बाबा और भगवान कृष्ण के फोटो लगे होते है.कुछ निशानों पर नारियल और मोरपंखी भी सजी होती है.श्रद्धालु नंगे पैर रिंगस से खाटू मंदिर तक निशान लेकर बाबा श्याम पर चड़ाने जाते है और अपनी मनोकामना को मांगते है.

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