कहते हैं कि जिसका इस संसार में जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। दुनिया में लोगों ने अपने सहूलियत के हिसाब से धर्म और जातियां बनाई, और सभी ने अपनी अलग अलग परंपराए, संस्कृति, धर्मग्रंथों का अनुसरण किया, इसी में से एक है मृत्यु के बाद होना वाला अंतिम संस्कार। हर धर्म में अलग अलग तरह से अंतिम संस्कार होता है, लेकिन मकसद एक ही होता है…पंचतत्वों से बने शरीर को फिर से पंचतत्वों में मिला देना। लेकिन अब सवाल ये है कि हिंदू धर्म में शरीर को जलाया जाता है, इस्लाम में दफनाया जाता है तो फिर सिख धर्म में मरने वाले का अंतिम संस्कार कैसे होता है? आज हम यहीं जानेंगे।
ऐसा कहा जाता है कि सिख धर्म की स्थापना हिंदू धर्म से ही हुई है। इसलिए इसकी बहुत सी रस्में हिंदू धर्म से ही मिलती है। इसी में एक अंतिम संस्कार की विधि भी है। हिंदू धर्म में माना जाता है कि मृत शरीर को अग्नि के हवाले कर देना चाहिए, ताकि जिस पंचतत्वों से उसका निर्माण हुआ है वो उसी में मिल जाए, साथ ही इससे मृतक की आत्मा को भी शांति मिलती है। ऐसा करने के पीछे ये भी मत दिया जाता है कि अगर शरीर नहीं होगा तो मृतक से उसके परिजनों का मोह खत्म हो जाएगा। हिंदू धर्म की ही तरह सिख धर्म में भी मृतक का अंतिम संस्कार उसके शव को अग्नि के हवाले करके किया जाता है।
अंतिम संस्कार से पहले मृतक के शरीर को नहलाया जाता है। जिसके बाद सिख पंथ के पांच चिन्ह- कृपाण, कंघा, कटार, कड़ा और केश कोअच्छे से संवारा जाता है। इसके बाद अर्थी पर ही शव को श्मशान घाट तक ले जाया जाता है। इस दौरान सभी वाहेगुरु कहते जाते हैं। सिख धर्म में अंतिम संस्कार में महिलाएं भी श्मशान जा सकती है, लेकिन हिंदू धर्म में ये निषेध है। अंतिम संस्कार मृतक का कोई करीबी करता है। दाह संस्कार के दौरान शाम को अरदास और भजन किया जाता है। श्मशान से आने के बाद नहाने के बाद सिखों की पवित्र गंथ गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है, जो लगातार 10 दिनो तक चलता रहता है।
दस दिनों बाद गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ पूरा होने के बाद कड़हा प्रसाद की बारी आती है। शोक करने आए सभी लोगो को कड़हा प्रसाद बांटा जाता है। जिसके बाद भजन कीर्तन होता है और ये अरदास की जाती है कि ईश्वर मरने वाले की आत्मा को शांति दें।