रंगों का त्योहार होली को लेकर उत्साह बढ़ने लगा है। होली को लेकर लोगों में एक अलग ही एक्साइटमेंट रहती हैं। बाजारों की रौनक भी इस दौरान काफी ज्यादा बढ़ जाती है। होली का त्योहार इस बार शुक्रवार 18 मार्च को मनाया जाएगा। वहीं इससे एक दिन पहले यानी 17 मार्च गुरुवार को होलिका दहन है। होलिका दहन की भी अपनी अलग मान्यताएं हैं।
होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होती है। इस दौरान होली का पूजन होता है और फिर अगले दिन रंग खेला जाएगा। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई पर जीत का त्योहार माना जाता है। मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन से आसपास की नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन की पूजा के लिए प्रदोष काल का समय चुना जाता है। इसमें भद्रा का साया ना हो, इसका भी खास ध्यान रखा जाता है। 17 मार्च को होलिका दहन को पूजा करने का मुहूर्त रात 9 बजकर 6 मिनट से लेकर रात 10 बजकर 16 मिनट तक है। यानी पूजा करने के लिए एक घंटे का समय होगा।
होलिका दहन की प्रचलित कथाएं
होलिका दहन को लेकर प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी काफी मशहूर है, जिसे हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था। वो राक्षस की तरह ही था, लेकिन इसके बावजूद वो खुद को भगवान से भी बड़ा मानता था। वो चाहता था कि लोग उसकी पूजा करें।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। वो अपने पिता की इच्छा की विपरीत विष्णु जी की पूजा किया करता था। कई बार हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कोशिश की, लेकिन विष्णु जी की कृपा से इसमें सफल नहीं हो पाया। हिरण्यकश्यप ने इसके लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली। होलिका को अग्नि से नहीं जलने का वरदान मिला हुआ था। ऐसे में हिरण्यकश्यप ने होलिका से प्रहलाद को गोद में लेकर बैठने को कहा। हालांकि उसकी ये योजना सफल नहीं हो पाई। पूर्णिमा के दिन जब होलिका प्रहलाद को आग में लेकर बैठी, तो भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए और होलिका जलकर राख हो गई।
होलिका दहन से जुड़ी एक और कथा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। कहानी के अनुसार श्री राम के एक पूर्वज रघु के राज में एक असुर नारी हुआ करती थी। वो अपने नगर के लोगों पर कई तरह के अत्याचार करती थी। उसने वरदान का कवच पहन रखा था, इसलिए उसे कोई मार भी नहीं सकता था। उसे केवल बच्चों से ही डर लगा करता था। एक दिन गुरु वशिष्ठ ने राक्षसी को मारने का तरीका बताया। उन्होंने कहा कि नगर के बाहर अगर बच्चे लकड़ी और घास के ढेर में आग लगाकर उसके चारों ओर नृत्य करें, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। फिर ऐसा ही किया गया और राक्षसी की मौत हो गई, जिसके बाद उस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
पूजा के दौरान करें ये उपाय…
होलिका दहन के दिन कुछ विशेष उपाय करने से फल मिलते हैं। आप अगर अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूजा करना चाहते हैं, तो दाहिने हाथ में काले तिल के दाने लेकर मुट्ठी बना लें। फिर इसे अपने सिर पर 3 बार घुमाएं और होलिका की अग्नि में डाल दें। इससे अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होगी.
वहीं अगर आप बार बार बीमार पड़ते हैं, तो इसके लिए भी विशेष उपाय कर सकते हैं। इस दिन आप 11 हरी इलायची और कपूर होलिका की अग्नि में डाल दें। इससे आपको बीमारी से मुक्ति मिलेगी।
धन से संबंधी समस्याएं चली आ रही हैं, तो उसे दूर करने के लिए चंदन की लकड़ी होलिका की अग्नि में डाल दें। दोनों हाथों से इसे होलिका की अग्नि में डालें और प्रणाम करें।
नौकरी नहीं मिलने और कारोबार में दिक्कत जैसी समस्याओं को दूर करना है, तो इसके लिए एक मुट्ठी पीली सरसों लें। इसे अपने सिर पर से 5 बार घुमा लें और होलिका की अग्नि में डाल दें।
विवाह में हो रही देरी या बाधा आ रही हैं तो इसका उपाय करने के लिए हवन सामग्री लाएं। इसमें घी डालेंव और दोनों हाथों से होलिका की अग्नि में डालें। इससे विवाह में आने वाली दिक्कतें दूर होगीं।
होलिका दहन की पूजा में शामिल होना वैसे तो काफी शुभ माना जाता है, लेकिन फिर भी कुछ लोगों के लिए जलती हुई होली देखना शुभ नहीं माना। कहा जाता है कि नवविवाहित स्त्रियों को जलती होली नहीं देखनी चाहिए। वहीं गर्भवती महिलाओं को होलिका की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है।