कहते है जब भी कोई व्यक्ति किसी संकट में होता है या फिर उसे कोई दुविधा सता रही होती है तो वो सबसे पहले अपने भगवान को याद करता है, जिन्हें इंसाफ के लिए भी जाना जाता है. यहां तक कि अदालत से लेकर आम परंपराओं में भी देवी-देवताओं की कसमें खाई जाती हैं, लेकिन अगर उन्हीं देवी-देवताओं को कोई सजा देने की बात कहें तो…यकीनन आप उसकी बातों पर विश्वास नहीं करोंगे, लेकिन कुछ ऐसा ही छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में आदिवासी समुदाय के लोग करते हैं.
यहां के आदिवासी समुदाय के लोग और देवताओं का रिश्ता अटूट आस्था और विश्वास पर टिका हुआ है. उन्हीं देवी-देवताओं को बहुत बार दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है. यहां पर सदियों से बहुत अनोखी प्रथा चलती आ रही, जिसमें न्याय का दरबार लगाया जाता है. इस दरबार में देवी-देवताओं को भी सजा दी जाती है, तो आइए आपको इसी अनोखी प्रथा के बारे में विस्तार से बताते हैं…
आपको बता दें कि जिला मुख्यालय कोंडागांव से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर सर्पिलाकार केशकाल घाट की वादियों में मौजूद सदियों पुराना भंगाराम माई का दरबार है. जिसे देवी-देवताओं के न्यायालय के तौर पर जाना जाता है. कहा जाता है कि भंगाराम की अनुमति के बिना इलाके में स्थित नौ परगना में कोई भी देवी-देवता काम नहीं कर सकते. यहां पर साल में एक बार भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा को मंदिर प्रांगण में विशाल जातरा या मेला आयोजित किया जाता है. जहां बड़ी तादात में श्रद्धालु अपने देवी-देवताओं के साथ आते हैं, वहीं यहां महिलाओं का आना प्रतिबंधित है.
कठघरे में खड़े किए जाते हैं देवी-देवता
ऐसी मान्यता है कि जिन देवी देवताओं की लोग पूजा करते हैं, अगर वो कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते हैं तो उन्हीं देवी-देवताओं को ग्रामीणों की शिकायत पर भंगाराम के मंदिर में सजा भी दी जाती है. इस दौरान देवी-देवताओं की सुनवाई की जाती है और उन्हें एक कठघरे में खड़ा होना पड़ता है. यहां भंगाराम न्यायाधीश के तौर पर विराजमान होते हैं. यहां पर सुनवाई के बाद अपराधी को दंड दिया जाता है तो वादी को इंसाफ मिलता है.
अगर गांव में किसी प्रकार की व्याधि, परेशानी दूर नहीं होती है तो ऐसेमें गांव में स्थापित देवी-देवताओं को ही दोष करार किया जाता है. जिसके चलते किसी बकरी या मुर्गी देवी-देवता का स्वरूप मान सोने,चांदी आदि के साथ लाट, बैरंग, डोली आदि को लेकर ग्रामीण भंगाराम जातरा में पहुंचते हैं.
इस तरह से देवी-देवताओं को दी जाती है सजा
मंदिर परिसर में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद अदालत लगाई जाती है. जिसके बाद देवी-देवताओं पर लगने वाले आरोपों की सुनवाई होती है और आरोपी पक्ष की तरफ से दलील पेश करने पुजारी, सिरहा, माझी, गायता, पटेल आदि उपस्थित होते हैं. दोनों पक्षों की सुनने के बाद ही फैसला लिया जाता है.
बता दें कि भंगाराम बाबा के मंदिर में एक गहरा गड्ढे नुमा घाट बना है, जिसे ग्रामीण कारागार कहते हैं. दोषी को सजा के रूप में गहरा गड्ढे में फेंक दिया जाता है. जिसके चलते लाट, बैरंग, आंगा, डोली,आदि को इसमें डाल दिया जाता है. कहा जाता है कि इसी तरह से देवी-देवताओं को दोषी करार होने के बाद सजा दी जाती है.