सिखों के पहले गुरु नानक जी जिन्होंने सिख धर्म को आगे बढ़ाने का काम किया. गुरु नानक जी के बाद कई सारे गुरु हुए जिन्होंने सिख धर्म को आगे बढाया लेकिन गुरु नानक जी ने गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी बनने के लिए 7 कठिन परीक्षाओं ली और इसके बाद ही उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया.
Also Read- गुरुद्वारा श्री कंगन घाट: गुरु गोविंद सिंह जी की बाल लीलाओं से है इस जगह की ख्याति.
गुरू नानक देव जी के पुत्र हो गये थे असफल
सिखों के दूसरे गुरू अंगद देव का जन्म 31 मार्च 1504 ईश्वी को हुआ था और मार्च महीने की ही 28 तारीख को 1552 ईश्वी में इन्होंने शरीर त्याग दिया. वहीं गुरू नानक जी ने इनकी भक्ति और आध्यात्मिक योग्यता से प्रभावित होकर इन्हें अपना अंग मना और अंगद नाम दिया. वहीं जब नानक देव जी ने जब अपने उत्तराधिकारी को नियुक्त करने का विचार किया तब उन्होंने अपने पुत्रों सहित लहणा यानी अंगद देव जी की कठिन परीक्षाएं ली और इस परीक्षा में जहाँ गुरू नानक देव जी के पुत्र असफल हुए तो वहीं गुरू भक्ति की भावना से ओत-प्रोत अंगद देव जी ही परीक्षा में सफल रहे लेकिन ये परीक्षा आसान नहीं थी.
गुरु नानक जी ने ली ये 7 परीक्षा
पहली परीक्षा- अगंद देव जी की पहली परीक्षा कीचड़ के ढे़र से लथपथ घास फूस की गठरी सिर पर उठाने की थी
वहीं दूसरी परीक्षा धर्मशाला में मरी हुई चुहिया को उठाकर बाहर फेंकने की थी जो काम केवल शूद्र किया करते थे.
तीसरी परीक्षा मैले के ढ़ेर से कटोरा निकालने की थी. अंगद देव जी गुरू की आज्ञा मानकर इस कार्य को किया लेकिन नानक देव के दोनों पुत्रों ने ऐसे करने से इंकार कर दिया था.
चौथी परीक्षा सर्दी के मौसम में आधी रात को धर्मशाला की टूटी दीवार बनाने की हुक्म था और अंगद देव जी इस काम के तुरंत तैयार हो गये.
पांचवी परीक्षा में सर्दी की रात में कपड़े धोने की थी और इसके लिए अगंद देव जी सर्दी के मौसम में रावी नदी के किनारे जाकर कपड़े धोने लग गये थे.
छठी परीक्षा बुद्धि और आध्यात्मिक योग्यता की जांच की थी. वहीं इस जाँच के लिए एक रात नानक देव ने अंगद देव से पूछा कि कितनी रात बीत चुकी है. वहीं अंगद देव ने उत्तर दिया परमेश्वर की जितनी रात बितनी थी बीत गयी. जितनी बाकी रहनी चाहिये उतनी ही बची है और ये जवाब सुनकर गुरु नानक देव समझ गये कि उनकी अध्यात्मिक अवस्था चरम सीमा पर पहुंच चुकी है. सातवीं परीक्षा लेने के लिए नानक देव जी अंगद देव को शमशान ले गये.
शमशान में एक मुर्दे को देखकर नानक देव ने कहा कि तुम्हें इसे खाना है, अंगद देव इसके लिए तैयार हो गये और तब नानक देव ने अंगद को अपने सीने से लगा लिया और अंगद देव को अपना उत्तराधिकारी बना लिया.
Also Read- बेअदबी का पूरा इतिहास: कैसे इस एक केस से बदल गया था पूरा पंजाब.