kinnar role in Maha Kumbh: कुंभ मेला (Maha Kumbh Mela) हर 12 साल में आयोजित होता है। इसे पूर्ण कुंभ मेला कहा जाता है। कुंभ मेला (Kumbh Mela) चार जगहों पर आयोजित किया जाता है: हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, नासिक। इस बार संगम की धरती पर जनवरी 2025 में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। महाकुंभ में जहां देशभर से संत-महात्मा जुटते हैं, वहीं आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित अखाड़े भी कुंभ और महाकुंभ मेले की शोभा बढ़ाते हैं। इसी कड़ी में किन्नर अखाड़ा भी विस्तार की योजना बना रहा है। भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं का हिस्सा बन चुके किन्नर अखाड़े ने अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने कदम बढ़ाने का फैसला किया है। इस पहल के जरिए किन्नर समुदाय की संस्कृति, परंपराओं और अनूठी जीवनशैली को दुनिया भर में फैलाने की योजना है।
और पढ़ें: बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं ने AC के पानी को ‘चरणामृत’ समझकर पिया, वाइरल हुआ VIDEO
किन्नर अखाड़े की संस्थापक ने दी जानकारी
किन्नर अखाड़े की संस्थापक और आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी (Kinnar Akhara Founder Dr. Laxmi Narayan Tripathi) ने कहा है कि उनका इरादा किन्नर अखाड़े को वैश्विक स्तर पर ले जाने का है। आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अनुसार, बैंकॉक, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, सेंट फ्रांसिस्को, अमेरिका, हॉलैंड, फ्रांस और रूस सहित दुनिया भर के विभिन्न देशों से 200 से अधिक ट्रांसजेंडर लोगों को किन्नर अखाड़े में शामिल किया जाएगा। किन्नर अखाड़े से जुड़े ट्रांसजेंडर लोग विशेष रूप से विदेशों में किन्नर अखाड़ा स्थापित करना चाहते हैं।
दर्जनों किन्नरों की घर वापसी भी कराई
बता दें, किन्नर अखाड़े (Kinnar Akhara) की स्थापना 2016 के सिंहस्थ कुंभ से पहले अक्टूबर 2015 में हुई थी। तब से किन्नर अखाड़ा लगातार बढ़ रहा है। हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपनाने वाले दर्जनों किन्नरों को भी किन्नर अखाड़े ने फिर से अपने साथ जोड़ा है। किन्नर अखाड़े ने अब तक कई महामंडलेश्वर और मंडलेश्वर भी बनाए हैं। इसके अलावा, किन्नर अखाड़े ने 2019 के कुंभ से पहले संन्यासी परंपरा के सबसे बड़े अखाड़े श्री पंचदश नाम जूना अखाड़े के साथ लिखित समझौता किया था। जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि के साथ किन्नर अखाड़ा भी इस बार शहर में आया है। किन्नर अखाड़े ने पहले ही कह दिया है कि वह भी कुंभ में भाग लेगा।
2014 में आया अस्तित्व में
साल 2014 में जब नालसा का जजमेंट आया था, तब प्रयागराज में पहला कुंभ आयोजित हुआ। उस समय किन्नर अखाड़े के अस्तित्व का भी पता चला था। किन्नर अखाड़ा उन सभी किन्नरों से जुड़ा है, जिनकी धार्मिक मान्यताएं हैं और जो धार्मिक विचारधाराओं से प्रभावित हैं। कुंभ मेले में किन्नर अखाड़े के सदस्यों ने तंबू लगाए। जहां लोगों ने खूब आशीर्वाद लिया। किन्नर समुदाय के सदस्यों ने आम लोगों को किन्नर सभ्यता के बारे में भी जानकारी दी।
किन्नर अखाड़े की भूमिका- kinnar role in Maha Kumbh
कुंभ में किन्नरों (Kumbh Mela Kinnar Akhara) की विशेष और ऐतिहासिक भूमिका होती है। भारतीय संस्कृति में किन्नरों को शुभ माना जाता है और उनकी उपस्थिति को शुभ माना जाता है। कुंभ मेले में किन्नरों का अपना अलग अखाड़ा होता है, जिसे किन्नर अखाड़ा के नाम से जाना जाता है।
यह अखाड़ा आध्यात्म, समर्पण और परंपराओं का प्रतीक है। किन्नर अखाड़े की स्थापना का उद्देश्य किन्नर समुदाय को समाज में सम्मान और धार्मिक स्थान दिलाना है। कुंभ के दौरान वे विभिन्न धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, शाही स्नान में शामिल होते हैं और अपने अखाड़े की विशेष परंपराओं का पालन करते हैं।
और पढ़ें: जानिए कौन हैं इंद्रेश उपाध्याय? हर कथा के लिए लेते हैं हज़ारों रुपए और लाखों में हैं फॉलोअर्स