Foreign Mahamandleshwar Jagadguru Mahakumbh 2025: भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का प्रतीक महाकुंभ न सिर्फ सनातन धर्म की गहराइयों को उजागर करता है बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर स्थापित भी करता है। प्रयागराज महाकुंभ के सेक्टर 17 में इसी उद्देश्य से विशेष मुक्तिधाम शिविर का आयोजन किया गया है। जगद्गुरु साईं मां लक्ष्मी देवी मिश्रा द्वारा लगाया गया यह शिविर अमेरिका, फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों से 40 साधु-संत भाग ले रहे हैं। ये साधु-संत विदेशों में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
कैंप में महामंडलेश्वर और उनकी भूमिका- Foreign Mahamandleshwar Jagadguru Mahakumbh 2025
इस कैंप में कुल नौ महामंडलेश्वर मौजूद हैं, जिनमें तीन महिलाएं भी शामिल हैं। यह विदेशी मूल के महामंडलेश्वर अपनी प्रतिभा, शिक्षा और अनुभव से दुनियाभर में सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं। इन महामंडलेश्वरों में से कोई पीएचडी धारक हैं, तो कोई साइकोलॉजिस्ट, म्यूजिशियन या इंजीनियर। इनमें से कुछ की उम्र 40 वर्ष है, तो कुछ 75 साल के हैं। यह महामंडलेश्वर न केवल सनातन धर्म के शाश्वत मूल्यों को समझाने में माहिर हैं, बल्कि आधुनिक जीवनशैली और तकनीकी ज्ञान को भी इसके साथ जोड़ने की क्षमता रखते हैं।
कौन हैं जगद्गुरु साईं मां?
जगद्गुरु साईं मां का जन्म मॉरीशस में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ। उन्हें 2007 में प्रयागराज अर्धकुंभ में वैष्णव साधु समाज द्वारा जगद्गुरु की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने 2019 के कुंभ मेले में अपने नौ ब्रह्मचारियों को अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा में महामंडलेश्वर की दीक्षा दिलाई। यह सम्मान किसी अंतरराष्ट्रीय समूह को पहली बार दिया गया था।
साईं मां स्वामी बालानंदाचार्य द्वारा 1477 ईस्वी में स्थापित अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े से संबंधित हैं। उन्होंने वाराणसी में शक्तिधाम आश्रम की स्थापना की, जो विश्वभर से छात्रों को आकर्षित करता है।
विदेशों में सनातन धर्म का प्रसार
साईं मां ने अमेरिका, जापान, कनाडा, यूरोप, इजराइल और दक्षिण अमेरिका जैसे देशों में आध्यात्मिक केंद्रों की स्थापना की। उनकी शिक्षाएं और प्रथाएं लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। इसके अलावा, वे प्राचीन वैदिक अनुष्ठानों और शक्तिशाली यज्ञों के माध्यम से व्यक्तियों और समाज को उन्नत करने का कार्य करती हैं।
आध्यात्मिक मंच पर साईं मां की पहचान
साईं मां ने आध्यात्मिकता में पीएचडी की है और विश्व धर्म संसद में प्रतिनिधि के रूप में काम किया है। उन्होंने इटली में पोप के ग्रीष्मकालीन निवास में संवाद में भाग लिया और दलाई लामा जैसे आध्यात्मिक व्यक्तित्वों के साथ मंच साझा किया। उनकी पुस्तक “कॉन्शियस लिविंग: द पॉवर ऑफ़ एम्ब्रेसिंग योर ऑथेंटिक यू” पांच भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है।
महाकुंभ में साईं मां का योगदान
प्रयागराज महाकुंभ के इस विशेष शिविर में साईं मां एक महीना कल्पवास करेंगी। इस दौरान वे यज्ञ और अनुष्ठान के माध्यम से धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करेंगी। उनकी उपस्थिति न केवल सनातन धर्म के अनुयायियों को प्रेरित करती है, बल्कि विश्वभर में इसकी महत्ता को स्थापित करने का भी कार्य करती है।
सनातन धर्म के प्रति विदेशी आस्था
महाकुंभ के इस आयोजन में साईं मां के साथ कई विदेशी अनुयायी भी शामिल हुए हैं। इन अनुयायियों का सनातन धर्म के प्रति समर्पण यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत है।