Female Naga Sadhus: प्रयागराज में भव्य महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है और इस बार कुंभ ऐतिहासिक बन रहा है। जिस तरह नागा साधु हमेशा से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहे हैं, उसी तरह इस बार महिला नागा साध्वियां भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं। पहली बार नागा पुरुषों के साथ महिलाएं भी दीक्षा समारोह में हिस्सा ले रही हैं। यह एक नई परंपरा की शुरुआत है, जो न केवल भारतीय संस्कृति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है, बल्कि आध्यात्मिक क्षेत्र में उनकी मजबूत उपस्थिति को भी रेखांकित करता है।
कौन होती हैं महिला नागा साध्वी? (Female Naga Sadhus)
महिला नागा साधु, जिन्हें ‘नागिन’, ‘अवधूतनी’ या ‘माई’ कहा जाता है, जूना अखाड़ा और अन्य अखाड़ों का हिस्सा होती हैं। वे वस्त्रधारी होती हैं और अपनी साधना और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करती हैं। जूना अखाड़ा में इनकी संख्या हजारों में है। 2013 में जूना अखाड़ा ने माई बाड़ा को दशनामी संन्यासियों के अखाड़े के रूप में मान्यता दी थी।
महिला नागा साध्वियों को ‘श्रीमहंत’ का पद दिया जाता है, और शाही स्नान के दौरान वे पालकी में चलती हैं। उन्हें अखाड़े का ध्वज और डंका धारण करने की अनुमति होती है, जो उनके सम्मान और महत्व को दर्शाता है।
कैसे बनती हैं महिलाएं नागा साधु?
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और चुनौतीपूर्ण होती है। यह यात्रा 10 से 15 वर्षों तक चल सकती है।
- गहन जांच-पड़ताल: नागा साधु बनने के लिए महिलाओं के सांसारिक जीवन, परिवार और मोह-माया से उनके पूर्णतया अलग होने की पुष्टि की जाती है।
- दीक्षा संस्कार: जब गुरु को यकीन हो जाता है कि महिला साध्वी बनने के लिए तैयार है, तब उन्हें दीक्षा दी जाती है। इस दौरान उनका मुंडन, पिंडदान और नदी स्नान होता है।
- गुरु द्वारा प्रतीक वस्त्र: दीक्षा के समय महिला साध्वी को गुरु द्वारा भभूत, कंठी, और वस्त्र प्रदान किए जाते हैं।
- नागा साध्वी की मान्यता: इन सभी प्रक्रियाओं के बाद महिला को अखाड़े में नागा साध्वी का दर्जा मिलता है और उन्हें ‘माता’ कहकर सम्मानित किया जाता है।
नागा साध्वी बनने की कठिनाइयां
महिला नागा साधुओं का जीवन बेहद कठिन होता है। उन्हें कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है और अपने गुरु को अपनी निष्ठा और योग्यता का प्रमाण देना होता है। नागा साध्वियों को दीक्षा से पहले तीन बार यह अवसर दिया जाता है कि वे सांसारिक जीवन में लौटना चाहें तो लौट सकती हैं। यह प्रक्रिया इसलिए होती है ताकि संन्यास जीवन अपनाने के बाद उन्हें किसी तरह का पछतावा न हो।
महाकुंभ में महिला नागा साध्वियों की बढ़ती भागीदारी
इस बार के महाकुंभ में महिला नागा साध्वियों की संख्या उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। जूना अखाड़े के अनुसार, केवल उनके अखाड़े में 200 से अधिक महिलाओं को दीक्षा दी जाएगी। यदि अन्य अखाड़ों को भी शामिल किया जाए तो यह संख्या 1000 से अधिक हो सकती है। यह दर्शाता है कि भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में महिलाओं की भूमिका तेजी से बढ़ रही है।
नागा साध्वियों का जीवन और महत्व
महिला नागा साध्वी जीवन में पूर्ण त्याग और समर्पण का प्रतीक होती हैं। उन्हें जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन करना पड़ता है, जो उनके सांसारिक जीवन के अंत और आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत का प्रतीक है।
जूना अखाड़े की संत दिव्या गिरी के अनुसार, नागा साध्वी बनने के बाद महिलाओं का जीवन कठिन, लेकिन आध्यात्मिक रूप से समृद्ध हो जाता है। उनका मुख्य उद्देश्य ईश्वर की साधना और समाज में आध्यात्मिक जागरूकता फैलाना होता है।