बुराई का होता है विनाश…रावण की तरह आपके दुखों का भी होगा नाश।
“इस पावन पर्व पर यही है हमारी आस।”
आज देशभर में दशहरे का त्योहार मनाया जा रहा है। ये त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य का प्रतीक होता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और माँ दुर्गा ने नौ रात और दस दिन के बाद महिसासुर पर विजय प्राप्त की थी। दशहरे के दिन देश में अलग अलग जगहों पर रावण के साथ साथ मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले का दहन किया जाता है।
दशहरे से जुड़ी कई बातें हम बचपन से सुनते और पढ़ते हुए आ रहे हैं। जैसे क्यों रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है?और कैसे भगवान राम ने रावण का अंत किया था? हमें ये भी मालूम है रावण कितना शक्तिशाली था और उसके 10 सिर थे। लेकिन क्या आपको ये मालूम है कि आखिर रावण को 10 सिर क्यों थे? उसको कैसे 10 सिरों की प्राप्ति हुई? इसके पीछे का रहस्य आखिर है क्या? अगर इन सबके बारे में नहीं पता, तो चलिए आज हम आपको बता देते हैं…
भगवान शिव ने दिया था वरदान
रावण को 10 सिर होने की वजह से उसे दशानन भी कहा जाता है। त्रिलोक विजेता रावण भगवान शिव का परम भक्त था। बताया जाता है कि एक बार रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी। जब इसके बाद भी भोलेनाथ तपस्या से प्रसन्न नहीं हुए, तो रावण ने अपना सिर भगवान शिव को अर्पित करने का फैसला लिया। भगवान शिव की भक्ति में लीन रावण ने अपना सिर काटकर उनको अर्पित कर दिया। लेकिन तब भी रावण की मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर की जगह एक और सिर प्रकट हो गया। फिर रावण ने उसे भी शिव जी को अर्पित कर दिया। ऐसे करते करते रावण ने भगवान शिव जी को अपने 9 सिर अर्पित किए। जब रावण ने दसवीं बार ऐसा करना चाहा तो खुद भगवान शिव प्रकट हो गए और वो रावण से प्रसन्न हो गए। इसके साथ ही शिव जी द्वारा रावण को दशानन होने का वरदान मिला।
बुराइयों के प्रतीक है रावण के दस सिर
रावण के जो 10 सिरों को 10 बुराइयों का प्रतीक माना जाता है। ये काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष और भय अवगुणों के प्रतीक माने जाते है। ऐसा कहा जाता है कि रावण भी इन नकरात्मक भावनाओं से ग्रस्त था, जिस वजह से ही अधिक ज्ञान प्राप्त होने के बावजूद उसका विनाश हो गया।