शनिवार 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रहे हैं। नवरात्रि साल में दो बार आने हिंदू धर्म का बेहद ही खास त्योहार है। नवरात्रि में 9 दिनों तक माता रानी के भक्त उनके 9 स्वरूपों की पूजा करते हैं। जिसमें से पहले दिन दुर्गा मां के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं और फिर 9 दिनों तक पूजा करते हैं।
दूसरे दिन होती हैं ब्रह्माचारिणी मां की पूजा
नवरात्रि में दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्माचारिणी रूप को पूजा की जाती हैं। ब्रह्म का मतलब तपस्या होता है, तो वहीं चारिणी का मतलब आचरण करने वाली। इस तरह ब्रह्माचारिणा का अर्थ हैं- तप का आचरण करने वाली। इसलिए इन्हें तपस्चारिणी भी कहते हैं।
मां ब्रह्माचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला और बाएं में कमंडल है। इनको ज्ञान और तप की देवी माना जाता हैं। कहते हैं कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां ब्रह्माचारिणी की पूजा करते हैं, उन्हें धैर्य के साथ और ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही साथ मनुष्य का कठिन से कठिन परिस्थिति में भी मन विचलित नहीं होता।
मां ब्रह्माचारिणी की कथा…
मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मचारिणी मां ने राजा हिमालय के घर पुत्री के तौर पर जन्म लिया था। तब भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए नारद जी की सलाह पर उन्होंने बेहद ही कठोर तपस्या की थी। इस तपस्या के चलते ही उनका नाम ब्रह्माचारिणी पड़ा। एक हजार सालों तक उन्होंने फल और फूल खाकर समय बिताया। साथ ही सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर तपस्या की। इतना ही नहीं उन्होंने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप में घोर कष्टों का भी सामना किया। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाएं और भोलेनाथ की अराधना करती रहीं। फिर बह्माचारिणी मां ने बिल्व पत्र भी खाना छोड़ दिया। माता ने कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर कठोर तपस्या की, जिसके चलते उनका शरीर एकदम सूख गया था।
तब देवता ऋषिगण और मुनि ने माता की तपस्या की तारीफ की और कहा कि हे मां, संसार में ऐसी तपस्या कोई और नहीं कर सकता। सिर्फ तुम ही कर सकती हैं। इस तपस्या से तुम्हें भोलेनाथ जरूर पति के रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से छोड़कर घर लौट जाओ जल्दी ही पिता बुलाने आ रहे हैं। ये सुनकर ब्रह्मचारी ने तपस्या करना छोड़ दिया और वो अपने पिता के घर वापस आ घई। वहां कुछ ही दिन बाद माता को शिव शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए।
ऐसे करें पूजा…
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। इसके बाद आसन पर बैठकर मां की पूजा करें। उन्हें फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि चढ़ाएं। मां को प्रसाद में पंचामृत जरूर चढ़ाएं। मां को मिठाई का भोग लगाएं। फिर उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें। मां के मंत्रों का जाप करें। फिर मां की आरती करें।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि –
मां दुर्गा का दूसरा रूप ‘ब्रह्मचारिणी’:
मां ब्रह्माचारिणी का मंत्र:
((‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’))
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।॥
(अर्थात जिनके एक हाथ में अक्षमाला और दूसरे हाथ में कमंडल हैं, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणी रूपा मां दुर्गा मुझ पर कृपा करें।)