Bal Naga Sadhu Details: प्रयागराज में महाकुंभ से पहले एक खास खबर ने सबका ध्यान खींचा। आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखने वाली आगरा की 13 साल की लड़की ने साध्वी बनने की इच्छा जताई। माता-पिता ने इसे ईश्वरीय संकेत मानते हुए अपनी बेटी को जूना अखाड़े को सौंप दिया। यह घटना सनातन परंपराओं और अखाड़ों में बाल नागा साधुओं की प्रथा पर कई सवाल खड़े करती है।
किशोरी का वैराग्य और साध्वी बनने का निर्णय- Bal Naga Sadhu Details
किशोरी की मां, रीमा सिंह ने बताया कि महाकुंभ के दौरान उनकी बेटी ने सांसारिक जीवन से वैराग्य का अनुभव किया। इसने उसे साध्वी बनने की प्रेरणा दी। अब वह जूना अखाड़े का हिस्सा बनकर गुरु परिवार में शामिल हो रही है। आने वाली 19 जनवरी को दीक्षा की प्रक्रिया पूरी की जाएगी और उसे नया नाम ‘गौरी’ दिया जाएगा।
क्या नाबालिग बन सकते हैं संन्यासी?
इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या कम उम्र में संन्यास लेना सही है। लेखक धनंजय चोपड़ा ने अपनी पुस्तक ‘भारत में कुंभ’ में इस पर चर्चा की है। उनके अनुसार, महाकुंभ के अखाड़ों में बाल नागा साधु आम बात हैं। ये बालक कुंभ के दौरान अखाड़ों में लाठी का अभ्यास, गुरु सेवा, भभूत रमाने और पूजा-अर्चना में भाग लेते हैं।
बाल नागा साधु कैसे बनते हैं?
बाल नागा साधु बनने की प्रक्रिया जटिल और अनोखी होती है।
- माता-पिता का समर्पण: कई बार निर्धनता, श्रद्धा, या अन्य पारिवारिक कारणों से माता-पिता अपने बच्चों को अखाड़ों को सौंप देते हैं। कुछ मामलों में नवजात शिशुओं (10-12 महीने के) को भी अखाड़ों को दान किया गया है।
- गुरु की शिक्षा: अखाड़े के गुरु इन बच्चों को वैदिक ज्ञान, पूजा पद्धतियों और संन्यासी जीवन के कठिन नियमों का पालन करना सिखाते हैं।
- दीक्षा और नामकरण: कुंभ के दौरान विशेष दीक्षा प्रक्रिया में इन बालकों को नागा साधु बनाया जाता है। इसके बाद इन्हें एक नया नाम और पहचान दी जाती है।
क्या बाल नागा साधुओं का पिंडदान होता है?
बाल नागा साधुओं का पिंडदान नहीं होता। उनकी दीक्षा प्रक्रिया में उम्र और संकल्प के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं। कुछ बाल नागा साधु अपनी इच्छानुसार 12 या 24 वर्ष में नागा अवस्था छोड़ सकते हैं। जो जीवनभर नागा रहने का संकल्प लेते हैं, उन्हें ‘अखंड भभूती’ कहा जाता है।
शिक्षा और प्रशिक्षण
पंचायती अखाड़ा नया उदासीन जैसे अखाड़ों में बाल नागा साधुओं को स्कूल भेजा जाता है। यहां वे पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ वैदिक और संस्कृत ज्ञान प्राप्त करते हैं। बड़े होने पर इन्हें शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा दी जाती है।
कुंभ में किशोरी का दीक्षा समारोह
किशोरी को साध्वी बनाने के लिए 19 जनवरी को विशेष प्रक्रिया अपनाई जाएगी। इसके बाद वह गुरु परिवार का हिस्सा बन जाएगी। उसे आधिकारिक रूप से नया नाम ‘गौरी’ दिया जाएगा। यह दीक्षा समारोह महाकुंभ के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं का प्रतीक है।
बाल नागा साधुओं की परंपरा पर चर्चा
बाल नागा साधुओं की परंपरा सनातन धर्म की जटिलताओं और गहराई को दर्शाती है। इनकी कम उम्र में संन्यास की राह चुनने की क्षमता और इसे निभाने का साहस आश्चर्यजनक है। यह परंपरा भारत की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक विविधता को दर्शाती है।