Baijnath Temple: हिमाचल प्रदेश के धौलाधार पर्वत श्रृंखला में स्थित बैजनाथ, एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो प्राचीन शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है और इसके पौराणिक संबंध इसे विशेष महत्व देते हैं। बैजनाथ का पहले नाम कीरग्राम था, और यह स्थान कीरात राजा के शासनकाल में प्रमुख था। कुछ लोग मानते हैं कि इस स्थान का नाम “कीरग्राम” इसलिए पड़ा क्योंकि यहां तोते यानी “कीर” अधिक संख्या में पाए जाते थे। समय के साथ यह नाम बैद्यनाथ और फिर बैजनाथ में बदल गया।
बैजनाथ मंदिर का ऐतिहासिक महत्व- Baijnath Temple
बैजनाथ मंदिर का निर्माण 1204 इस्वी में दो स्थानीय व्यापारियों अहुका और मन्युका ने किया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और नागर शैली में बनाया गया है। यह भगवान शिव के बैद्यनाथ स्वरूप को दर्शाता है, जिन्हें चिकित्सा के देवता के रूप में पूजा जाता है। मंदिर की शिलालेखों से पता चलता है कि इस मंदिर के निर्माण से पहले भी यहां एक शिव मंदिर था। मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है, और मंदिर की दीवारों पर अनेकों चित्रों की नक्काशी की गई है। शिला-फलक पर दो लंबी शिलालेखों में संस्कृत और टांकरी लिपि का उपयोग किया गया है, जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।
बैजनाथ की पौराणिक कथा
बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा त्रेता युग से जुड़ी हुई है, जिसमें रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की घोर तपस्या की। वह शिवजी से वरदान प्राप्त करना चाहता था और इसके लिए उसने अपने दस सिर काटकर हवन कुंड में अर्पित किए। शिवजी उससे प्रसन्न होकर प्रकट हुए और रावण से वर मांगने को कहा। रावण ने इच्छा व्यक्त की कि वह भगवान शिव के शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता है। शिवजी ने उसे दो शिवलिंगों का वरदान दिया, लेकिन यह चेतावनी दी कि इन्हें जमीन पर न रखना।
रावण जब इन शिवलिंगों को लेकर लंका लौटने चला, तो रास्ते में बैजनाथ क्षेत्र (जो अब गौकर्ण क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है) पहुंचा। यहां रावण को लघुशंका की आवश्यकता महसूस हुई, और उसने बैजु नामक ग्वाले को शिवलिंग सौंप दिए। जब बैजु कुछ समय बाद लौटा, तो उसने शिवलिंगों को जमीन पर रखा और फिर वह अपने पशु चराने चला गया। शिवजी की माया के कारण, जब बैजु शिवलिंगों को पुनः उठाने की कोशिश करता है, तो यह शिवलिंग वहीं स्थापित हो जाते हैं। जहां पहला शिवलिंग स्थापित हुआ, वह चंद्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ, और दूसरा शिवलिंग बैजनाथ के नाम से जाना गया।
मंदिर का महत्व और धार्मिक आकर्षण
बैजनाथ मंदिर के प्रांगण में कई छोटे मंदिर और एक नंदी बैल की मूर्ति भी स्थापित है। यह मंदिर पूरे वर्ष भर श्रद्धालुओं से भरा रहता है। विशेष रूप से माघ कृष्ण चतुर्दशी को यहां एक विशाल मेला लगता है, जिसे तारा रात्रि के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, महाशिवरात्रि और वर्षा ऋतु के दौरान भी इस मंदिर में शिवभक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।
बैजनाथ मंदिर का संरक्षण पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है और यह स्थल न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इसका बड़ा स्थान है। मंदिर में प्रवेश करते ही श्रद्धालु एक अलौकिक शांति का अनुभव करते हैं और भगवान शिव की भव्य उपस्थिति का अहसास करते हैं।