ये क्या हो गया ? कैसे हो गया? किसने किया? कुछ पता नहीं बस हो गया और यह देश की सबसे बड़ी पार्टी को इतना बड़ा झटका देकर गया कि उसके पैर के नीचे से जमीन खिसक गई. अब ये मत पूछना कि मैं कहाँ और किसकी बात कर रहा हूं. देश भर में चुनाव का माहौल है और कर्नाटक में विधानसभा तो यूपी में निकाय चुनाव के परिणाम आज आने हैं.वहीँ रुझानों में साफ़ दिख रहा है कि कहीं न कहीं कर्नाटक की जनता ने भाजपा को नकार दिया है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में BJP की हार का मुख्य कारण है केंद्रीय नेतृत्व द्वारा बीएस येदियुरप्पा की अनदेखी. येदियुरप्पा वो नेता हैं जो अपने दम पर Karnataka की राजनीति बदलने की ताकत रखते हैं लेकिन भाजपा ने उन्हें डाउनग्रेड कर खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी थी.
— Awanish Tiwari (@awanish_T) May 13, 2023
लेकिन चौकाने वाले बात ये हैं कि आखिर हुआ क्या? मोदी की इतनी रैलियां, इतने मुद्दे ‘द केरला स्टोरी’ से लेकर बजरंग दल फिर भी सब कैसे हो गया? चलिए आज जानते आज के इस विश्लेषण कि आखिर कहैं हुई भाजपा से वो चूक जिसने भाजपा से दक्षिण का हक़ छीन लिया.
कर्नाटक में आखिर क्यों लगाई कैबिनेट पॉवर?
विधान सभा चुनाव तो हर राज्य में होते हैं इलेक्शन कैंपेन भी होते हैं लेकिन आखिर कर्नाटक में भाजपा का इतना जोर लगाने के पीछे की वजह क्या थी ? क्या दक्षिण का गढ़ गवाने का डर था. या 5 साल का जो मौका मिला उसमे बीजेपी को भी पता था की काम नहीं सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ है और अब चुनाव आया तो सिर्फ मोदी के नाम पर वोट लेना चाहती हैं!
भारतीय जनता पार्टी के अपने आंकड़ों के मुताबिक उसने राज्य में चुनावों के ऐलान के बाद से 3116 रैलियां कीं. पार्टी के मुताबिक मंदिर और मठों में नेता 311 बार गए. 9125 नुक्कड़ सभाएं और 1377 रोडशो हुए. भाजपा ने इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को ही आगे किया. पीएम मोदी के अलावा 128 राष्ट्रीय नेता और 15 केंद्रीय मंत्री चुनाव प्रचार में लगे थे. पीएण मोदी के 26 कार्यक्रमों के अलावा गृह मंत्री अमित शाह ने भी 16 रैलियां और 15 रोडशो किए. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 10 रैली और 16 रोडशो किए. इसके अलावा स्मृति ईरानी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्वा सरमा, देवेंद्र फडणवीस और कई बड़े नेता कर्नाटक चुनाव प्रचार में ऐक्टिव रहे.
केंद्रीय मंत्रियों की बात करें तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, एस जयशंकर, अश्विनी वैष्णव, गजेंद्र शेखावत, वीके सिंह, अर्जुन मुंडा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जी किशन रेड्डी. अर्जुन राम मेघवाल, साध्वी निरंजन ज्योति समेत कई नेता प्रचार करने पहुंचे. बता दें कि बासवराज बोम्मई की सरकार इस बार एंटीइनकंबेंसी से भी जूझ रही है. इस बार पीएम मोदी ने स्थानीय मुद्दों को उठाया है.
क्या है हार की वजह?
दरअसल अगर आज कर्नाटक में भाजपा हार रही है तो उसकी सबसे बड़ी वजह है बी एस येदुरप्पा को पार्टी में हासिये पर धकेल देना. ये मैं नहीं आप खुद में देख सकते हैं है कि कर्नाटक का सीएम रहते हुए येदुरप्पा के ऊपर जिस तरह के खनन से लेकर तमाम क्षेत्रों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उन्हें सीएम पद से बर्खास्त किया और उसके बाद हर बार उन्हें इग्नोर करते रहे दरकिनार करते रहे. इतने सालों से चुनाव लड़ रही भाजपा शायद ये भूल गयी ति कि कर्नाटक की राजनीति सामुदायिक आधार पर लड़ी जाती है. और वही जीतता है जो इनके मेजोरिटी कम्युनिटी के दिलों पर राज करता है. दरअसल कर्नाटक में अगर मान के चलें तो 2/3 हिस्सा लिंगायत समुदाय से संबंध रखता है और येदुरप्पा भी उसी लिंगायत समुदाय से आते हैं.
ऐसे में किसी बड़े समुदाय के नेता को आप पार्टी में दरकिनार करते हैं तो ये बात लाज़मी है कि आपको उसका परिणाम भुगतना पड़ेगा. येदुरप्पा कर्नाटक का वो नेता है जो अपने दम पर कर्नाटक चुनाव के परिणाम को बदलने का माद्दा रखता है. कर्नाटक में राजनीतिक हवा किस ओर बहेगी वो येदुरप्पा तय करता है. फिर आप ऐसे नेता को कैसे दरकिनार कर सकते हैं. बीच में येदुरप्पा को लेकर भी ये खबरें सामने आई थी कि उनको सेंट्रल कैबिनेट में कमांड दी जाएगी वो भी नहीं हुआ. और जब चुनाव नजदीक आया तो एक महीने पहले भाजपा उनसे ये कह रही है कि कर्नाटक चुनाव आपके कंधे पर है. ऐसे में लिंगायत समुदाय को भाजपा ने येदुरप्पा के जरिए जो चोट पहुंचाई है वो परिणाम आज उसके इलेक्शन में दिख रहा है.
ऐसा नहीं है कि यही एकमात्र वजहें रही है और भी कई सारी वजह थी लेकिन येदुरप्पा कहीं न कहीं इनमे से सबसे खास हैं थे और रहेंगे और अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में अपनी पकड़ भजपा को तय करनी है तो इस बार येदुरप्पा को दरकिनार करने की कोशिश बिलकुल भी न करे उसी में भाजपा की भलाई है.