देश में हुए लोकसभा चुनाव में इस बार भी एनडीए ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है और एक बार फिर पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर अपने तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ले ली है। इस लोकसभा चुनाव नतीजों में सबसे चौंकाने वाली सीट पंजाब की फरीदकोट लोकसभा सीट रही है। जहां से सरबजीत सिंह खालसा ने जीत दर्ज की है। फरीदकोट लोकसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार सरबजीत सिंह खालसा ने शानदार जीत दर्ज की है। सरबजीत को 2 लाख 98 हजार 62 वोट मिले हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को 70 हजार 53 वोटों से हराया। वहीं फरीदकोट लोकसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के लिए चुनाव जीतना इतना आसान नहीं था। हालांकि हैरानी कि बात तो ये रही कि सरबजीत इससे पहले तीन चुनाव हार चुके थे। तो फिर इस बार ऐसा क्या हुआ कि उन्हें जीत मिली। आइए आपको बताते हैं सरबजीत सिंह खालसा के बारे में विस्तार से।
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फरीदकोट सीट क्यों हैं खास?
सबसे पहले, आइए जानते हैं कि पंजाब की फ़रीदकोट लोकसभा सीट क्यों खास है। फ़रीदकोट पंजाब में एक लोकसभा सीट और एक ज़िला दोनों है। इसका प्रशासनिक मुख्यालय फ़रीदकोट में है। फ़रीदकोट ज़िला, जो पहले फ़िरोज़पुर डिवीजन का हिस्सा था, को 1996 में बठिंडा और मानसा ज़िलों के साथ मिलाकर नया फ़रीदकोट डिवीजन बनाया गया। 2011 की जनगणना के अनुसार, फ़रीदकोट की आबादी 600,000 से ज़्यादा थी। फ़रीदकोट लोकसभा सीट नौ विधानसभा क्षेत्रों में विभाजित है: फ़रीदकोट, कोटकपूरा, जैतो, मोगा, बाघा पुराना, निहाल सिंह वाला, धर्मकोट, मुक्तसर में गिद्दड़बाहा और बठिंडा में रामपुरा फूल।
कौन हैं सरबजीत सिंह?
अब बात करते हैं सरबजीत सिंह खालसा की, मिली जानकारी के अनुसार सरबजीत बेअंत सिंह का बेटा है। यह वही बेअंत सिंह है जो 31 अक्टूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या में शामिल था। श्री अकाल तख्त साहिब पर हुए हमले के विरोध में बेअंत सिंह ने अपने दूसरे साथी सतवंत सिंह के साथ मिलकर इंदिरा गांधी की उनके आवास पर हत्या कर दी थी। दोनों ही पूर्व प्रधानमंत्री के अंगरक्षक थे।
वहीं, चुनाव आयोग को दी गई जानकारी के अनुसार 45 वर्षीय सरबजीत सिंह खालसा ने 10वीं तक पढ़ाई की है, जबकि उनकी संपत्ति एक करोड़ रुपये से अधिक है।
मां जीती थीं चुनाव
सरबजीत की मां बिमल कौर 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोकसभा के लिए चुनाव लड़ी थीं। वे रोपड़ निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुनी गईं। अब उनके बेटे ने इस विरासत को आगे बढ़ाया है। सरबजीत सिंह खालसा इससे पहले 2004 में बठिंडा से चुनाव लड़े थे, लेकिन 1 लाख 13 हजार वोटों से हार गए थे। 2007 में वे भदौर से विधानसभा के लिए लड़े, लेकिन उन्हें केवल 15,702 वोट मिले। सरबजीत 2014 और 2019 में बसपा के टिकट पर फतेहगढ़ साहिब से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।
इन मुद्दों पर लड़ा था चुनाव
सरबजीत सिंह खालसा ने 2015 में अपने चुनाव प्रचार के दौरान सिखों के धार्मिक ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का मुद्दा उठाया था। गौरतलब है कि इस घटना के बाद विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। इसके साथ ही खालसा ने ड्रग्स और किसानों के मुद्दे भी उठाए थे।
सरबजीत चुनाव कैसे जीते?
फरीदकोट सीट पर सरबजीत का मुकाबला आप उम्मीदवार करमजीत अनमोल और भाजपा के हंसराज हंस से था। राज्य में आप सरकार से लोग नाराज थे, जिसके चलते लोगों ने करमजीत अनमोल से दूरी बना ली थी। भाजपा की वजह से किसान हंसराज हंस से नाराज थे। वहीं कांग्रेस की अमरजीत कौर साहोके मजबूत उम्मीदवार साबित नहीं हुईं। इस वजह से लोगों का झुकाव सरबजीत खालसा की तरफ हुआ। इस तरह सरबजीत के सभी प्रतिद्वंद्वी उसके करीब भी नहीं आ सके।
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