‘वन नेशन वन इलेक्शन’ से बदल जाएगा भारतीय चुनाव का पूरा नक्शा, जानिए विधानसभाओं के बचे हुए कार्यकाल का क्या होगा? यहां पढ़ें हर सवाल का जवाब

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‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता मे आने के बाद लोगों से किए गए कई वादों में से एक है। मोदी अब 2014 में किए गए अपने वादे को पूरा करने जा रहे हैं। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव को आखिरकार बुधवार, 18 सितंबर को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। आम चुनावों से पहले ही संघीय सरकार ने इसके लिए मंच तैयार कर दिया था। वास्तविक कठिनाई इसके अमल को लेकर थी। । यदि यह निर्णय लागू किया जाता है, तो आने वाले वर्षों में कुछ विधानसभाओं का टर्म कम हो जाएगा तो कहीं टर्म समाप्त होने के बाद राट्रपति शासन लगाना पड़ सकता है। प्रशासन इस क्षेत्र में एक उपाय पेश करके राजनीतिक रुख अपना सकता है। वहीं, सरकार शीतकालीन सत्र में इस संबंध में विधेयक पेश कर राजनीतिक आकलन कर सकती है। हालांकि, सरकार ने संकेत दिया है कि कैबिनेट ने सिर्फ समिति की सिफारिश को ही स्वीकार किया है।

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पिछले साल बनाई गई थी कोविंद कमेटी

वन नेशन वन इलेक्शन की प्रक्रिया तय करने के लिए आठ लोगों का एक समूह बनाया गया था, जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे। कोविंद कमेटी (Ramnath Kovind Committee) का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। कोविंद कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, जाने-माने वकील हरीश साल्वे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, राजनीति विज्ञानी सुभाष कश्यप, पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) संजय कोठारी समेत 8 सदस्य हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को समिति का विशेष सदस्य बनाया गया है। वहीं 14 मार्च को समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी। बुधवार को मोदी कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी। समिति ने सिफारिश की है कि सभी विधानसभाएं 2029 तक चलती रहें। आईए अब आपको बताते हैं वन नेशन वन इलेक्शन कब लागू होगा और उन विधानसभाओं का क्या होगा जिनका कार्यकाल अभी पूरा नहीं हुआ है?

कैसे तैयार हुई रिपोर्ट?

कमेटी ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया। इनमें से 32 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया। वहीं, 15 दलों ने इसका विरोध किया। जबकि 15 दल ऐसे भी थे, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 191 दिनों की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमेटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की है।

कोविंद कमेटी ने इन देशों से लिया रेफरेंस

-एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए कई देशों के संविधान का विश्लेषण किया गया। समिति ने स्वीडन, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, फिलीपींस, इंडोनेशिया की चुनाव प्रक्रिया का अध्ययन किया।

-दक्षिण अफ्रीका में अगले साल मई में लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे। जबकि स्वीडन चुनाव प्रक्रिया के लिए आनुपातिक चुनाव प्रणाली अपनाता है।

-जर्मनी और जापान की बात करें तो यहां पहले पीएम का चयन होता है, फिर बाकी चुनाव होते हैं।

-इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव एक साथ होता है।

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?

सबसे पहले यह जान लेते हैं कि आखिर वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव है क्या। एक देश-एक चुनाव का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। देश के इतिहास को भी देखे तो आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन साल 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई थी। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। यहीं से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे

एक-देश-एक-चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह है की देश भर में हो रहे चुनावी खर्च में भारी कटौती देखी जाएगी। इसका उदाहरण आपको इससे मिल जायेगा कि 1951-52 में लोकसभा का पहला चुनाव हुआ था।  इस चुनाव में  53 दलों ने भागीदारी ली थी, 1874 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था और कुल खर्च लगभग 11 करोड़ रुपए आया था। अब बात करते हैं हाल ही में हुए 17वीं लोकसभा चुनाव के बारे में। इसमें 610 राजनीतिक पार्टियां थी और लगभग 9000 उम्मीदवार। इस चुनाव की खर्च पर नजर डाले तो इसमें तकरीबन 60 हज़ार करोड़ रुपए का खर्च आया था। यहां तक की अभी तक कुछ राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी खर्चों की जानकारी भी नहीं दी है। दूसरी तरफ वन-नेशन-वन-इलेक्शन से प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर भार कम होगा, सरकार की नीतियों का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा और यह भी सुनिश्चित होगा कि प्रशासनिक मशीनरी चुनावी गतिविधियों में फंसे रहने के बजाय विकास की गतिविधियों में लगेंगी।

कौन सी पार्टियां इसके समर्थन में?

तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), चिराग पासवान की एलजेपी, नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी सभी ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है। इसके अलावा, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), असम गण परिषद और शिवसेना के शिंदे गुट ने भी एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है।

इन पार्टियों ने किया विरोध

कांग्रेस वन नेशन, वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी है। इसके अलावा, समाजवादी पार्टी (SP), आम आदमी पार्टी (AAP), सीपीएम (CPM) समेत समेत पंद्रह पार्टियों ने इसका विरोध किया। वन नेशन, वन इलेक्शन में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) समेत पंद्रह पार्टियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

इन राज्यों की विधानसभाओं का कम हो सकता है कार्यकाल

अब बात करते हैं की अगर वन नेशन वन इलेक्शन लागू होता है तो कौन-कौन से राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल कम हो सकता है? बता दें, उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने कम हो जाएगा। गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 महीने कम हो जाएगा। असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी का मौजूदा कार्यकाल कम हो जाएगा।

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