देश के कई राज्यों में आने वाले दिनों में विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव (By-Elections) होने हैं, जिसको लेकर सभी राजनीति पर्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गई हैं। कोई भी पार्टी By-Elections में रिस्क नहीं लेना चाहती हैं। देश की सबसे ब देश के कई राज्यों में आने वाले दिनों में विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव (By-Elections) होने हैं, जिसको लेकर सभी राजनीति पर्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गई हैं। कोई भी पार्टी By-Elections में रिस्क नहीं लेना चाहती हैं। देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी (BJP) ने उपचुनाव की सबसे चर्चित उत्तरप्रदेश की आजमगढ़ (Azamgarh) लोकसभा सीट के लिए अपने उमीदवार के रूप में भोजपुरी सुपरस्टार और BJP नेता ‘दिनेश लाल यादव निरहुआ’ (Dinesh Lal Nirahua) के नाम की मुहर लगा दी है, जिससे निरहुआ फुले नहीं समां रहें हैं। इधर इसी सीट के लिए समाजवादी पार्टी (SP) ने ‘सुनील आनंद’ (Sunil Yadav) को अपना उमीदवार बनाया है।
बता दें , BJP ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ आजमगढ़ सीट से निरहुआ को ही उमीदवार बनाया था। हांलाकि वो भारी मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। Dinesh Lal Nirahua, 2019 लोकसभा चुनाव से पहले BJP में शामिल हुए थे, तब से ये आजमगढ़ में BJP के लिए प्रचार-प्रसार करते हैं और यहां के ज़रुरी मुद्दे उठाते रहते हैं। निरहुआ आजमगढ़ (Azamgarh) की राजनीति में सक्रिय रहते हैं। BJP की तरफ से एक बार ओर विश्वास जताने और आजमगढ़ से टिकट मिलने पर निरहुआ ने कहा कि इस बार विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाएगा, जिससे आजमगढ़ में बदलाव देखने को मिलेगा। निरहुआ ने उपचुनाव का पर्चा पर्चा खरीदने से पहले बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया।
अखिलेश के विधानसभा जाने से आजमगढ़ की सीट खाली
समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव आजमगढ़ से 2019 में भोजपुरी सुपरस्टार निरहुआ को हराकर सांसद चुने गए थे। इसके बाद साल 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने करहल विधानसभा सीट से विधायक का चुनाव जीत लिया। इसके बाद अखिलेश ने आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया, जिसके चलते आजमगढ़ लोकसभा सीट खाली हो गई। अब देखना दिलचस्प होगा कि निरहुआ अपनी 2019 वाली करारी हार का बदला समाजवादी पार्टी से कैसे लेते है और BJP के दोबारा लिए इस फैसले को सही ठहराने में सफल होते हैं या नहीं।
क्या कहता है, आजमगढ़ का जातीय समीकरण
बात उत्तरप्रदेश की चुनाव की हो और जातीय समीकरण की बात ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता क्यूंकि UP के चुनाव में हमेशा जातीय समीकरण का बड़ा रोल रहता है। आजमगढ़ में मुस्लिम या यादव की होती रही है। इस सीट से 90 के दशक से ही मुस्लिम और यादव चुनाव जीतते रहे हैं। आजमगढ़ लोकसभा में करीब 19 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 3.5 लाख से अधिक यादव, 3 लाख से अधिक मुसलमान और करीब 3 लाख दलित हैं। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत यादव ने सपा की ओर से जीत हासिल की थी। फिर 1999 में भी वे ही यहां से विधायक बने। इसी बीच 1998 के उपचुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) के अकबर अहमद डंपी जीते थे। अकबर 2008 के उपचुनाव में भी यहां से जीते थे। 2014 के आम चुनाव में जब रमाकांत यादव BJP की ओर से चुनाव लड़े तो उनके सामने सपा के संस्थापक और UP के पूर्व CM मुलायम सिंह रहे थे। ‘यादव बनाम यादव’ की लड़ाई में जीत ‘बड़े वाले यादव की हुई मुलायम ने रमाकांत को करीब 63 हजार वोटों के बड़े अंतर से BJP को पटखनी दी। इसके बाद जब 2019 का लोकसभा चुनाव आया तो मुलायम सिंह यादव ने अपने उत्तराधिकारी बेटे अखिलेश यादव को मैदान में उतारा। अखिलेश ने BJP के यादव उमीदवार और भोजपुरी अभिनेता निरहुआ को चुनाव में करारी शिकस्त दी थी।