Manmohan Singh and Nuclear Deal: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया (Manmohan Singh Death)। डॉ. सिंह ने अपने जीवन में देश की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे रिजर्व बैंक के गवर्नर, वित्त मंत्री, और प्रधानमंत्री जैसे प्रमुख पदों पर आसीन रहे। वहीं, मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में भारत की विदेश नीति को अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ाया था। उन्होंने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते के लिए बातचीत को आगे बढ़ाया और यूपीए सरकार में सहयोगी रहे वामपंथी दलों के कड़े प्रतिरोध के बावजूद समझौते को अंजाम दिया।
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1991: भारत की अर्थव्यवस्था का ऐतिहासिक मोड़- Manmohan Singh and Nuclear Deal
डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में वित्त मंत्री का पद संभाला, जब देश गंभीर भुगतान संतुलन संकट का सामना कर रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम था कि यह केवल दो सप्ताह के आयात के लिए पर्याप्त था। इस समय, साहसिक सुधारों की आवश्यकता थी, और नरसिंह राव सरकार ने डॉ. सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी।
डॉ. सिंह ने लाइसेंस राज को समाप्त कर अर्थव्यवस्था को उदारीकरण की राह पर अग्रसर किया। उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए भारत के द्वार खोले और देश को एक बाजार-आधारित आर्थिक मॉडल की ओर ले गए। उनकी नीतियों ने भारत की वार्षिक GDP विकास दर को 3-4% से बढ़ाकर 7.7% तक पहुंचा दिया, जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी।
विदेश नीति: अमेरिका के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौता- Manmohan Singh Biography
2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत की विदेश नीति को भी नया आयाम दिया। उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता। यह समझौता उस समय विवादों के केंद्र में रहा, जब वामपंथी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया और यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
डॉ. सिंह के नेतृत्व ने इस कठिन समय में मजबूती दिखाई। उन्होंने तमाम दबावों के बावजूद समझौते को आगे बढ़ाया। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और कुछ राजनीतिक दलों के समर्थन से उन्होंने इस डील को सफलतापूर्वक लागू करवाया। यह सौदा भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हुआ, जिसने भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया।
आर्थिक सुधार और विकास की कहानी
डॉ. सिंह ने आर्थिक सुधारों के क्षेत्र में जो कदम उठाए, वे भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुए। उनकी नीतियों ने न केवल देश को संकट से बाहर निकाला, बल्कि इसे दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया।
लेफ्ट पार्टियों का विरोध और सरकार की मजबूती
परमाणु समझौते के दौरान, वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद सरकार को विश्वास मत का सामना करना पड़ा, जिसमें डॉ. सिंह ने 275-256 मतों से जीत दर्ज की। डॉ. मनमोहन सिंह और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 18 जुलाई 2005 को इस समझौते की रूपरेखा की संयुक्त घोषणा की और यह औपचारिक रूप से अक्टूबर 2008 में लागू हुआ। यह उनकी कूटनीतिक कौशल और राजनीतिक दृढ़ता का प्रतीक था।
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