जब 1990 में देश में अयोध्या राममंदिर का मुद्दा काफी जोरों पर था। उस समय बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishn Advani) इसी बीच लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक ‘रथयात्रा’ निकालने की घोषणा कर दी थी। 25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू हुई आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। इस रथयात्रा के प्रबंधन की जिम्मेदारी भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली थी। जब आडवाणी की ये रथ यात्रा देशभर में चलते हुए बिहार पहुंची। तब उस समय के बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव (Lalu Yadav) ने आडवाणी की रथ यात्रा रोकने की ठान ली और इसके लिए पूरा प्लान बना लिया गया।
आडवाणी की रथयात्रा धनबाद से शुरू होने वाली थी और उन्हें सासाराम के नजदीक गिरफ्तार करने की योजना तैयार हो चुकी थी। हालांकि यह योजना लीक हो गई। बाद में आडवाणी का धनबाद में गिरफ्तारी का प्लान बना। लेकिन अधिकारियों के बीच मतभेद के बाद यह योजना भी फैल हो गई। इस बीच आडवाणी की यात्रा का एक पड़ाव समस्तीपुर बचा था। लालू यादव (Lalu Yadav) उन्हें यहां हर हाल में गिरफ्तार करना चाहते थे। आडवाणी समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे। ये पता लगते तुरंत लालू यादव ने अफसरों को निर्देश दिया कि उन्हें कहीं न जाने दिया जाए। लालू यादव सही मौके के इंतजार में थे। देर रात करीब दो बजे लालू यादव ने पत्रकार बनकर सर्किट हाउस में फोन किया। ताकि यह पता लगाया जा सके कि आडवाणी के साथ कौन-कौन है। फोन आडवाणी के एक सहयोगी ने उठाया। उन्होंने बताया कि आडवाणी सो रहे हैं और सारे समर्थक जा चुके हैं।
लालू को यही मौका सबसे सही लगा। 25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू हुई आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी, लेकिन 23 अक्टूबर को आडवाणी को बिहार में लालू यादव के प्लान के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। आडवाणी (Advani) की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की सियासत में मानो भूचाल मच गया। BJP ने केंद्र में वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसमें लालू प्रसाद यादव भी शामिल थे और इस तरह वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
लालू यादव (Lalu Yadav) द्वारा लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को रोकना, लालू यादव के राजनीतिक करियर में मील का पत्थर साबित हुआ और वो देश की राजनीति में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरने लगें।