द्रविड़ राजनीति का जनक सामाजिक कार्यकर्त्ता और राजनीतिज्ञ पेरियार को माना जाता है. इन्होंने जाति और धर्म के खिलाफ काफी लम्बी लड़ाई लड़ी है. दलित चिंतक पेरियार को दलितों का मसीहा कहा जाता है. पेरियार का जन्म 17 सितम्बर, 1879 में इरोड, जिला कोयंबटूर, मद्रास प्रेसीडेंसी में हुआ था, इनका पूरा नाम इरोड वेंकट रामासामी पेरियार था, इन्होंने जीवन भर दलितों के लिए संघर्ष किया था. पेरियार 20वीं शताब्दी में तमिलनाडु के प्रमुख नेता थे. जिन्होंने दलितों के शोषण और पिछड़े वर्ग के लिए काम किया था. इन्होंने 1919 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी. पेरियार गांधी से भी काफी प्रभावित थे. लेकिन कुछ समय बाद ही 1925 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद उन्होंने 1929-1932 ब्रिटेन, यूरोप और रूस का दौरा किया था, उसी दौरान 1939 में वो जस्टिस पार्टी के मुख्य व्यक्ति बन गए थे. पेरियार ने 1944 में जस्टिस पार्टी का नाम द्रविदर कझकम कर दिया गया. यह पार्टी दो भाग द्रविड़ कझकम और द्रविड़ मुनेत्र कझकम में बंट गई थी. लेकिन क्या आप जानते है कि इतने प्रसिद्ध नेता विवाद में कैसे आ गए थे? क्यों पेरियार की किताब सच्ची रामायण से विवाद हो गए थे?
दोस्तों, आईये आज हम आपको बताएंगे कि पेरियार क्यों सच्ची रामायण से विवादों में आ गए थे?
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सच्ची रामायण
1925 में, एक ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा कांग्रेस द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में एक ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर-ब्राह्मण छात्रों के प्रति भेदभाव करते देख उनके मन में कांग्रेस से भर गया था, जिसके चलते उन्होंने कांग्रेस को त्याग पत्र दे दिया और आत्म सम्मान आन्दोलन चलाया.
पेरियार की किताब ‘सच्ची रामायण’, जिसको 1944 में तमिल भाषा में, अंग्रेज़ी ‘द रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ नाम से 1959 में और हिन्दी में 1968 में प्रकाशित किता गया था. यह एक विवादित किताब थी जिसमे पेरियार ने भगवान राम सहित रामायण के कई चरित्रों को खलनायक के रूप में लिखा गया है. इसमें उन्होंने राम के विचारों को लेकर सवाल खड़े किए थे और साथ ही राम-रावण की तुलना पर भी उनके अलग विचार थे. पेरियार को ऐसे क्रन्तिकारी के रूप में माना जाता है जिन्होंने मुर्तिपूजन और आडम्बर के खिलाफ लोगो को जागरूक किया था.
सच्ची रामायण किताब ने छपते ही ब्राह्मणवाद को हिला दिया, हिन्दू धर्म के रक्षक उसके विरोध में सड़कों पर उतर गए थे . तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने दबाव में आकर 8 दिसम्बर 1969 को धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में किताब को जब्त कर लिया. मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया.
इस किताब पर कई विवाद हुए है, कुछ सालों पहले भी तमिलनाडु में पेरियार की मूर्ति को भी इस किताब पर हुए विवादों के चलते नुकसान पहुंचने की कोशिश की गई थी. पेरियार की मूर्ति को तोड़ने के लिए उस समय हथौड़े का इस्तेमाल किया गया था.
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