आखिर क्या है UAPA एक्ट? क्यों इसको लेकर गरमाई रहती है देश की राजनीति? यहां जानिए इसको लेकर सबकुछ…

आखिर क्या है UAPA एक्ट? क्यों इसको लेकर गरमाई रहती है देश की राजनीति? यहां जानिए इसको लेकर सबकुछ…

यूएपीए एक्ट यानी कि Unlawful Activities Prevention Act के बारे में आज हम पूरे विस्तार से जानेंगे। जानेंगे कि आखिर इसके किसी व्यक्ति पर लगाए जाने के क्या प्रावधान है और किस नियम और कानून से ये एक्ट बंधा हुआ है? 

क्या आपको ये पता है कि गैरकानूनी गतिविधियों के अगेंट्स लगाया जाने वाला ये UAPA एक्ट काफी खतरनाक होता है और इसके तहत काफी कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान है। इस एक्ट का दायरा काफी बड़ा है। ना सिर्फ क्रिमिनल यहां तक की वैचारिक विरोध, आंदोलन या दंगे  भड़काने जैसी हालत में भी ये एक्ट किसी पर लगाया जा सकता है। 

दिल्ली दंगों से जुड़े केसेज में भी पुलिस ने UAPA एक्ट लगाया था और इसी एक्ट के अंडर JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद को अरेस्ट किया गया है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर यह यूएपीए एक्ट क्या है और किन हालातों में इसे किसी के अगेंट्स लगाया जाता है।

क्या है UAPA? 

गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम का मेन काम है आतंकी गतिविधियों को रोकना। जिसके तहत ऐसे आतंकियों, क्रिमिनल्स या फिर अन्य लोगों की पहचान की जाती है जो कि आतंकी एक्टिविटीज से जुड़े होते हैं और इन गतिविधियों के लिए लोगों को तैयार करते हैं या फिर ऐसी एक्टिविटीज को बढ़ावा देते हैं। ऐसे केसेज में NIA यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी के पास काफी केसेज होती हैं। 

यहां तक कि एनआईए महानिदेशक अगर चाहें तो किसी केस की जांच के  वक्त वो जुड़े हुए शख्स की संपत्ति को भी कुर्क-जब्ती तक कर सकता है। UAPA कानून आया साल 1967 में जिसे संविधान के आर्टिकल 19(1) के तहत दी गई बेसिक फ्रीडम पर तर्कसंगत सीमाओं को लगाने के लिए बनाया गया। पिछले कुछ साल जब बीत गए तो आतंकी एक्टिविटीज से जुड़े POTA और TADA जैसे लॉ को खत्म किए गए, लेकिन UAPA कानून अब भी बाकी है और तो और इसको और पॉवर देकर पहले से ज्यादा मजबूत कर दिया गया है। 

हाल के चेंजेज की बात करें तो अगस्त 2019 में ही संसद में इस कानून का संशोधन बिल पास कर दिया गया। फिर इस कानून को पावर दे दिया गया कि जांच के आधार पर किसी व्यक्ति को भी जांच के बेस पर टेरेरिस्ट घोषित कर सकते हैं। पहले ये पावर किसी संगठन तक के लिए सीमित था। इसका मायने ये हुआ कि इस एक्ट के अंडर आतंकवादी संगठन किसी संगठन को घोषित किए जाने का ही नियम था बस। इस कानून को लेकर नियम कहता है किसी शख्स पर बस शक के बिनाह पर ही उसे टेरेरिस्ट घोषित कर सकते हैं और तो और इसके लिए उस शख्स का किसी टेरेरिस्ट ग्रुप से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं। 

टेरेरिस्ट का टैग हटवाने के फिर शख्स को जद्दोजहद करनी पड़ती है। उसे कोर्ट न जाकर सरकार की बनाई रिव्यू कमेटी के पास जाना होता है और फिर शख्स कोर्ट में अपील कर सकता है।

आखिर इस कानून का दायरा कितना बड़ा है? 

UAPA कानून के दायरा कितना बड़ा है इसे ऐसे ही समझ सकते हैं कि इसको अपराधियों के अलावा एक्टिविस्ट्स यहां तक कि आंदोलनकारियों पर भी यूज किया जा सकता है। UAPA के सेक्शन 2(o) के तहत गैरकानूनी गतिविधियों में भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल करने को भी रखा गया है। वैसे  एक्टिविस्ट इस पर आपत्ति करते हैं कि महज सवाल करना ही इलीगल कैसे हुआ। ‘भारत के खिलाफ असंतोष’ का फैलाव करना भी इस कानून के तहत क्राइम है। वैसे असंतोष को पूरी तरह एक्सप्लेन नहीं किया गया है।

UAPA में सेक्शन 18, 19, 20, 38 और 39 के तहत मामले को दर्ज किया जाता है और सेक्शन 38 तब लगाई जाती है, जब आरोपी के आतंकी संगठन से जुड़े होने के बारे में जानकारी मिलती है। सेक्शन 39 आतंकी संगठनों की हेल्प करने पर लगती है। इस एक्ट के सेक्शन 43D (2) में ये आता है कि किसी शख्स की पुलिस कस्टडी को डबल करने का भी प्रावधान किया गया है। इस कानून के अंडर 30 दिन की कस्टडी पुलिस को दी जाती है और 90 दिन की भी न्यायिक हिरासत में आरोपी को रखा जा सकता है। जानकारी दे दें कि बाकी के कानूनों में मैक्सिमम ड्यूरेशन 60 दिन का दिया जाता है।

क्या अग्रिम जमानत मिल पाती है?

अगर UAPA के तहत किसी शख्स पर केस दर्ज किया गया है तो उसको अग्रिम जमानत नहीं मिल पाती। यहां तक कि पुलिस ने उसे छोड़ भी दिया हो तो भी उसको अग्रिम जमानत मिल ही नहीं सकती। दरअसल, इस कानून के सेक्शन 43D (5) पर गौर करें तो आरोपी शख्स को  कोर्ट जमानत नहीं दे सकता, अगर  शख्स के अगेंट्स प्रथम दृष्टया केस बनता है। गैरकानूनी संगठन हो या फिर कोई टेरेरिस्ट ग्रुप हो या फिर और संगठन इसकी सदस्यता अगर किसी शख्स के पास है तो इसमें कड़ी से कड़ी सजा का भी प्रावधान किया गया है। सरकार ने जिन घोषित आतंकी संगठन नाम लिया हुआ है अगर उस संगठन की सदस्यता अगर पाई जाती है आरोपी के पास तब तो उसे आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकती है, लेकिन कानून में ‘सदस्यता’ को भी पूरा पूरा एक्सप्लेन नहीं किया गया है। कई एक्टिविस्टों पर इस कानून के अंडर केस कर दिया गया है।

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