स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पूर्व Deputy Prime Minister बाबू जगजीवन राम के बारे में आज हम कुछ खास बातें जानेंगे, जो दलितों के रहनुमा थे और बिहार के एक दलित परिवार में पैदा हुए। जगजीवन राम को ‘बाबूजी’ कहकर बुलाया जाता था। एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर उनकी पहचान तो थी ही, इसके अलावा सामाजिक न्याय के योद्धा साथ ही दलितों के विकास के लिए हमेशा ही आवाज उठाने वाले शख्स के तौर पर पहचाना जाता रहा। उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि समय समय पर उनको याद किया जाता है।
जगजीवन राम खुद 6 भाई बहन थे और जब वो आरा के एक स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, तभी उन्होंने दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को देखा। आगे चलकर इन सामाजिक भेदभाव के खिलाफ काफी मजबूती से विरोध किया और इस भेदभाव के अगेंट्स कई कदम भी उठाए। जगजीवन राम साल 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए और साल 1936 से 1986 तक लगातार 40 साल तक सांसद रहे और ये एक वर्ल्ड रिकॉर्ड रहा।
ये तो उनका बेहद छोटा सा इंट्रोडक्शन रहा लेकिन उन्होंने जो समाज में अपना योगदान दिया उसके बारे में जरूर जानना चाहिए। साल 1934-35 में दलितों के अधिकारों के लिए बनाए गए संगठन ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस लीग में उन्होंने खास योगदान दिया। वो दलितों के लिए सामाजिक समानता साथ ही साथ समान अधिकारों के पक्षधर थे और साल 1935 में हिंदू महासभा के एक सत्र में उन्होंने प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में बेहद बेसिक सी मांग थी कि पीने के पानी के लिए दलितों को कुएं में जाने की इजाजत साथ ही मंदिर में उनके प्रवेश का हक दिया जाए।
साल 1935 में पहली बार रांची में हैमंड कमीशन के आगे दलितों के वोट करने के राइट की मांग जगजीवन राम ने की थी। साल 1940 के दौर में उनको ब्रिटिश शासन के अगेंट्स ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से संबंधित पोलिटिकल एटिविजीज की वजह से दो बार जेल जाना पड़ा। जगजीवन राम ने सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण, भूमिहीन किसानों को हक, दलितों को शिक्षा का हक और जातिवादी मानसिकता को चेंज करने के लिए भी लंबी लड़ाई लड़ी।
एक ऐसा दौर चला जब कोई आजादी के लिए तो कोई दलितों के हक के लिए लड़ रहा था पर बाबूजी उन गिने-चुने नेताओं में से थे जो कि दोनों के लिए एक साथ लड़ाई लड़ते रहे। उनका कहना था कि “जातिप्रथा और लोकतंत्र एक दूसरे के परस्पर विरोधी हैं।” जगजीवन राम यानी कि बाबूजी का देश के लिए काफी योगदान रहा चाहे आजादी से पहले हो फिर बाद में आजादी से पहले बनी सरकारों में थे वो और साल 1946 में जवाहर लाल नेहरु की प्रोविजिनल कैबिनेट में उनको जगह दी गई थी सबसे युवा मंत्री के तौर पर।
देश आजाद हुआ और 1952 तक श्रम मंत्रालय को बाबूजी ने संभाला। फिर साल 1952-56 तक संचार मंत्री के तौर पर काम करते रहे और 1970 तक किसी न किसी मंत्री पद पर बैठे ही रहे। साल 1970 के आम चुनावों में फिर जीत गए बाबू जी और इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा मंत्री बन गए। फिर साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वहीं रक्षा मंत्री थे। जगजीवन राम ने साल 1977 में कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहा और फिर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम से एक पार्टी का घटन किया। फिर इस पार्टी का गठबंधन साल 25 मार्च 1977 को जनता पार्टी से हो गया और साल 1977–79 तक जगजीवन राम देश के उपप्रधानमंत्री पद पर रहे।