देशभर में लोकसभा चुनाव शुरू हो गए हैं। सभी पार्टियों में जीत की होड़ मची हुई है। इस बीच बीते दिन कोर्ट में चुनाव से जुड़ी एक याचिका दायर की गई है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिकांश मतदाताओं द्वारा नोटा का विकल्प चुनने की स्थिति में चुनाव आयोग से दिशानिर्देश मांगे हैं। नोटा याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में मांगे निर्देश
सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में ऐसा नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है कि अगर नोटा को बहुमत मिलता है तो किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में हुए चुनाव को रद्द घोषित कर दिया जाए और उस निर्वाचन क्षेत्र में नए सिरे से चुनाव कराए जाएं। याचिका में यह भी कहा गया कि एक नियम बनाया जाना चाहिए कि नोटा के माध्यम से कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को 5 साल की अवधि के लिए सभी चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए और नोटा को “काल्पनिक उम्मीदवार” माना जाएगा।
सूरत लोकसभा सीट के नतीजों का जिक्र
रिपोर्ट्स की मानें तो यह याचिका जाने-माने मोटिवेशनल स्पीकर शिव खेड़ा ने दायर की है। सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया और इस संबंध में दिशानिर्देश मांगे। कोर्ट ने आयोग को नोटा से जुड़े नियमों की जांच करने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा कि हम जांच करेंगे। नोटिस जारी करेंगे। यह याचिका भी चुनाव प्रक्रिया को लेकर है। वहीं, खेड़ा ने अपनी याचिका में गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर भाजपा नेता की निर्विरोध जीत का भी जिक्र किया और कहा कि वह वहां दौड़ में अकेले थे, इसलिए जीत गये। उन्होंने कहा कि अब कोई उम्मीदवार नहीं बचा है, इसलिए नोटा को भी उम्मीदवार घोषित किया जाना चाहिए। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ याचिकाकर्ता शिव खेड़ा द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार करने के लिए सहमत हुई।
क्या है नोटा?
नोटा एक मतपत्र विकल्प है जो मतदाताओं को मतदान प्रणाली में सभी उम्मीदवारों के प्रति अस्वीकृति व्यक्त करने की अनुमति देता है। भारत में नोटा को 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लागू किया गया था, हालांकि इसमें इनकार करने की क्षमता शामिल नहीं है। सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार चुनाव जीतता है, भले ही NOTA वोटों की संख्या कितनी भी हो।
आंकड़ों पर नजर डालें तो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान नोटा को 1.06 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, अगर 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस वक्त नोटा को 1.08 फीसदी वोटिंग हुई थी। इसका मतलब यह है कि नोटा के प्रति लोगों का रुझान कम हो गया है।