साल 1984 में एक राजनैतिक संगठन अस्तित्व में आया जिसका नाम रखा गया बहुजन समाज पार्टी और इस पार्टी ने एक ऐसे नेता को जन्म दिया जो आगे जाकर कद्दावर नेता कहलाई। हम बात कर रहे हैं मायावती की, लेकिन क्या आपको ये पता है कि राजनीति की इस कच्ची खिलाड़ी को कैसे बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने एक कद्दावर नेता बना दिया? चलिए इस पर ही गौर करते हैं…
कांशीराम ने 14 अप्रैल, 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। बसपा ने सियासत में जो भी अचीव किया उसमें कांशीराम एक धुरी की तरह रहे और पार्टी को तो पहचान दिलाई ही इसके अलावा उन्होंने मायावती को भी एक ऐसे मुकाम पर लेकर गए जहां 3 जून, 1995 को प्रदेश की पहली बार मुख्यमंत्री तक बन गई।
कांशीराम और मायावती की पहली मुलाकात कैसे हुई इस पर बात करते हैं। मायावती जब राजनारायण से भिड़ गई तब जाकर दलित नेता कांशीराम मायावती के बारे में सुन पाए। मायावती उन्हीं राजनारायण से भिड़ गई थीं जिन्होंने आपातकाल के वक्त चुनाव में देश की तब की पीएम इंदिरा गांधी मात दी थी।
एक रात कांशीराम बिना सूचना दिए मायावती के घर गए। तब मायावती IAS की तैयारी करने में लगी थी। मायावती से कांशीराम मिले और उनसे खासा प्रभावित हुए। करीब एक घंटा कांशीराम उनके घर उनके परिवार के साथ रहे। उन्होंने मायावती से कहा था तब कि तुम्हारे इरादे, हौसले और कुछ खास बातें मेरी नजर में आई हैं। तुम्हें इतनी बड़ी लीडर बना दूंगा मैं एक दिन कि एक कलेक्टर नहीं बल्कि पूरा का पूरा कलेक्टर तुम्हारे सामने खड़े होंगे फाइल लेकर। तब जाकर लोगों के लिए तुम ठीक से काम कर सकोगी। ये बातें जब हुई जब राजनीतिक की कच्ची खिलाड़ी के तौर पर मायावती की पहचान थी। कांशीराम की बातों से मायावती भी खूब प्रभावित हुई थी और राजनीति के लिए उन्होंने अपने जीवन को चुन लिया। एक वक्त आया जब मायावती के पिता ने सीधे तौर पर घर या राजनीति में से एक को चुनने को कहा जिस पर मायावती ने राजनीति को चुना।
एक बार पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ से कांशीराम को प्रेसिडेंट के पद का प्रस्ताव दिया, लेकिन कांशीराम ने ये पद भी लेने से इनकार कर दिया और कहा कि वो राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। कांशीराम राष्ट्रपति बनकर साइड होना नहीं चाहती थी। जिस मुकाम पर आज मायावती हैं उसमें कांशीराम का अहम योगदान रहा। काफी समय से मायावती का दलित वोटों पर एकक्षत्र प्रभाव रहा है और ये सब अगर हुआ है तो कांशीराम की मेहनत है। इसके पीछे और इस बात तो कोई इनकार नहीं कर सकता है।