पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में है। 48 साल बाद उनके मर्डर केस की फाइल दोबारा खुलने वाली है। दरअसल, ललित नारायण मिश्रा के पोते वैभव मिश्रा ने हत्याकांड की दोबारा निष्पक्ष तरीके से जांच कराने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। हाई कोर्ट इस याचिका पर 16 मई को सुनवाई करेगा। जस्टिस सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने वैभव मिश्रा की याचिका को दोषियों की अपील के साथ सूचीबद्ध कर दिया। अपील में हत्या के आरोप में दोषी ठहराए जाने और उम्रकैद की सजा को चुनौती दी गई है। पिछले साल 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने वैभव को दोषियों की अपील पर अंतिम सुनवाई में सहायता करने की अनुमति दी थी, जिसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री के पोते ने हाई कोर्ट का रुख किया था।
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हाल के एक आदेश में, न्यायमूर्ति मनोज जैन की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि “वर्तमान आवेदन विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 13467/2023 वैभव मिश्रा बनाम सीबीआई एवं अन्य पर 13 अक्टूबर, 2023 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर किया जा रहा है।” पीठ ने कहा कि ‘यह आवेदन मुख्य अपील सीआरएल.ए. 91/2015 के साथ 16 मई 2024 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।’
ललित नारायण मिश्रा की हत्या कैसे हुई?
2 जनवरी 1975 को बड़ी लाइन का उद्घाटन करने कांग्रेस नेता व वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ललित नारायण मिश्र समस्तीपुर आये थे। वह मंच पर अपना भाषण पूरा कर चुके थे और उतरने ही वाले थे। तभी दर्शकों में से किसी ने ग्रेनेड फेंक दिया। ये ग्रेनेड मंच पर गिरा और ललित बाबू के पास फट गया। इसके बाद उन्हें और उनके छोटे भाई को गंभीर चोटें आईं। जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए समस्तीपुर से दानापुर ले जाया गया, जहां 3 जनवरी, 1975 को उनकी मृत्यु हो गई।
ललित नारायम मिश्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विश्वस्त माने जाते थे। उस दिन वह समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर बड़ी लाइन का उद्घाटन करने पहुंचे थे।
मौत पर खड़े हुए थे कई सवाल
ललित बाबू की हत्या के बाद से परिजन कह रहे थे कि उनके इलाज में भी साजिश हुई है। बताया जाता है कि ललित बाबू को ट्रेन से पटना भेजा जाना था। 32 किलोमीटर की दूरी तय करने में ट्रेन को 4 घंटे लग गए। इस दौरान ट्रेन को कई बार रोका गया। जिस वजह से उनके इलाज में देरी हुई।
आरोपियों को मिली सजा
दिसंबर 2014 में, यहां की निचली अदालत ने पूर्व रेल मंत्री और दो अन्य की हत्या के आरोप में चार लोगों, संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपालजी और वकील रंजन द्विवेदी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।