EVM को लेकर विपक्ष तो पहले से ही शोर मचा रहा है लेकिन अब इस बहस में दलित समुदाय भी कूद पड़ा है। दरअसल, जब दलितों से पूछा गया कि क्या इस बार भी मोदी सरकार सत्ता में आएगी तो उन्होंने साफ कहा कि अगर EVM है तो जरूर आएगी, अगर EVM नहीं है तो बीजेपी के सत्ता में लौटने की कोई संभावना नहीं है। अब सोचने वाली बात है कि विपक्ष के साथ-साथ दलित समुदाय भी EVM का इतना विरोध क्यों कर रहा है? क्या इसके पीछे बीजेपी से नाराजगी है या फिर दलित समुदाय अपने समुदाय की नेता बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष मायावती के राजनीति से गायब होने पर दुख जता रहे हैं। आइए इस आर्टिक्ल में आपको बताते हैं।
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क्यों होता है EVM का विरोध
पहले जब बैलेट पेपर का प्रचलन था तो वोट डालने, उसे सुरक्षित रखने और एक-एक वोट की गिनती करने में काफी समय लगता था। लेकिन EVM के इस्तेमाल ने इस पूरी प्रक्रिया को आसान बना दिया है। हालांकि इसी EVM को लेकर पिछले कुछ सालों से जमकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। राजनीतिक दलों के साथ-साथ कुछ आम लोग भी EVM पर सवाल उठाते रहे हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि EVM में कोई गड़बड़ी नहीं है। लेकिन पिछले 15 सालों से EVM पर लगातार हमले हो रहे हैं। EVM में कुछ जगहों पर गड़बड़ियां भी पाई गईं। ईवीएम के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि रिमोट कंट्रोल या किसी अन्य तरीके से वोटों को बदला जा सकता है और चुनाव परिणाम इच्छानुसार लाया जा सकता है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हैदराबाद के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर वी नरहरि ने EVM के विरोध में गंभीर शोध किया है और अपने प्रयोगों से यह साबित किया है कि कितनी आसानी से EVM से छेड़छाड़ की जा सकती है। इन सबके बावजूद देश में EVM से चुनाव कराने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन 2024 के चुनाव को लेकर विपक्ष EVM की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने पर अड़ा रहा। लेकिन चुनाव फिर भी EVM से हो रहे हैं। वहीं अगर बैलेट पेपर के माध्यम से चुनाव कराए जाते हैं, तो भारत की चुनाव प्रक्रिया लंबी हो जाएगी और खर्च भी बढ़ जाएगा। लेकिन दुनिया भर के विकसित देशों में बैलेट पेपर से ही चुनाव कराए जाते हैं, यहां तक कि अमेरिका में भी जहां पहली बार EVM बनाई गई थी।
बहुजन समाज पार्टी ने किया EVM का विरोध
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती कई बार EVM का विरोध कर चुकी हैं। साल 2022 में उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे के तुरंत बाद ही मायावती ने EVM की भूमिका पर सवाल उठाए थे। वहीं पिछले साल उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त से मत पत्र से चुनाव कराए जाने के लिए पुरजोर मांग करते हुए कहा था कि देश में EVM के जरिए चुनाव को लेकर यहां की जनता में किस्म-किस्म की आशंकाएं व्याप्त हैं और उन्हें खत्म करने के लिए बेहतर यही होगा कि अब यहां आगे छोटे-बड़े सभी चुनाव पहले की तरह मत पत्रों से ही कराए जाएं।
EVM पर दलितों का क्या है कहना
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर जब न्यूज 24 ने दलित समुदाय के कुछ लोगों से बात की तो यह बात सामने आई कि आज भी दलित वोट मायावती के पक्ष में हैं। दलित मतदाताओं का कहना है कि मायावती के प्रति उनका समर्थन वास्तविक स्क्रीन पर नजर नहीं आता क्योंकि EVM वोटों में हेराफेरी करती है। अगर बैलेट पेपर से वोट किया जाए तो पूरे देश में मायावती के समर्थन का डंका बजता नजर आएगा। वहीं मतदाताओं ने मायावती सियासी समीकरण से बाहर होने पर भी EVM को जिम्मेदार ठहराया।
वहीं अगर मायावती के सियासी समीकरण की बात करें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान 403 सीटों में से 1 सीट पर सिमटने वाली पार्टी बीएसपी फिलहाल लोकसभा के सियासी समीकरण से गायब नजर आ रही है। 2024 चुनाव में मायावती के नेतृत्व में पार्टी लड़खड़ाती नजर आ रही है। फिर बसपा अपने ही दलित वोटों पर निर्भर नजर आ रही है।