Constable Pankaj Sharma Delhi election: नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार का चुनाव कई कारणों से सुर्खियों में रहा, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहे दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल पंकज शर्मा। पुलिस विभाग में कार्यरत रहते हुए चुनाव लड़ने वाले पंकज शर्मा ने दिल्ली की बिगड़ती कानून व्यवस्था को अपना मुख्य मुद्दा बनाया।
पंकज शर्मा की उम्मीदवारी और निलंबन- Constable Pankaj Sharma Delhi election
40 वर्षीय पंकज शर्मा दिल्ली के चर्चित बाटला हाउस एनकाउंटर टीम का हिस्सा रह चुके हैं। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने उन्हें चुनाव लड़ने के चलते नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए सस्पेंड कर दिया। दिल्ली पुलिस के डीसीपी (छठी बटालियन) हरेश्वर स्वामी ने बताया कि जैसे ही हमें जानकारी मिली कि वह पुलिस बल में रहते हुए चुनाव लड़ रहे हैं, उन्हें 29 जनवरी को निलंबित कर दिया गया।
डीसीपी स्वामी ने कहा कि इस फैसले की जानकारी चुनाव आयोग को भी दे दी गई है। वहीं, पंकज शर्मा ने इस फैसले को अनुचित ठहराया और कहा कि वे पहले दिल्ली के नागरिक हैं और अपराध को काबू करने के लिए बेहतरीन विकल्प पेश कर सकते हैं।
चुनाव प्रचार और विवाद
पंकज शर्मा ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि दिल्ली में बढ़ता अपराध तीन करोड़ जनता की मुख्य समस्या है और वे इसे रोकने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं। जब उनसे सरकारी नौकरी करते हुए चुनाव लड़ने पर सवाल किया गया तो उन्होंने 2023 में राजस्थान हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें एक सरकारी डॉक्टर को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई थी।
हालांकि, दिल्ली पुलिस के अनुसार, शर्मा ने अपने हलफनामे में पेशे से संबंधित गलत जानकारी दी थी। उन्होंने ‘पेशे’ के कॉलम में ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ लिखा, जिससे विवाद खड़ा हो गया। इस पर उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारी भी सामाजिक कार्यकर्ता हो सकता है और उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।
चुनाव परिणाम और निष्कर्ष
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर 23 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इस सीट से बीजेपी के प्रवेश वर्मा आगे चल रहे हैं, जबकि आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल दूसरे स्थान पर हैं। निर्दलीय उम्मीदवार पंकज शर्मा को अब तक केवल 5 वोट मिले हैं, जिससे यह साफ हो गया कि उनका अभियान मतदाताओं को लुभाने में असफल रहा।
पंकज शर्मा का यह कदम चुनावी प्रक्रिया में नियमों और आचार संहिता को लेकर एक नई बहस को जन्म दे गया है। जहां एक ओर कुछ लोग इसे जनता के अधिकार के रूप में देखते हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी सेवा में रहते हुए चुनाव लड़ने के नियमों पर भी चर्चा शुरू हो गई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग और न्यायपालिका इस मामले में आगे क्या रुख अपनाते हैं।