अनुसूचित जाति के आरक्षण की आस लगाए निषाद समाज ने बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने बीजेपी से दो टूक कह दिया है कि निषाद समाज को आरक्षण नहीं, तो समर्थन भी नहीं। वही सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी ने भी निषाद आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
इस बीच निषाद वोटरों को साधने के लिए बीजेपी की तरफ से भी आरक्षण देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। निषाद समुदाय के अंतर्गत आने वाले मल्लाह, बिंद आदि उपजाति को SC समुदाय में शामिल करने के लिए योगी सरकार ने केंद्र के रजिस्ट्रार जनरल से सुझाव मांगा है।
यूपी सरकार की तरफ से रजिस्ट्रार जनरल को जारी पत्र में कहा गया कि मछुआरा समुदाय में आने वाले मांझी, मझवार, केवट, मल्ल्हा और निषाद समुदाय के लोगें को अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया जाता है। पत्र में आगे ये भी कहा गया कि ऐसा करना संविधान के प्रारूप का उल्लंघन है। इस संदर्भ में अपना सुझाव यूपी शासन को दें।
गौरतलब है कि यूपी चुनाव में निषाद समुदाय के लोग भी काफी अहम भूमिका निभाते हैं। बताया जाता है कि निषाद समुदाय का पूर्वांचल में सबसे ज्यादा असर है। इस समुदाय का करीब 15 से 20 सींटो पर सीधा असर है। गोरखपुर, संतकबीरनगर, वाराणसी इन सभी जिलों में निषाद वोटरों की भूमिका सबसे अहम मानी जाती है। यूपी के पूर्वांचल में करीब 18 फीसदी निषाद समुदाय की आबादी है।
गौरतलब है कि बीते दिनों में निषाद आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ लिया है। निषाद समुदाय का कहना है कि सरकार हमको आरक्षण की व्यवस्था नहीं करती तो हम इस बार वोट नहीं देंगे। लखनऊ के रमाबाई पार्क में 17 दिसंबर को रैली हुई थी, जिसमें आरक्षण की उम्मीद में हजारों की संख्या में निषाद समाज के लोग जमा हुए थे। इस रैली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने निषाद आरक्षण की मांग को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया। इसके चलते अब निषाद समाज से लेकर बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद नाराज है। वो ये भी कह चुके हैं कि यूपी में अगर चुनाव से पहले आरक्षण का सामाधान नहीं किया, तो योगी सरकार को नुकसान तय है।