बीते आठ साल में तीन चुनाव हुए लोकसभा के दो और विधानसभा के एक जिसमें उत्तर प्रदेश का पश्चिम एरिया ने राजनीति को बेहद ही नए तरीके से दिखाना शुरू किया। बहुसंख्यक वोटों का अल्पसंख्यकों के समानांतर ध्रुवीकरण और छोटे जाति समूहों को साधकर बीजेपी ने मुस्लिम, दलित और जाट केंद्रित एरिया की राजनीति को आजादी के बाद से ही चेंज कर दिया। अब बीजेपी अपने पुराने दांव लगाने में जुट गयी है और दोबारा पश्चिम यूपी में जीत को अपनी तरफ करने में लग गयी है।
गौर करने वाली बात ये है कि करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी की वजह से आजादी से लेकर 2014 के लोकसभा के इलेक्शन के पहले तक इस एरिया की राजनीति जाट, मुस्लिम और दलित जातियों के आसपास घूमती रही थी। वैसे साल 2014 में बीजेपी ने नए समीकरणों के जरिए नई पॉलिटिक्स की नीव रखी।
पार्टी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में 108 सीटों पर अब तक प्रत्याशी खड़े किए हैं। जिनमें ओबीसी और दलित बिरादरी को 64 टिकट दिया है। जिसके जरिए बीजेपी पहले की तरह गैरयादव ओबीसी और गैरजाटव दलितों के वोट बैंक साधने में लगी हुई है ऐसे में पार्टी ने कई टिकट जो बंटे हैं वे गुर्जर, सैनी, कहार-कश्यप, वाल्मिकी जैसे समुदाय को दिए गए हैं। सैनी बिरादरी 10 तो वहीं दो दर्जन सीटों पर गुर्जर बिरादरी प्रभावी संख्या में रखे गए हैं। कहार-कश्यप जाति के वोटर्स 10 सीटों पर बेहद असरदार है।
बीते लगातार तीन चुनाव में बड़ी जीत पाने के लिए एक बड़ी वजह बीजेपी की दलितों-मुसलमानों-जाटों केअलग अन्य छोटी जातियों के बीच अपनी पैठ बनाकर चलना भी रही है। इस एरिए के अलग-अलग हिस्सों में जो जातियां रही है वो कश्यप, वाल्मिकी, ब्राह्मण, त्यागी, सैनी, गुर्जर, राजपूत बिरादरी की संख्या जीत-हार में काफी अहम रोल में रही हैं। बीजेपी ने करीब 30 फीसदी वोटर की इस बिरादरी को अपनी तरफ करने में लगी है।