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लालू यादव का शासन: भारत रत्न की मांग से पहले जानें उनके कार्यकाल के विवाद और घोटाले

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लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) भारतीय राजनीति का एक प्रमुख चेहरा हैं, जो अपने अनोखे अंदाज और सामाजिक न्याय के प्रयासों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन उनका शासन हमेशा से ही अपने कार्यकाल के दौरान हुए कई विवादों, घोटालों और अपराधों के कारण चर्चा में रहा है। आज जब कुछ लोग लालू यादव के लिए भारत रत्न की मांग (Lalu Yadav Bharat Ratna demand) कर रहे हैं, तो यह समझना जरूरी है कि उनके शासन में ऐसा क्या हुआ, जिसने बिहार को सालों पीछे धकेल दिया।

और पढ़ें: Champa Vishwas Rape Case: बिहार में 90 का वो काला दशक! सत्ता, शासन और यौन शोषण के आरोप की धुंधली दास्तां

भारत रत्न की मांग पर सवाल- Lalu Yadav Bharat Ratna demand

कई आरजेडी नेता लालू यादव को भारत रत्न दिए जाने की मांग कर रहे हैं। इसी क्रम में आरजेडी कार्यालय के पास पोस्टर लगाए गए हैं जिसमें आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (RJD supremo Lalu Prasad Yadav) को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की मांग की गई है। लेकिन इस मांग के साथ यह भी जरूरी है कि हम उनके शासन के दौरान बिहार के सामने आए काले पहलुओं को नजरअंदाज न करें। लोगों के मन में अभी भी यह सवाल है कि क्या ऐसे नेता को भारत रत्न जैसा सर्वोच्च सम्मान दिया जाना चाहिए, जिसके शासन में ऐसी घटनाएं हुईं।

चारा घोटाला- Lalu Yadav Fodder Scam

लालू यादव के शासनकाल (Lalu Yadav’s reign) में बिहार में हुए चारा घोटाले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस घोटाले में सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए निकाले गए थे, जिसमें फर्जी बिलों का इस्तेमाल कर चारा और पशु चिकित्सा से जुड़ी सामग्री की खरीद दिखाई गई थी। खबरों की मानें तो चारा घोटाले में उत्तर भारतीय राज्य बिहार के सरकारी खजाने से करीब 940 करोड़ रुपए का गबन हुआ था। इस मामले में लालू यादव को दोषी ठहराया गया था और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। चारा घोटाला भ्रष्टाचार का एक ऐसा मामला है, जिसे आज भी बिहार की राजनीतिक व्यवस्था पर काले धब्बे के तौर पर देखा जाता है।

कानून व्यवस्था का पतन

लालू यादव के राज में बिहार की कानून व्यवस्था (Law and Order in Bihar) पूरी तरह से चरमरा गई थी। अपहरण, हत्या, डकैती, और अपराधों में तेजी से इजाफा हुआ। कहा जाता था कि गुंडागर्दी और माफियाओं का बोलबाला था, और पुलिस प्रशासन कमजोर हो गया था। एक दौर में बिहार में ऐसा माहौल बन गया था कि लोग राज्य को ‘जंगल राज’ कहने लगे थे। अपराधों के बढ़ते आंकड़े और न्याय व्यवस्था की कमजोरी ने लोगों को असुरक्षित बना दिया था।

दलित IAS अधिकारी की बीवी से रेप- Champa Vishwas Rape Case

1982 बैच के दलित आईएएस अधिकारी बीबी बिस्वास ने दावा किया था कि लालू प्रसाद के करीबी सहयोगी मृत्युंजय कुमार यादव ने उनकी 30 वर्षीय पत्नी चंपा बिस्वास, उनकी मां, दो नौकरानियों और एक भतीजी का यौन शोषण किया था। इस घटना को दबाने के लिए आरोपी ने जबरदस्ती, हिंसा, धमकी और प्रलोभन का इस्तेमाल किया।

चंपा के साथ कई बार यौन शोषण हुआ था की उसे गर्भपात करवाना पड़ा। अंततः उसे खुद ही नसबंदी करवानी पड़ी। वहीं मामले का आकलन करने के बाद राज्यपाल ने मामले को गृह मंत्री को भेज दिया। मृत्युंजय की मां हेमलता यादव विधायक थीं और बिहार समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड की अध्यक्ष थीं। IAS अधिकारी की पत्नी और अन्य पीड़ितों ने कई बार न्याय के लिए गुहार लगाई, लेकिन प्रशासन का एक बड़ा हिस्सा सत्ता के प्रति वफादारी निभाने में व्यस्त था। इस तरह से मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

गैराज में मिली अर्धनग्न लाशें: शिल्पी-गौतम हत्याकांड

यह घटना बिहार की राजनीति और लालू यादव के शासनकाल में अपराध के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है। एक MLA के बंगले के गैराज में एक लड़के और लड़की की अर्धनग्न अवस्था में लाश (Bihar Shilpi-Gautam murder case) मिलने से हड़कंप मच गया था। कार में लाशें मिलने के बाद यह मामला और भी गंभीर हो गया, क्योंकि इससे बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठे।

इस घटना में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के करीबी और तेजस्वी यादव के मामा साधू यादव का नाम भी जुड़ा था। आरोप था कि इस घटना में साधू यादव का हाथ है। हालांकि, साधू यादव ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था, लेकिन इस घटना ने लालू सरकार के शासन पर कई सवाल खड़े कर दिए।

जब यह मामला सुर्खियों में आया, तब प्रशासन पर आरोप लगे कि उन्होंने प्रभावशाली लोगों के दबाव में मामले की जांच को धीमा कर दिया। इसने बिहार की जनता में नाराजगी और असुरक्षा की भावना पैदा की। इस घटना के बाद यह साफ हो गया था कि लालू यादव के शासनकाल में अपराधियों को सत्ताधारी लोगों का संरक्षण प्राप्त था।

और पढ़ें: मल्लिकार्जुन खड़गे की कहानी: एक दलित बच्चे से कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक का सफर

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