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Agra Warrant officer dies: आगरा में भारतीय वायु सेना के पैरा जंप प्रशिक्षक की हादसे म...

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Agra Warrant officer dies: शनिवार को आगरा में भारतीय वायु सेना की आकाश गंगा स्काईडाइविंग टीम के एक पैरा जंप प्रशिक्षक की मौत हो गई। हादसा उस समय हुआ जब वह एक “डेमो ड्रॉप” के दौरान हेलीकॉप्टर से छलांग लगा रहे थे। घटना में वारंट ऑफिसर रामकुमार तिवारी (41) को गंभीर चोटें आईं, जिनकी बाद में सैन्य अस्पताल में मौत हो गई। यह घटना वायु सेना के लिए गहरा दुख लेकर आई है और शोक व्यक्त करने के लिए कई नेता और अधिकारी सामने आए हैं।

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हादसा कैसे हुआ? (Agra Warrant officer dies)

पुलिस के अनुसार, शनिवार सुबह करीब 9:30 बजे वारंट ऑफिसर रामकुमार तिवारी ने हेलीकॉप्टर से छलांग लगाई। हालांकि, तकनीकी खराबी के कारण उनका पैराशूट समय पर नहीं खुला, जिससे वह सीधे जमीन पर गिर पड़े। इस हादसे के बाद उन्हें तुरंत मिलिट्री अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान करीब 11:40 बजे डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

सहायक पुलिस आयुक्त विनायक भोसले ने बताया कि हादसे की सूचना दोपहर करीब 12 बजे सैन्य अस्पताल से मिली, और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। वायु सेना ने इस हादसे पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा, “आईएएफ की आकाश गंगा स्काईडाइविंग टीम के एक पैरा जंप प्रशिक्षक की आज आगरा में डेमो ड्रॉप के दौरान लगी चोटों के कारण मृत्यु हो गई। हम इस क्षति पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं और शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं।”

राजनीतिक प्रतिक्रिया: अखिलेश यादव का बयान

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस दुखद घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, “पहले गुजरात के जामनगर में एक फाइटर जेट के क्रैश होने से एक फ्लाइट लेफ्टिनेंट की मृत्यु और अब आगरा में पैराशूट न खुलने से एक वायु सेना के अफसर की मृत्यु का समाचार बेहद दुखदायी है।” उन्होंने आगे कहा, “सुरक्षा से समझौता प्राणघातक साबित हो सकता है। इन मामलों में हर स्तर पर गुणवत्ता की गहन-गंभीर जांच होनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे दुर्घटनाओं का दोहराव न हो।”

पहले भी हुई थी एक दुर्घटना

यह पहला मामला नहीं है जब वायु सेना के किसी अधिकारी की मौत पैराशूट में तकनीकी खराबी के कारण हुई हो। दो महीने पहले, फरवरी 2025 में, आगरा में ही एक और वायुसेना अधिकारी, वारंट अफसर मंजूनाथ की मौत हुई थी। इस हादसे में भी पैराशूट समय पर नहीं खुला था।

वारंट अफसर तिवारी का योगदान

वारंट अफसर रामकुमार तिवारी ने 2002 में भारतीय वायु सेना जॉइन की थी और उन्होंने अब तक सैकड़ों पैराशूट छलांगें लगाई थीं। वह एक अनुभवी और कुशल ट्रेनर थे, जिन्होंने कई जवानों को पैरा जंप की ट्रेनिंग दी थी। विशेष रूप से, वह भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान एमएस धोनी को भी ट्रेनिंग देने के लिए प्रसिद्ध थे।

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Sikhism in Spain: स्पेन में सिख समुदाय, एक बढ़ता हुआ धार्मिक समूह और उनके अधिकारों की...

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Sikhism in Spain: स्पेन में सिख समुदाय भले ही एक अल्पसंख्यक समूह हो, लेकिन यह तेजी से बढ़ता हुआ समुदाय है। आज के आंकड़ों के अनुसार, स्पेन में लगभग 26,000 सिख रहते हैं। इस समुदाय का इतिहास 1980 के दशक से शुरू होता है, जब कई सिख प्रवासी स्पेन आए थे, खासकर कृषि कार्य, निर्माण कार्य और व्यापार के लिए। हालांकि, सिखों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी है, लेकिन इसके साथ-साथ उन्हें सामाजिक और धार्मिक अधिकारों के लिए कई संघर्षों का सामना भी करना पड़ा है।

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सिखों का इतिहास और प्रवास- Sikhism in Spain

स्पेन में सिखों का प्रवास 1990 के दशक में तेजी से बढ़ा, खासकर तब जब स्पेन ने यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद कई प्रवासी श्रमिकों के लिए अवसर खोले। इस समय के दौरान, सिख समुदाय के लोग स्पेन के कृषि, पर्यटन और निर्माण उद्योगों में कार्यरत थे। इसके अलावा, कई सिखों ने भारतीय रेस्तरां भी खोले और स्थानीय समुदाय में अपनी पहचान बनाई। मुख्य रूप से, सिखों को स्पेन के प्रमुख शहरों जैसे बार्सिलोना, मैड्रिड, वेलेंसिया, अलीकांटे और बिलबाओ में बसते हुए देखा जाता है।

स्पेन में सिख समुदाय और उनके धार्मिक केंद्र

स्पेन में सिख समुदाय के बढ़ते प्रभाव के साथ ही धार्मिक केंद्र भी स्थापित किए गए हैं, जिनमें 12 गुरुद्वारे भी शामिल हैं। ये गुरुद्वारे न केवल सिखों के लिए धार्मिक स्थल हैं, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने का भी काम करते हैं। यहां स्पेन के प्रमुख गुरुद्वारों की सूची दी गई है:

  1. गुरुद्वारा गुरु दर्शन साहिब – बार्सिलोना
  2. गुरुद्वारा नानकसर – बार्सिलोना
  3. गुरुद्वारा शहीद बाबा दीप सिंह – एलिकांटे
  4. गुरुद्वारा भाई मर्दाना जी – ओलोट
  5. गुरुद्वारा सिख संगत – मलागा
  6. गुरुद्वारा सिख संगत – वालेंसिया
  7. गुरुद्वारा गुरु नानक एसोसिएशन – वालेंसिया
  8. गुरुद्वारा गुरु लाधो रे – सांता कोलोमा डे ग्रामेनेट
  9. गुरुद्वारा वालेंसिया – वालेंसिया
  10. गुरुद्वारा सिख कलगीधर साहिब दे नमक – नमक
  11. गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी – लोरेट डी मार्च
  12. गुरुद्वारा नानकसर – मैड्रिड

धार्मिक संघर्ष और भेदभाव

हालांकि सिख समुदाय ने स्पेन में अपना स्थान बनाना शुरू किया, लेकिन वे कई बार भेदभाव का शिकार भी हुए। 2019 में, एक सिख पायलट, कैप्टन सिमरन गुजराल के साथ एक नस्लीय भेदभाव का मामला सामने आया, जब उन्हें स्पेन के मैड्रिड एयरपोर्ट पर अपनी पगड़ी उतारने के लिए मजबूर किया गया। यह घटना उस समय हुई जब कैप्टन सिमरन एयर इंडिया की फ्लाइट AI136 लेकर दिल्ली से स्पेन लौट रहे थे। सिख धर्म में पगड़ी एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक है, जिसे बिना किसी परिस्थिति के नहीं हटाया जा सकता। कैप्टन सिमरन ने इसे लेकर विरोध किया, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उनकी नहीं सुनी और पगड़ी उतारने की जिद करते रहे।

कैप्टन सिमरन ने बताया कि इस प्रकार की घटनाएं स्पेन में अक्सर होती रहती हैं, और उन्होंने इस भेदभाव पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी से शिकायत की। इस मामले को लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी पत्राचार किया गया, जिसमें सिखों के साथ पगड़ी को लेकर होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई।

2023 का फुटबॉल मैच और पगड़ी विवाद

2023 में, स्पेन में एक और विवाद हुआ जब 15 वर्षीय सिख युवक गुरप्रीत सिंह को फुटबॉल मैच के दौरान अपनी पगड़ी उतारने के लिए कहा गया। रेफरी ने कहा कि खेल के नियमों के तहत टोपी पहनने की अनुमति नहीं है, इसलिए उसे अपनी पगड़ी उतारनी होगी। गुरप्रीत और उसकी टीम के साथी इस फैसले से असहमत थे, क्योंकि पगड़ी उनके धर्म का अहम हिस्सा थी। अंत में, टीम और गुरप्रीत ने इस आदेश का विरोध करते हुए मैच खेलने से मना कर दिया। इस घटना को लेकर क्लब और समाज के कई हिस्सों ने गुरप्रीत का समर्थन किया और उसे अपने धर्म के पालन में पूर्ण समर्थन दिया।

सिख और हिंदू समुदाय की मदद का उदाहरण

स्पेन में सिखों के संघर्ष के बीच, एक सकारात्मक और प्रेरणादायक घटना भी सामने आई है। 2022 में स्पेन के वेलेंसिया में आई विनाशकारी बाढ़ के दौरान, सिख और हिंदू समुदायों के स्वयंसेवकों ने मिलकर स्थानीय लोगों की मदद की। इस मानवीय पहल ने न केवल समुदायों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा दिया, बल्कि यह साबित किया कि विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ मिलकर आपसी सहयोग और सहायता में विश्वास रखते हैं। इस घटना ने समुदायों के बीच एकता और मानवता के मूल्यों को प्रदर्शित किया।

स्पेन में सिखों के अधिकार और भविष्य

स्पेन में सिख समुदाय का भविष्य उज्जवल प्रतीत हो रहा है, हालांकि अभी भी उन्हें कई सामाजिक और धार्मिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सिखों के अधिकारों को लेकर सरकार और समाज में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। इस समुदाय ने अपनी मेहनत और दृढ़ता से स्पेन में अपनी पहचान बनाई है, लेकिन उन्हें अब भी धार्मिक भेदभाव और सांस्कृतिक असहमति का सामना करना पड़ता है।

स्पेन में सिख समुदाय के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखें और समाज में उनके अधिकारों की रक्षा की जाए। सिखों के साथ धार्मिक भेदभाव की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा, ताकि सिख समुदाय को सम्मान और समान अधिकार मिल सकें।

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MP News Today: बाबा बागेश्वर का हिंदू गांव, क्या ‘बिजनेसमैन’ बनने की राह ...

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MP News Today: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले स्थित बागेश्वर धाम में हाल ही में देश के पहले हिंदू गांव की आधारशिला रखी गई। इस पहल को बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने शुरू किया, जिनका कहना है कि हिंदू राष्ट्र का सपना हिंदू घरों से शुरू होता है। इस गांव में रहने वाले लोग अपनी जीवनशैली को पूरी तरह से वैदिक संस्कृति के अनुरूप जीएंगे। पं. शास्त्री ने घोषणा की कि इस गांव का निर्माण अगले दो साल के भीतर पूरा हो जाएगा, और इसमें लगभग 1,000 परिवारों के लिए आवास की व्यवस्था की जाएगी।

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हिंदू गांव का विचार और भविष्य- MP News Today

बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर ने हिंदू गांव की नींव रखते हुए यह स्पष्ट किया कि इस गांव में केवल हिंदू लोग ही रहेंगे और यह गांव पूरी तरह से वैदिक संस्कृति पर आधारित होगा। यहां पर रहने वाले लोग किसी प्रकार के क्रय-विक्रय के अधिकार से वंचित होंगे, यानी वे अपने घरों को न तो खरीद सकते हैं और न ही बेच सकते हैं। इस योजना के तहत, बागेश्वर धाम जनसेवा समिति इस गांव के लिए जमीन मुहैया कराएगी, और इसके निर्माण के लिए आवश्यक बुनियादी शर्तें लागू की जाएंगी। पं. शास्त्री का यह भी कहना था कि इस गांव के निर्माण से हिंदू समाज का निर्माण होगा, और हिंदू तहसील, हिंदू जिला, और अंततः हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना पूरी होगी।

कांग्रेस ने की मुस्लिम, सिख और ईसाई गांव की मांग

बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर द्वारा हिंदू गांव की आधारशिला रखे जाने के बाद, कांग्रेस के प्रवक्ता अब्बास हफीज ने इस पहल पर सवाल उठाते हुए मुस्लिम, सिख और ईसाई गांव बनाने की मांग की है। उन्होंने मुख्यमंत्री से यह सवाल किया कि यदि संविधान धर्म के आधार पर गांव बनाने की अनुमति देता है, तो फिर अन्य धर्मों के लिए भी ऐसे गांव बनाने की अनुमति दी जाए। अब्बास हफीज का कहना था, “अगर देश का संविधान धर्म आधारित गांव बनाने की अनुमति देता है, तो मुझे भी मुस्लिम, सिख और ईसाई गांव बनाने की अनुमति मिलनी चाहिए।”

बागेश्वर धाम की बिल्डिंग योजना और दान के पैसे का सवाल

इस बीच, बागेश्वर धाम से जुड़ी एक और चर्चा सामने आई है, जिसमें बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वे दान के पैसे से एक रिहायशी कॉलोनी बनाने जा रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाबा शास्त्री ने 1000 फ्लैट्स बनाने का प्लान तैयार किया है, जिनकी कीमत 15 से 17 लाख रुपये के बीच होगी। इन फ्लैट्स का निर्माण 12 महीने के भीतर पूरा होने का अनुमान है और बुकिंग के लिए 5 लाख रुपये का अग्रिम भुगतान करना होगा। कुछ जानकारियों के अनुसार, यह फ्लैट्स बेचने के लिए बाबा ने एक बड़ा व्यवसायिक प्लान तैयार किया है, जिसमें धार्मिक दान के पैसों का उपयोग करके एक बिल्डर का काम किया जा रहा है। कांग्रेस और विपक्ष ने इस पर सवाल उठाया है कि क्या धर्म के नाम पर इस तरह के व्यवसायिक काम उचित हैं। कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता ने कहा, “क्या यह सही है कि बाबा धर्म के नाम पर पैसे कमाने के लिए कॉलोनी बना रहे हैं और फ्लैट्स बेचने का काम कर रहे हैं?”

धीरेंद्र शास्त्री का जवाब

इस मुद्दे पर पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उनका कहना है कि उनका उद्देश्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए हिंदू समाज को मजबूत करना है। उनका मानना है कि इस गांव की स्थापना से एक मॉडल हिंदू समाज तैयार होगा, जो भारत के भविष्य को दिशा देगा। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस पूरे मामले में सरकार से जांच की मांग की है, खासकर इस बात को लेकर कि क्या बाबा शास्त्री को इस प्रकार के काम करने की अनुमति है और क्या यह धर्म के नाम पर व्यापार नहीं हो रहा है।

बिजनेसमैन बनने की राह पर हैं बाबा बागेश्वर

बाबा बागेश्वर का हिंदू गांव बनाने की पहल एक ओर जहां हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को वास्तविकता में बदलने का प्रयास प्रतीत होती है, वहीं दूसरी ओर, उनके द्वारा दान के पैसे से रिहायशी कॉलोनी बनाने और फ्लैट्स बेचने के कदम ने सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सवाल उठता है कि क्या बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री केवल एक धार्मिक नेता के तौर पर काम कर रहे हैं, या फिर वे अब बिजनेसमैनबनने की राह पर बढ़ चुके हैं? इस पहल से जुड़े व्यावसायिक पहलू और इसके धार्मिक उद्देश्यों के बीच का अंतर स्पष्ट होना जरूरी है। जैसे-जैसे इस योजना को लेकर विवाद और सवाल बढ़ रहे हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और समाज इसे किस दृष्टिकोण से देखेंगे और इस पर क्या कदम उठाए जाएंगे।

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Supreme Court on Eviction: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! क्या बुजुर्ग माता-पिता अपने ब...

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Supreme Court on Eviction: मध्यवर्गीय और शहरी जीवन की तेज़ रफ्तार और बदलते हुए सामाजिक ढांचे ने एक नई चुनौती खड़ी की है, जो बुजुर्ग माता-पिता और उनके बच्चों के रिश्तों को प्रभावित करती है। जहां पहले बुजुर्गों को घर की नींव माना जाता था, अब कई बार उन्हें अपने ही बच्चों से सम्मान और देखभाल की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों को घर से निकाल सकते हैं, अगर वे अपमान, उपेक्षा या मानसिक पीड़ा झेल रहे हैं। इसी सवाल पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम और बड़ा फैसला सुनाया है।

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सीनियर कपल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय- Supreme Court on Eviction

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक सीनियर कपल की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने बेटे को घर से निकालने की मांग की थी। इस याचिका में बुजुर्ग दंपति ने Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 (वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम) का हवाला दिया, जो बुजुर्गों को अपने बच्चों से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार देता है। हालांकि, इस कानून में घर से बेदखली का अधिकार स्पष्ट रूप से नहीं दिया गया है।

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बेदखली का अधिकार केवल कुछ शर्तों पर

सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस बात को स्पष्ट किया था कि यदि कोई बुजुर्ग अपनी संपत्ति किसी शर्त के साथ बच्चों को देता है, और वे शर्तें पूरी नहीं करते, तो बेदखली संभव है। इसके तहत, अगर कोई बुजुर्ग ने अपनी संपत्ति यह शर्त रखते हुए दी है कि उनका बेटा या बेटी उनकी देखभाल करेगा, लेकिन वह ऐसा नहीं करता, तो उस संपत्ति का हस्तांतरण अमान्य हो सकता है। इस स्थिति में बुजुर्ग ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं और संपत्ति वापस लेने की मांग कर सकते हैं।

सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत सुरक्षा का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल नहीं की जा रही है, या वे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं, तो Senior Citizens Act के तहत गठित ट्रिब्यूनल को यह अधिकार है कि वह बच्चों या रिश्तेदारों को घर से निकालने का आदेश दे सके। कोर्ट ने 2020 में एक मामले में यह स्पष्ट किया था कि अगर बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा हो, तो उनके भरण-पोषण के अधिकार को लागू करने के लिए ट्रिब्यूनल को बेदखली का आदेश देने का अधिकार है।

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बेटे की बेदखली से इनकार

इस विशेष मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्ग दंपति की याचिका को खारिज करते हुए बेटे को घर से निकालने के आदेश से इनकार कर दिया। बुजुर्ग दंपति ने दावा किया था कि उनका बेटा मानसिक और शारीरिक रूप से उन्हें प्रताड़ित करता है। 2019 में ट्रिब्यूनल ने आंशिक राहत देते हुए बेटे को घर के किसी और हिस्से में प्रवेश न करने का आदेश दिया था और उसे केवल अपनी दुकान और कमरे तक ही सीमित रहने की अनुमति दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक बेटे के दुर्व्यवहार का कोई नया प्रमाण नहीं मिलता, तब तक बेदखली का आदेश देना जरूरी नहीं है।

क्या हर स्थिति में बेदखली का आदेश दिया जा सकता है?

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि हर स्थिति में बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल को सभी पक्षों के दावों की जांच करनी होगी और केवल तभी बेदखली का फैसला लिया जा सकता है जब बुजुर्गों की सुरक्षा और देखभाल के लिए यह आवश्यक हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून बुजुर्गों को सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन बेदखली का आदेश तभी संभव है जब हालात गंभीर हों और न्यायसंगत रूप से इसका आधार हो।

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Parveen Babi Birth Anniversary: वो टॉप एक्ट्रेस, जिनके प्यार में दीवाना हो गया था बॉल...

Parveen Babi Birth Anniversary: बॉलीवुड की बेबाक और खूबसूरत अदाकारा परवीन बॉबी का नाम हमेशा ही भारतीय सिनेमा में एक प्रभावशाली और यादगार स्थान रखेगा। उनकी खूबसूरती और अभिनय की कला ने दर्शकों को हमेशा अपना दीवाना बनाया। लेकिन परवीन बॉबी की जिंदगी में एक कमी थी—प्रेम। उनकी अधूरी प्रेम कहानी ही उनकी वास्तविक जिंदगी का सबसे दर्दनाक पहलू थी, जो आज भी उनके फैंस और सिनेमा प्रेमियों के दिलों में गहरे असर छोड़ती है। 4 अप्रैल को जन्मी परवीन बॉबी की बर्थ एनिवर्सरी पर उनकी जीवन की जद्दोजहद और प्रेम के रिश्तों के बारे में जानते हैं, जिन्होंने उनके जीवन को प्रभावित किया।

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परवीन बॉबी का असली नाम और प्रेम की यात्रा- Parveen Babi Birth Anniversary

परवीन बॉबी का असली नाम परवीन वली मोहम्मद अली खान बॉबी था। उनका जीवन जितना रंगीन और चमकदार था, उतना ही जटिल और दर्दनाक भी। परवीन को अपने जीवन में कई बार प्यार हुआ, लेकिन दुर्भाग्यवश, वह कभी भी प्रेम के मामले में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाईं। उनका प्रेम जीवन कई फिल्मी सितारों से जुड़ा रहा, जिनमें से डैनी डेन्जोंगपा, कबीर बेदी और महेश भट्ट के नाम प्रमुख रहे। लेकिन किसी भी रिश्ते में वह पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो पाईं और इन रिश्तों का अंत दुखद रहा।

परवीन बॉबी और डैनी डेन्जोंगपा

परवीन बॉबी की जिंदगी में पहला प्यार अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा थे। दोनों ने 1974 में डेटिंग शुरू की, और यह जोड़ी काफी समय तक सुर्खियों में रही। लेकिन यह रिश्ता तीन से चार साल के भीतर टूट गया। डैनी और परवीन का रिश्ता आमतौर पर एक सामान्य प्यार का उदाहरण था, लेकिन उनके रिश्ते में कई उतार-चढ़ाव आए, और अंततः दोनों अलग हो गए। डैनी से बिछड़ने के बाद परवीन की जिंदगी में और भी लोग आए, लेकिन वह किसी के साथ भी अपना प्रेम संबंध स्थिर नहीं कर पाईं।

 

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कबीर बेदी के साथ रिश्ते में संघर्ष

परवीन का अगला बड़ा प्यार अभिनेता कबीर बेदी थे। कबीर से पहले के टूटे हुए रिश्ते से आहत परवीन को कबीर ने सहारा दिया था। हालांकि, कबीर पहले से ही शादीशुदा थे, और उनका यह रिश्ता विवादों में घिरा रहा। यह प्रेम कहानी भी ज्यादा लंबी नहीं चल सकी और दोनों का रिश्ता तीन साल तक ही रह सका। कबीर और परवीन के रिश्ते के दौरान कई बार मीडिया में इनकी चर्चा हुई, लेकिन कबीर के शादीशुदा होने के कारण उनका रिश्ता हमेशा आलोचना का शिकार रहा।

महेश भट्ट और परवीन बॉबी का विवादित रिश्ता

महेश भट्ट परवीन बॉबी की जिंदगी में आने वाले तीसरे व्यक्ति थे, जिनसे उनका रिश्ता भी उतना ही विवादित और उलझा हुआ था। महेश भट्ट भी पहले से ही शादीशुदा थे, और दोनों के रिश्ते में लगातार उथल-पुथल होती रही। महेश भट्ट ने कई बार सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया था कि परवीन ने उनके जीवन पर गहरा असर डाला। महेश के मुताबिक, उनका रिश्ता उनकी जिंदगी का एक अहम और प्रभावशाली भाग था, लेकिन यह भी अंततः टूट गया।

अंतिम दिनों में अकेलापन

परवीन बॉबी की प्रेम जीवन के उतार-चढ़ावों ने उन्हें मानसिक रूप से काफी प्रभावित किया। उनके आखिरी दिनों में उनका जीवन अकेलेपन से घिरा हुआ था। वह किसी से मिलना-जुलना तक बंद कर चुकी थीं। बॉलीवुड में अपनी कामयाबी के चरम पर रहते हुए, परवीन को एक ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसमें वह अपने अकेलेपन और मानसिक पीड़ा से जूझ रही थीं। यह वह समय था जब परवीन बॉबी का नाम केवल सिनेमा की सफल एक्ट्रेस के रूप में नहीं, बल्कि एक दुखी और अकेले व्यक्ति के रूप में भी लिया जाने लगा।

परवीन बॉबी की जिंदगी एक ऐसी प्रेम कहानी थी, जो कभी पूरी नहीं हो पाई। उनकी खूबसूरती, अभिनय और स्टारडम के बावजूद, उन्हें प्यार में स्थिरता और सच्चा सुख कभी नहीं मिला।

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Madhopatti IAS village: माधोपट्टी की अनसुनी कहानी, जहां छोटे से गांव ने आईएएस-आईपीएस ...

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Madhopatti IAS village: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में स्थित माधोपट्टी गांव को ‘आईएएस-आईपीएस गांव’ के नाम से जाना जाता है। यह छोटा सा गांव न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश में अपनी अद्वितीय उपलब्धियों के लिए मशहूर है। यहां के युवाओं ने प्रशासनिक सेवाओं में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है और अपने गाँव का नाम रोशन किया है। माधोपट्टी, एक उदाहरण बन गया है कि यदि शिक्षा और सही मार्गदर्शन मिले तो किसी भी सपने को हासिल किया जा सकता है।

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सिविल सेवा की अद्वितीय परंपरा– Madhopatti IAS village

माधोपट्टी गांव में सिर्फ 75 परिवार रहते हैं, लेकिन यहां से 40 से अधिक लोग आईएएस, आईपीएस और पीसीएस अधिकारी बन चुके हैं। यह अनुपात किसी भी अन्य गांव की तुलना में बेहद ज्यादा है और इसे पूरे देश में एक मिसाल माना जाता है। खास बात यह है कि यहां के परिवारों में प्रशासनिक सेवाओं की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, जिससे यह साबित होता है कि इस गांव में शिक्षा और प्रशासनिक सफलता का एक मजबूत बुनियाद है।

Madhopatti IAS village UP
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एक परिवार से पांच IAS-IPS अधिकारी

माधोपट्टी गांव की सफलता को और भी खास बनाता है, यहां के कुछ परिवारों में एक साथ कई लोग आईएएस और आईपीएस अधिकारी बने हैं। उदाहरण के लिए, एक ही परिवार से पांच लोग प्रशासनिक सेवाओं में अपना नाम कमा चुके हैं। यह तथ्य इस गांव के लिए गर्व का कारण है और यह दर्शाता है कि माधोपट्टी में प्रशासनिक सेवाओं की परंपरा कितनी गहरी और मजबूत है।

अन्य क्षेत्रों में भी सफलता

माधोपट्टी के लोग सिर्फ प्रशासनिक सेवाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी इस गांव के युवाओं ने अपनी पहचान बनाई है। यहां के कई लोग भारतीय सेना, शिक्षा, विज्ञान, और अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे नासा, इसरो और संयुक्त राष्ट्र (UNO) में भी कार्यरत हैं। यह गांव न केवल प्रशासनिक सेवा, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सफलता के लिए जाना जाता है।

शिक्षा के प्रति समर्पण

माधोपट्टी में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यहां के प्रत्येक घर में किताबों और अध्ययन का माहौल होता है। माता-पिता बचपन से ही अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करते हैं। यही वजह है कि इस गांव से लगातार नए आईएएस और आईपीएस अधिकारी निकलते आ रहे हैं। यहां की शिक्षा व्यवस्था और युवा पीढ़ी का समर्पण इसे सफलता के रास्ते पर लगातार बढ़ा रहे हैं।

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युवाओं के लिए प्रेरणा

माधोपट्टी का यह उदाहरण उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकता है, जो सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इस गांव का संदेश यह है कि यदि समर्पण, मेहनत, और सही मार्गदर्शन मिले, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। यहां के लोग साबित करते हैं कि सफलता केवल संसाधनों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि इच्छाशक्ति और परिश्रम से भी प्राप्त की जा सकती है।

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Save Hasdeo Chhattisgarh: अदानी के कोल साम्राज्य का काला खेल! हसदेव अरण्य में पेड़ों ...

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Save Hasdeo Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ राज्य के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल खनन को लेकर हाल ही में उठे विवादों ने एक बार फिर प्रशासन की नीतियों को सवालों के घेरे में डाल दिया है। केंद्र और राज्य सरकार ने अदानी समूह के तहत आने वाले तीन कोल ब्लॉकों को लेमरू हाथी रिजर्व के बाहर रखने का फैसला किया है, जबकि बाकी सभी 21 कोल ब्लॉकों को लेमरू रिजर्व के अंदर रखने का निर्णय लिया था। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब स्थानीय लोग और पर्यावरणविद इस क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संतुलन को बचाने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।

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हसदेव अरण्य का ऐतिहासिक संघर्ष- Save Hasdeo Chhattisgarh

2021 में, हसदेव अरण्य के 1995 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लेमरू हाथी रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने के बाद इस क्षेत्र में खनन के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन शुरू हुआ था। वर्ष 2011 में, हसदेव अरण्य को समृद्ध जैव विविधता और विशिष्ट पारिस्थितिकीय तंत्र के कारण खनन से मुक्त क्षेत्र (नो हो क्षेत्र) घोषित किया गया था। लेकिन इसके बावजूद, पीईकेबी (द्वितीय चरण) जैसी खदानों के विस्तार की अनुमति देने के लिए नीतियां बदलीं।

सुप्रीम कोर्ट और न्यायिक लूपहोल्स

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पीईकेबी खदान की वन स्वीकृति को निरस्त कर दिया था, लेकिन बाद में 2023 तक इस पर स्थगन आदेश जारी किया गया, जिससे खदान को संचालित करने की अनुमति दी गई। हालांकि, इस आदेश के बावजूद खदान की क्षमता में 10 से 21 MTPA तक का विस्तार कर दिया गया। इसके कारण निचली अदालतों में खदान से संबंधित अन्य मामलों की सुनवाई में भी कठिनाइयाँ आईं। इस समय, सुप्रीम कोर्ट, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), और उच्च न्यायालय में प्रभावित समुदाय की याचिकाएं लंबित हैं, लेकिन न्याय की उम्मीद अब भी जीवित है।

जैव विविधता और पर्यावरणीय खतरे

भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा 2021 में तैयार की गई रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि हसदेव अरण्य को फिर से नो हो क्षेत्र घोषित किया जाए, क्योंकि किसी भी कोल ब्लॉक में खनन की अनुमति देने से छत्तीसगढ़ में मानव और हाथी संघर्ष और अधिक विकराल हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इससे हसदेव नदी और बागों बांध का अस्तित्व भी संकट में पड़ सकता है। इसके बावजूद, सरकार ने पीईकेबी, परसा और कैंट एक्सटेंशन कोल ब्लॉकों को रिजर्व से बाहर रखा और 2022 में इन खदानों की वन स्वीकृति जारी कर दी।

स्थानीय विरोध और राज्य सरकार की निष्क्रियता

स्थानीय ग्राम सभाओं और ग्रामीणों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद, राज्य और केंद्र सरकार ने इन कोल ब्लॉकों की अनुमति को निरस्त नहीं किया। यहां तक कि राज्यपाल ने फर्जी ग्राम सभाओं की जांच के आदेश दिए थे, लेकिन इस आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया गया। 2022 में, छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से यह संकल्प पारित किया कि हसदेव अरण्य के सभी कोल ब्लॉकों को निरस्त किया जाए, लेकिन इसके बावजूद अनुमति जारी करने की प्रक्रिया नहीं रुकी।

पुलिस बल और दमन की स्थिति

स्थानीय समुदाय के विरोध और संघर्ष के बावजूद, पुलिस बल के सहयोग से इन कोल ब्लॉकों में पेड़ों की कटाई का काम तेज़ी से किया जा रहा है। प्रत्येक छह महीने में, इन क्षेत्रों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, जो पर्यावरणीय संकट को और बढ़ा रही है। यह सवाल उठता है कि शासन और प्रशासन आखिर किसके साथ खड़ा है, क्योंकि स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद इन खदानों के संचालन को लेकर प्रशासन का रवैया कठोर बना हुआ है।

हसदेव अरण्य में हो रहे इन विवादों ने पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जहां एक ओर सरकार खनन कार्यों को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय समुदाय और पर्यावरणविदों द्वारा लगातार विरोध किया जा रहा है। यह स्थिति यह साबित करती है कि विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती बन गया है। स्थानीय समुदायों और पर्यावरण के हितों की अनदेखी करने से न केवल जैव विविधता संकट में पड़ सकती है, बल्कि यह भविष्य में मानव-हाथी संघर्ष को भी और गंभीर बना सकता है।

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Madhya Pradesh News: नशीली कफ सिरप के कारोबार में लिप्त युवती मोनालिसा गिरफ्तार, नाबा...

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मनगवां थाना पुलिस ने नशीली कफ सिरप के कारोबार में शामिल एक युवती को गिरफ्तार किया है, जो अपना नाम बदलकर अवैध व्यापार कर रही थी। युवती का नाम मोनालिसा है, और वह लंबे समय से कॉल के जरिए कस्टमर को नशीली कफ सिरप की डिलीवरी कर रही थी। पुलिस ने युवती को रंगे हाथों पकड़ा और उसके पास से बड़ी मात्रा में नशीली कफ सिरप बरामद की।

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पुलिस को थी युवती के गोरखधंधे की जानकारी, मौके पर जाकर की गिरफ्तारी- Madhya Pradesh News

मनगवां पुलिस को लंबे समय से युवती के नशीली कफ सिरप के व्यापार के बारे में जानकारी प्राप्त हो चुकी थी, लेकिन पुलिस टीम ने उसे रंगे हाथों पकड़ने का निर्णय लिया था। पुलिस को जैसे ही मौके पर युवती के आने की सूचना मिली, उन्होंने तुरंत दबिश दी और उसे गिरफ्तार कर लिया। युवती अपने किराए के मकान में रह रही थी, जो प्रयागराज हाईवे पर स्थित था, और वहीं से वह अपने अवैध कारोबार को चला रही थी।

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नशीली कफ सिरप का कारोबार और डिलीवरी का तरीका

युवती ने अपने असली नाम को बदलकर मोनालिसारख लिया था ताकि वह पुलिस की पकड़ से बच सके। वह नशीली कफ सिरप की डिलीवरी अपने कस्टमरों तक खुद ही पहुँचाती थी। कस्टमर उसे कॉल करते थे और फिर वह उनसे कैश ऑन डिलीवरी के माध्यम से नशीली कफ सिरप का लेन-देन करती थी। पुलिस ने युवती के अवैध कारोबार को पकड़ने के लिए कई दिनों तक निगरानी रखी और अंततः छापेमारी कर उसे रंगे हाथों पकड़ लिया।

सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए थे युवती के वीडियो

मोनालिसा का नाम सोशल मीडिया पर भी चर्चा में आया था, क्योंकि उसके वीडियो कई बार वायरल हो चुके थे। इन वीडियो में वह नशीली कफ सिरप के कारोबार को प्रमोट करती दिखी थी। यह भी जानकारी सामने आई कि युवती ने अपनी दो नाबालिग बहनों को भी इस अवैध गोरखधंधे में शामिल किया था। पुलिस अब उनकी भी जांच कर रही है।

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नशीली कफ सिरप का बढ़ता हुआ खतरा

नशीली कफ सिरप का अवैध कारोबार देशभर में तेजी से फैल रहा है और इसे लेकर पुलिस प्रशासन लगातार कार्रवाई कर रहा है। इस तरह के नशीले पदार्थों का सेवन युवाओं में एक गंभीर समस्या बन चुका है, क्योंकि यह उन्हें नशे की लत में डाल सकता है। मनगवां थाना पुलिस ने इस कार्रवाई को बड़ी सफलता माना है और यह उम्मीद जताई है कि इससे नशीली कफ सिरप के कारोबार में कमी आएगी।

पुलिस की कार्रवाई और आगे की जांच

मनगवां पुलिस ने मोनालिसा को गिरफ्तार करने के बाद उसके खिलाफ संबंधित धाराओं में मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस अब यह जांच कर रही है कि वह और कौन लोग इस अवैध कारोबार में शामिल थे और नशीली कफ सिरप की आपूर्ति करने वाले अन्य लोग कौन हैं। पुलिस ने इस मामले में और भी गिरफ्तारियों की संभावना जताई है और कहा है कि जल्द ही इस नेटवर्क का पर्दाफाश किया जाएगा।

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Manoj Kumar Death News: मनोज कुमार नहीं, ‘भारत कुमार’ कहिए… इस फिल्...

Manoj Kumar Death News: बॉलीवुड के महान अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार का 87 साल की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्होंने भारतीय सिनेमा में एक नई दिशा की शुरुआत की थी। उनकी फिल्में न केवल दर्शकों का मनोरंजन करती थीं, बल्कि समाज में राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना भी जगाती थीं। उनकी फिल्म ‘उपकार’ में गाया गया गीत “मेरे देश की धरती सोना उगले” आज भी हर भारतीय की जुबान पर है। यह गीत न केवल भारतीय किसानों और सैनिकों की मेहनत और बलिदान को याद करता है, बल्कि यह भारतीय आत्मा की गूंज है।

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‘उपकार’ और देशभक्ति की नई पहचान- Manoj Kumar Death News

1967 में रिलीज़ हुई फिल्म उपकार उस समय के राजनीतिक और सामाजिक परिवेश को दर्शाती थी। जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के बाद देश की स्थिति कठिन थी, तब यह फिल्म जनता में नए उत्साह और जोश का संचार करती थी। फिल्म में दिखाए गए भारतीय सैनिकों और किसानों के संघर्षों को केंद्रित करते हुए, मनोज कुमार ने यह संदेश दिया कि देश के लिए कोई भी बलिदान छोटा नहीं होता।

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मनोज कुमार ने फिल्म का निर्देशन और निर्माण खुद किया और यह उनके करियर का अहम मोड़ साबित हुआ। उनके इस प्रयास को ना केवल दर्शकों ने सराहा, बल्कि फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। फिल्म के लोकप्रिय गीत “मेरे देश की धरती” ने हर भारतीय दिल को छुआ और इसे एक राष्ट्रवादी गान के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।

मनोज कुमार का संघर्षमय जीवन

मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को पाकिस्तान के एबटाबाद में हुआ था। विभाजन के बाद, वह अपने परिवार के साथ दिल्ली के शरणार्थी शिविर में पले-बढ़े। मुंबई में आने के बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और उनकी पहली फिल्म फैशन 1957 में रिलीज हुई। हालांकि, उन्हें असली पहचान 1965 में आयी फिल्म शहीद से मिली, जिसमें उन्होंने भगत सिंह का किरदार निभाया। यह फिल्म उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई और इसके बाद से वे देशभक्ति फिल्मों के प्रमुख चेहरों में से एक बन गए।

‘उपकार’ से ‘भारत कुमार’ तक

जब फिल्म उपकार रिलीज हुई, तो दर्शक उनके अभिनय से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें प्यार से ‘भारत कुमार’ कहने लगे। यह फिल्म न केवल एक बॉक्‍स ऑफिस हिट थी, बल्कि इसने भारतीय समाज की सच्चाइयों को भी पर्दे पर उतारा। फिल्म में देशभक्ति के साथ-साथ किसानों और सैनिकों की अहमियत को प्रमुखता से दिखाया गया। यह फिल्म विशेष रूप से भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के “जय जवान जय किसान” नारे से प्रेरित थी।

मनोज कुमार ने खुद कहा था कि उपकार फिल्म को बनाने के पीछे एक गहरी सोच थी, जिसमें उन्होंने भारतीय समाज के संघर्षों को दर्शाया। इस फिल्म के जरिए उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि राष्ट्र की समृद्धि और सुरक्षा में सैनिकों और किसानों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है।

मनोज कुमार का प्रेरणादायक करियर

मनोज कुमार ने न केवल अभिनेता के रूप में बल्कि एक निर्माता और निर्देशक के तौर पर भी खुद को साबित किया। उन्होंने फिल्मों के माध्यम से देशभक्ति के उन महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया जो आमतौर पर पर्दे पर नहीं दिखाए जाते थे। उनकी फिल्म क्रांति, जो 1981 में रिलीज हुई, ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित थी। यह फिल्म उस समय के लिए एक बड़ा बजट प्रोजेक्ट थी, जिसमें उन्होंने 3 करोड़ रुपये खर्च किए थे।

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हालांकि, क्रांति बनाने में उन्हें वित्तीय संकटों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। फिल्म की निर्माण प्रक्रिया के दौरान, उन्होंने अपनी संपत्ति तक बेच दी थी। खबरों की मानें तो जब उनके पास पैसे की कमी हो गई तो उन्होंने दिल्ली में अपना बंगला बेच दिया। इसके बाद भी जब पैसे नहीं मिले तो उन्होंने मुंबई के जुहू इलाके में अपना प्लॉट बेच दिया था। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 16 करोड़ रुपये की कमाई की, जो उस समय के हिसाब से बहुत बड़ी सफलता थी। इस फिल्म में दिलीप कुमार, शशि कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा और हेमा मालिनी जैसे बड़े सितारे थे।

सत्ता और शासन से टकराव

इमरजेंसी के दौरान जब इंदिरा गांधी की सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठने लगी थी, तो मनोज कुमार ने भी अपनी फिल्मों के माध्यम से सरकार के कार्यों की आलोचना की। आपातकाल के दौर में उनकी फिल्मों दस नंबरी और शोर पर बैन लगा दिया गया था। इस दौरान उन्होंने अपनी फिल्मों के प्रसारण के खिलाफ अदालत में चुनौती दी और लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। आखिरकार, उन्होंने कोर्ट में जीत हासिल की।

मनोज कुमार की अद्वितीय विरासत

मनोज कुमार ने न केवल फिल्मों के जरिए देशभक्ति की भावना को बढ़ावा दिया, बल्कि अपने जीवन में भी उसे जीने की कोशिश की। उन्होंने कहा था, “देशभक्ति मेरे खून में है,” और यही भावना उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से व्यक्त की। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और उनकी फिल्में देशभक्ति और समाज के प्रति जागरूकता का प्रतीक बनकर रहेंगी।

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Hyderabad University land dispute: हैदराबाद विश्वविद्यालय की 400 एकड़ जमीन पर छिड़ी ज...

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Hyderabad University land dispute: हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (HCU) के पास स्थित 400 एकड़ भूमि को लेकर विवाद अब अदालतों तक पहुंच चुका है। इस विवाद में तेलंगाना सरकार और हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र, पर्यावरणविद, और विपक्षी दल शामिल हो गए हैं। सरकार इस भूमि को सरकारी संपत्ति मानते हुए इसे समतल करने और विकसित करने की योजना बना रही है, जबकि विश्वविद्यालय और विभिन्न पर्यावरण संगठनों ने इसका विरोध किया है। उन्होंने इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की मांग की है, ताकि यहां की जैव विविधता और पारिस्थितिकी को संरक्षित किया जा सके।

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कोर्ट की रोक और अगली सुनवाई- Hyderabad University land dispute

2 अप्रैल 2025 को तेलंगाना हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की। अदालत ने आदेश दिया कि इस भूमि पर पेड़ काटने का काम तुरंत रोका जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि 3 अप्रैल 2025 तक वहां कोई पेड़ नहीं काटे जाएंगे और इस पर कोई कार्यवाही नहीं होगी। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार, 4 अप्रैल को तय की है।

क्या है विवाद?

यह विवाद 400 एकड़ भूमि को लेकर है, जिसे सरकार ने TGIIC को सौंपने की योजना बनाई है। HCU के छात्र और पर्यावरणविद इस भूमि को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक प्रतिनिधि, एल रविशंकर, ने कोर्ट में इस बात का उल्लेख किया कि यह भूमि वन क्षेत्र नहीं है, लेकिन इसमें कई झीलें, चट्टानें और दुर्लभ जानवरों का निवास है, जो इसके पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस भूमि को समतल करने से पहले एक विशेषज्ञ समिति द्वारा जांच होनी चाहिए और एक महीने तक इसका अध्ययन किया जाए।

मोरों के चीखने वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल

इस मामले से जुड़ा एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में दिख रहा है कि रात के अंधेरे में कई बुलडोजर जंगल काट रहे हैं और पेड़ों से कई मोरों के चीखने की आवाज आ रही है। मोरों के चीखने की आवाज बिल्कुल इंसानों जैसी लग रही है।

 

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सरकार की दलीलें

सरकार की ओर से एजी सुदर्शन रेड्डी ने अपनी बात रखी और कोर्ट में गूगल तस्वीरें दिखाकर यह बताया कि यह भूमि औद्योगिक उपयोग के लिए अधिक उपयुक्त है। उन्होंने कहा कि यह भूमि पहले से ही विकास के लिए तैयार है, क्योंकि इसके आस-पास के क्षेत्र में बड़ी इमारतें, हेलीपैड्स, और अन्य औद्योगिक ढांचें पहले से मौजूद हैं। सरकार ने यह भी तर्क दिया कि यह भूमि एक जंगल नहीं है और यहां पर पेड़ काटने या अन्य कार्य करने में कोई कानूनी रोक नहीं होनी चाहिए।

पर्यावरण मंत्री का हस्तक्षेप

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने 3 अप्रैल 2025 को इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने तेलंगाना सरकार से 400 एकड़ भूमि पर पेड़ों की कटाई के बारे में तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है। उन्होंने राज्य सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यह “दुर्भाग्यपूर्ण” है कि राज्य सरकार को ऐसे कदम उठाने के लिए रात के अंधेरे में काम करना पड़ा। यादव ने यह भी कहा कि 400 से अधिक पेड़ काट दिए गए हैं और मोर जैसी जंगली प्रजातियों को भी नुकसान पहुंचाया गया है। उन्होंने कहा, “हमने मुख्य सचिव को नोटिस भेजा है और हम इस मामले पर कार्रवाई करेंगे।”

यूओएचएसयू का विरोध और भूख हड़ताल

इस मुद्दे पर हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ (यूओएचएसयू) के प्रतिनिधियों ने 1 अप्रैल 2025 से कक्षाओं का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। छात्रों का कहना है कि जब तक सरकार अपने निर्णय को वापस नहीं लेती, वे क्रमिक भूख हड़ताल करेंगे। उन्होंने कक्षा बहिष्कार, पेड़ों की कटाई को रोकने, और मिट्टी हटाने वाली मशीनों को हटाने की मांग की है।

राजनीतिक हस्तक्षेप

तेलंगाना के सांसदों ने भी इस मुद्दे में हस्तक्षेप किया है। उन्होंने केंद्र से इस विवाद में शामिल होने की अपील की थी, जिससे यह मुद्दा और भी गर्मा गया। इसके बाद, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिलकर छात्रों ने हैदराबाद विश्वविद्यालय में कथित भूमि अतिक्रमण को रोकने के लिए केंद्रीय मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की।

सत्ता में आने पर इको पार्क का वादा

बीआरएस पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के टी रामा राव ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि उनकी पार्टी सत्ता में आने पर इस 400 एकड़ भूमि पर इको पार्क स्थापित करेगी। उन्होंने कहा कि यह इको पार्क हैदराबाद विश्वविद्यालय और शहरवासियों के लिए एक बहुत अच्छा स्थान होगा, जहां जैव विविधता को संरक्षित किया जाएगा।

यह मामला केवल हैदराबाद विश्वविद्यालय और राज्य सरकार के बीच भूमि के स्वामित्व का नहीं, बल्कि इसके पर्यावरणीय महत्व का भी है। दोनों पक्षों के बीच यह लड़ाई केवल जमीन और विकास के बारे में नहीं, बल्कि जैव विविधता और पारिस्थितिकी की रक्षा को लेकर भी है। इस मुद्दे पर तेलंगाना सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव और छात्र संघों के विरोध प्रदर्शन ने इस मामले को और गंभीर बना दिया है।

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