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Cyber Attack on Iran: जानें इजरायल ने ईरान पर कब-कब किए साइबर हमले, यहां पढ़ें पूरा कच्चा चिट्ठा

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Cyber Attack on Iran
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इजरायल से तनाव के बीच ईरान को शनिवार को एक बड़े साइबर हमले का सामना करना पड़ा, जिसमें उसके परमाणु संयंत्रों को भी निशाना बनाया गया। इस साइबर हमले से ईरानी सरकार की तीनों शाखाएँ प्रभावित हुई हैं। वैसे, पिछले कुछ दशकों में ईरान पर साइबर हमलों (Cyber Attack on Iran) की कई घटनाएँ हुई हैं, जिनमें कभी इजरायल तो कभी अमेरिका का नाम भी आता रहा है। इन साइबर हमलों का उद्देश्य ईरान की परमाणु और सैन्य क्षमताओं को कमज़ोर करना या उसे ख़तरनाक तकनीक तक पहुँचने से रोकना था। आइए हम आपको बताते हैं कि कब-कब इजरायल ने ईरान पर साइबर हमले किए। इन हमलों में ‘स्टक्सनेट’, ‘स्टार्स’ और ‘वाइपर’ जैसे कोड नाम शामिल हैं।

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स्टक्सनेट (Stuxnet) – 2010

स्टक्सनेट दुनिया का पहला ज्ञात साइबर हथियार था, जिसे इज़राइल और अमेरिका ने मिलकर विकसित किया था। इसका उद्देश्य ईरान के नतांज़ परमाणु संयंत्र में स्थापित सेंट्रीफ्यूज को निशाना बनाना था, जिसका उपयोग यूरेनियम संवर्धन के लिए किया जाता था। स्टक्सनेट वायरस ने सेंट्रीफ्यूज को धीमा करके या तेज़ करके नुकसान पहुँचाया, जिससे ईरान का परमाणु कार्यक्रम कई साल पीछे चला गया।

Stuxnet cyber Attack
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  • यह वायरस मुख्य रूप से विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम को प्रभावित करता था और बिना किसी बाहरी इंटरनेट कनेक्शन के भी काम कर सकता था।
  • यह अटैक बेहद जटिल और परिष्कृत था, जो साइबर युद्ध के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुआ।

स्टार्स (Stars) – 2011

2011 में ईरान ने दावा किया था कि उसके औद्योगिक सिस्टम पर एक और साइबर हमला हुआ था, जिसे उसने ‘स्टार्स’ नाम दिया था। हालांकि यह हमला स्टक्सनेट जितना प्रभावी नहीं था, लेकिन ईरान ने इसे एक बड़ा ख़तरा माना।

  • ‘स्टार्स’ नामक वायरस को ईरान के अधिकारियों ने एक कम प्रभावशाली हमले के रूप में वर्गीकृत किया, लेकिन इसने देश की साइबर सुरक्षा कमजोरियों को उजागर किया।

वाइपर (Wiper) – 2012

वाइपर एक और खतरनाक साइबर हमला था जिसने ईरान के तेल उद्योग को प्रभावित किया। इस हमले ने ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी और उसके मंत्रालय के कंप्यूटर सिस्टम को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया।

  • वाइपर ने कंप्यूटरों की हार्ड ड्राइव को पूरी तरह से मिटा दिया, जिससे डेटा की स्थायी हानि हुई।
  • यह अटैक तेल उद्योग को निशाना बनाने वाला था, जिसने ईरान की आर्थिक स्थिति पर असर डाला।

शामून (Shamoon) – 2012 और 2016

शमून वाइपर जैसा ही एक और बड़ा साइबर हमला था। यह हमला मुख्य रूप से सऊदी अरामको पर केंद्रित था, लेकिन इसे ईरान के खिलाफ़ सीधे जवाब के रूप में देखा गया। शमून ने सऊदी अरब और ईरान के बीच बढ़ते साइबर युद्ध की ओर इशारा किया।

Shamoon Cyber Attack
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  • यह मैलवेयर तेल उद्योग की कंपनियों पर हमला करता था और डेटा को मिटा देता था।
  • शामून का नया संस्करण 2016 में फिर से सामने आया, जिससे यह साबित हुआ कि साइबर अटैक की घटनाएँ लगातार हो रही थीं।

डूज़ू (Duzu) और अन्य साइबर हमले

इसके अलावा, ईरान पर डुज़ू और अन्य अज्ञात साइबर हथियारों का उपयोग करके कई छोटे और बड़े साइबर हमले किए गए हैं। इन हमलों का उद्देश्य ईरान की परमाणु, रक्षा और आर्थिक प्रणालियों को नुकसान पहुँचाना था।

बता दें, ईरान पर हुए साइबर हमलों में सबसे प्रमुख भूमिका इजरायल की मानी जाती है और कई बार इसमें अमेरिका का भी हाथ रहा है। स्टक्सनेट, स्टार्स, वाइपर और शमून जैसे साइबर हथियारों का ईरान के संवेदनशील परमाणु और औद्योगिक ढांचों पर गहरा असर पड़ा है। इन हमलों ने साइबर युद्ध को एक नया आयाम दिया और देशों के बीच पारंपरिक युद्ध की जगह एक नई तरह की लड़ाई की शुरुआत की।

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Rajasthan: जानें गंगानगर और हनुमानगढ़ कैसे बने “मिनी पंजाब”? यहां 90% लोग बोलते हैं पंजाबी भाषा

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Rajasthan Mini Punjab
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राजस्थान का मिनी पंजाब (Rajasthan Mini Punjab) कहे जाने वाले गंगानगर और हनुमानगढ़ (Ganganagar- Hanumangarh) जिले पंजाबी संस्कृति और भाषा से गहराई से जुड़े हुए हैं। इन जिलों में करीब 90% लोग पंजाबी भाषी हैं और यहां की भाषा, रहन-सहन और संस्कृति पर पंजाब का गहरा प्रभाव दिखता है। इसलिए गंगानगर और हनुमानगढ़ को राजस्थान का “मिनी पंजाब” कहना गलत नहीं होगा। यहाँ की पंजाबी आबादी ने इस क्षेत्र को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाया है और इसे एक अनूठी पहचान दी है।

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कैसे अस्तित्व में आया मिनी पंजाब? (Rajasthan Mini Punjab)

गंगानगर और हनुमानगढ़ को “मिनी पंजाब” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका इतिहास और संस्कृति पंजाब से जुड़ी हुई है। 1947 में विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पंजाबी शरणार्थी इन इलाकों में आकर बस गए। तब से यहां की आबादी में पंजाबी समुदाय का दबदबा बढ़ता गया और धीरे-धीरे यह इलाका पंजाबी बहुल हो गया।

पंजाबी भाषा और संस्कृति का प्रभाव

– इन जिलों में लोग मुख्य रूप से पंजाबी भाषा बोलते हैं। हालांकि हिंदी भी बोली जाती है, लेकिन पंजाबी संस्कृति और परंपराओं का प्रभाव बहुत अधिक है।

– पंजाब की तरह गंगानगर और हनुमानगढ़ भी कृषि प्रधान क्षेत्र हैं। यहां के लोग मुख्य रूप से खेती-किसानी करते हैं और उनकी जीवनशैली पंजाब के ग्रामीण इलाकों जैसी ही है।

– यहां के लोग सलवार-कमीज और पगड़ी जैसे पंजाबी परिधान पहनना पसंद करते हैं। साथ ही, पंजाब के प्रमुख त्यौहार जैसे बैसाखी, लोहड़ी और गुरुपर्व भी यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं।

– इन जिलों में पंजाबी खाने का बहुत प्रभाव है। मक्खन, लस्सी, सरसों का साग और मक्के की रोटी जैसे व्यंजन यहां के लोगों की खासियत हैं।

गंगानगर का प्रारंभिक इतिहास

गंगानगर, जिसे अक्सर “राजस्थान का पंजाब” (Punjab of Rajasthan) कहा जाता है, एक ऐतिहासिक और कृषि प्रधान क्षेत्र है। इसका इतिहास महत्वपूर्ण घटनाओं और विकास से जुड़ा हुआ है। गंगानगर का नाम बीकानेर राज्य के महाराजा गंगा सिंह के नाम पर रखा गया है और इसका विकास मुख्य रूप से उनकी दूरदर्शिता और जल प्रबंधन योजनाओं का परिणाम है।

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गंगानगर का क्षेत्र राजस्थान के पश्चिमी भाग में स्थित है, जो कभी थार रेगिस्तान का हिस्सा था। यह क्षेत्र बहुत शुष्क और बंजर था और यहाँ कृषि या बस्ती का विस्तार करना बहुत मुश्किल था। लेकिन इस क्षेत्र का सामरिक और भौगोलिक महत्व सदियों तक बना रहा।

महाराजा गंगा सिंह का योगदान

महाराजा गंगा सिंह (Maharaja Ganga Singh) बीकानेर राज्य के प्रमुख शासकों में से एक थे और अपनी आधुनिक सोच और दूरदर्शिता के लिए जाने जाते थे। 1920 के दशक में उन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए जल प्रबंधन पर जोर दिया। अपने शासनकाल के दौरान महाराजा ने पंजाब से पानी लाने के लिए एक नहर प्रणाली की योजना बनाई, जिसे बाद में गंग नहर (गंगा नहर) कहा गया। इस नहर परियोजना का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र की सिंचाई करना और इसे कृषि भूमि में बदलना था। इस परियोजना के कारण रेगिस्तानी और बंजर भूमि कृषि के लिए उपजाऊ बन गई। इस विकास के बाद यह क्षेत्र उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र बन गया।

Maharaja Ganga Singh
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पंजाबियों का बसना और आगमन

खास तौर पर 1947 के बंटवारे के बाद पंजाब से बड़ी संख्या में शरणार्थी और किसान गंगानगर इलाके में आकर बसने लगे। पंजाब से आए इन लोगों ने यहां कृषि का विस्तार किया और इस इलाके में गन्ना, गेहूं, कपास और सरसों जैसी फसलों की सफलतापूर्वक खेती शुरू की। यही वजह है कि गंगानगर को “मिनी पंजाब” कहा जाता है, क्योंकि यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा पंजाबी भाषी है और पंजाबी संस्कृति का यहां गहरा प्रभाव है।

कृषि और अर्थव्यवस्था

गंगानगर में इंदिरा गांधी नहर और गंग नहर की मदद से यह क्षेत्र राजस्थान के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक बन गया है। यहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। गंगानगर में उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलें गन्ना, गेहूँ, चना, सरसों और कपास हैं।

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kishore kumar: आधा पैसा, आधा काम! घर के बाहर लगाया ‘किशोर से सावधान’ का बोर्ड, जानें किशोर दा से जुड़े रोचक किस्से

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भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता किशोर कुमार (Kishore Kumar) अपनी अनोखी शख्सियत, अनोखे सेंस ऑफ ह्यूमर और अपने अंदाज के लिए जाने जाते हैं। उनके बारे में कई दिलचस्प किस्से हैं, जिनमें से एक यह भी है कि वह कहा करते थे कि अगर उन्हें आधे पैसे मिलें तो वह आधा काम करेंगे। यह किस्सा उनकी बेबाकी और मनोरंजन जगत में उनकी अनोखी पहचान को दर्शाता है। बॉलीवुड के मशहूर गायक किशोर कुमार की 37वीं पुण्यतिथि (Kishore Kumar 37th death anniversary) पर आज हम उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से आपको बताएंगे।

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आधा पैसा, आधा काम का किस्सा-Kishore Kumar Unknown facts

किशोर कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे काम के लिए बहुत पेशेवर थे, लेकिन उनकी शर्तें भी उतनी ही अनोखी थीं। एक बार जब एक फिल्म निर्माता ने उन्हें उनकी फीस का आधा पैसा देने की पेशकश की, तो किशोर कुमार ने कहा, “अगर मुझे आधे पैसे मिलेंगे, तो मैं आधा काम करूंगा।” इसके बाद जब शूटिंग के दौरान उन्हें आधे पैसे मिले, तो उन्होंने सेट पर मेकअप से अपना चेहरा आधा ही बनाया और आधी शूटिंग ही की। यह घटना इस बात का प्रतीक थी कि किशोर कुमार अपने काम को लेकर कितने स्पष्ट और पक्के थे। वे अपनी कला के लिए पूरा सम्मान चाहते थे और अगर उन्हें पूरा भुगतान नहीं मिलता था, तो वे उसे उसी हिसाब से हल्के में लेते थे।

किशोर कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे (Multi-Talented Kishore Kumar)

किशोर कुमार ने अपने करियर में हिंदी के अलावा बंगाली, मराठी, असमिया, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, उड़िया और उर्दू भाषा में लगभग 2700 गाने गाए। किशोर कुमार न केवल एक बेहतरीन गायक थे, बल्कि एक बेहतरीन अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और संगीतकार भी थे। उन्होंने अपने करियर में कई हिट फिल्में दीं और अपने गानों से सिनेमा को नई ऊंचाइयां दीं। उनके गाने आज भी बहुत लोकप्रिय हैं और उनकी बहुमुखी प्रतिभा का अनूठा उदाहरण हैं।

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हास्य शैली और विद्रोही स्वभाव किशोर कुमार के व्यक्तित्व की खासियत थी। वह लीक से हटकर सोचते थे और इसीलिए वह हमेशा सिनेमा और संगीत में कुछ नया लाने की कोशिश करते थे। उन्होंने कई फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीता और हास्य किरदारों में अपनी छाप छोड़ी।

अनोखे और स्वतंत्र स्वभाव के कारण मिली लोकप्रियता

किशोर कुमार का स्वतंत्र और अनोखा स्वभाव ही उन्हें दूसरे कलाकारों से अलग बनाता था। उन्होंने कई बार इंडस्ट्री की प्रचलित परंपराओं और मानदंडों को चुनौती दी और अपने तरीके से काम करने का साहस दिखाया। उनके बेबाक अंदाज ने उन्हें एक ऐसी पहचान दी जो आज भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमिट है।

किशोर कुमार से सावधान का बोर्ड

किशोर कुमार एक अपरंपरागत जीवन जीना पसंद करते थे। उन्हें यह पसंद नहीं था कि उनके घर पर बहुत से लोग उनसे मिलने आएं। इसके अलावा, उन्हें मीडिया इंटरव्यू करना भी पसंद नहीं था। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए एक खास तरीका खोज निकाला था कि कोई भी उनसे मिलने न आए। उन्होंने अपने घर के बाहर एक चेतावनी बोर्ड लगा रखा था जिस पर लिखा था, “किशोर कुमार से सावधान रहें।” इसके अलावा, उन्होंने अपने घर के बैठने की जगह पर एक खोपड़ी और हड्डियां रखी थीं और लाल लाइट जलाकर रखते थे, ताकि डरकर उनसे कोई मिलने ना आए।

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गंगनहर बंद: 2 नवंबर तक नहीं मिलेगा गंगाजल, गाजियाबाद-नोएडा के 10 लाख लोगों पर पानी की किल्लत का असर

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Ganga canal vs Ghaziabad-Noida
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गाजियाबाद और नोएडा (Ghaziabad-Noida) के लोगों के लिए आने वाले कुछ दिन मुश्किल भरे हो सकते हैं, क्योंकि मरम्मत कार्य के चलते 12 अक्टूबर से 2 नवंबर तक गंग नहर बंद (Gang Canal closed) कर दी गई है। इस बंद का सीधा असर इंदिरापुरम, वसुंधरा, वैशाली और डेल्टा कॉलोनी में रहने वाले करीब 10 लाख लोगों पर पड़ेगा, जिनकी जलापूर्ति गंगाजल से होती है। इस दौरान लोगों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, इसका असर न सिर्फ ट्रांस हिंडन (Trans Hindon) बल्कि नोएडा में भी गंगाजल की आपूर्ति पर पड़ेगा।

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क्यों बंद की गई गंग नहर? why Gang Canal was closed

गंग नहर की मरम्मत और सफाई का काम हर साल नियमित रूप से किया जाता है। इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित होता है कि नहर में कोई रुकावट न आए और पानी की आपूर्ति निर्बाध रूप से जारी रहे। इस बार भी सफाई और मरम्मत के लिए गंग नहर को बंद किया गया है, ताकि नहर की संरचना को सही स्थिति में रखा जा सके और भविष्य में पानी की आपूर्ति में कोई रुकावट न आए।

कौन से इलाके होंगे प्रभावित?

गंग नहर बंद होने का सबसे ज्यादा असर (Gang Canal closure Impact) गाजियाबाद और नोएडा जैसे बड़े शहरी इलाकों पर पड़ेगा। इन दोनों शहरों में पानी की आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा गंगाजल पर निर्भर करता है। इस बंदी के कारण इन इलाकों के लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ेगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गाजियाबाद और नोएडा के करीब 10 लाख लोग इस बंदी से प्रभावित होंगे।

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वैकल्पिक जलापूर्ति योजना

हालांकि, प्रशासन ने गंगनहर बंदी के दौरान वैकल्पिक जलापूर्ति की व्यवस्था करने का वादा किया है। स्थानीय प्रशासन और जल निगम ने टैंकरों के जरिए पानी की आपूर्ति करने का फैसला किया है, ताकि लोगों को कुछ राहत मिल सके। इसके अलावा भूजल और अन्य जल स्रोतों का भी इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन यह भी संभव है कि यह आपूर्ति सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त न हो।

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जलकल (Water works department) का दावा है कि उनकी टीम ने तैयारियां पूरी कर ली हैं। 150 से ज़्यादा जांचे गए पंपों के अलावा, 74 टैंकर तैयार हैं। ताकि स्थानीय लोगों को पानी से जुड़ी कोई समस्या न हो। इसके अलावा, एजेंसी ने एक आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर भी दिया है। पानी से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए सहायता पाने के लिए 8178016856 पर फ़ोन करें। जलकल टीम ने आगे बताया कि विभाग की तरफ से 74 टैंकर तैयार हैं, जो पूरे ट्रांस हिंडन में पानी की सप्लाई का काम करेंगे।

लोगों को सलाह

इस स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने लोगों से पानी का सदुपयोग करने और पानी की बर्बादी से बचने की अपील की है। पानी का सीमित इस्तेमाल करने और सिर्फ जरूरी कामों के लिए ही पानी का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है, ताकि जल संकट की स्थिति और गंभीर न हो।

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Ashok Kumar: भारतीय सिनेमा के ‘दादामुनी’ जिन्होंने 60 सालों तक बॉलीवुड पर किया राज, ऐसा था उनका फिल्मी करियर

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Ashok Kumar aka Dadamuni
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13 अक्टूबर को भारतीय सिनेमा के महानायक अशोक कुमार की जयंती (Ashok Kumar Birth anniversary) मनाई जाती है। अशोक कुमार, जिन्हें प्यार से ‘दादामुनी’ कहा जाता था, भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और बहुमुखी अभिनेताओं में से एक थे। उनका असली नाम कुमुदलाल गांगुली (Kumudlal Ganguly) था और उन्होंने फिल्म उद्योग में एक लंबी और प्रतिष्ठित पारी खेली है। आईए आपको बताते हैं उनके फिल्मी करिय के बारे में।

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प्रारंभिक जीवन और फिल्मी करियर- Ashok Kumar Bollywood Career

अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर, 1911 को बंगाल के भवानीपुर (अब कोलकाता) में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की और शुरू में अभिनेता बनने की ख्वाहिश नहीं रखते थे। उनका झुकाव फिल्मों की तकनीकी और निर्माण प्रक्रिया की ओर था और उन्होंने बॉम्बे टॉकीज (Bombay Talkies) में लैब असिस्टेंट के रूप में काम करना शुरू कर दिया।

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हालांकि, उनके फिल्मी करियर की शुरुआत 1936 की फिल्म ‘जीवन नैया’ में मुख्य अभिनेता के रूप में हुई और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी सहज अभिनय शैली और बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें भारतीय सिनेमा का एक प्रतिष्ठित चेहरा बना दिया।

प्रमुख फ़िल्में और उपलब्धियाँ- Ashok Kumar Bollywood Films

अशोक कुमार ने अपने करियर में कई यादगार फ़िल्मों में काम किया, जिनमें ‘अचल’, ‘किस्मत’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘बंदी’, ‘मझली दीदी’, ‘आशीर्वाद’ और ‘आरत’ जैसी फ़िल्में शामिल हैं, जिसने उन्हें भारतीय सिनेमा का अहम हिस्सा बना दिया।

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उनकी फ़िल्म ‘किस्मत’ (1943) भारतीय सिनेमा की पहली ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों में से एक थी, जिसने उन्हें काफ़ी प्रसिद्धि दिलाई। वहीं, ‘आशीर्वाद’ (1968) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार(National Award for Best Actor) भी मिला। इस फ़िल्म में रैपिंग जैसी उनकी अनूठी अदाकारी भी काफ़ी चर्चित रही।

दादामुनी  उपनाम कैसे मिला? Ashok Kumar aka Dadamuni

अशोक कुमार को “दादामुनी” उपनाम उनके छोटे भाई और मशहूर गायक-अभिनेता किशोर कुमार ने दिया था। बंगाली भाषा में “दादा” का मतलब बड़ा भाई होता है, और “मुनी” का मतलब संत या बुद्धिमान व्यक्ति होता है। इस प्रकार, “दादामुनी” का मतलब है “बड़ा भाई, जो ज्ञानी और सम्माननीय हो।” किशोर कुमार ने अशोक कुमार को यह नाम उनके शांत, गंभीर और आदर्शवादी व्यक्तित्व के कारण दिया था।

अशोक कुमार अपने परिवार में सबसे बड़े भाई थे और हमेशा एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते थे। उनके व्यक्तित्व में एक सादगी और समझदारी थी, जिसने उन्हें एक आदर्श और सम्मानित व्यक्ति बनाया। इसलिए “दादामुनि” नाम उनके व्यक्तित्व को बहुत सटीक रूप से परिभाषित करता है और यह नाम जीवन भर उनकी विशेष पहचान बन गया।

दादामुनि की विरासत

अशोक कुमार ने अपने जीवन में सादगी और विनम्रता का आदर्श प्रस्तुत किया। उनकी सरल और प्रभावी अभिनय शैली ने उन्हें सिनेमा के दिग्गजों में से एक बना दिया। उनकी विरासत आज भी जीवित है, और उन्हें उनकी फिल्मों और किरदारों के ज़रिए याद किया जाता है। अशोक कुमार सिर्फ़ सुपरस्टार ही नहीं थे, बल्कि वे भारतीय सिनेमा के स्तंभ थे।

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White House: कैसे बना अमेरिका का व्हाइट हाउस? यहां पढ़ें दुनिया की सबसे शक्तिशाली इमारत की कहानी

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13 अक्टूबर 1792 को अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी (America’s capital Washington DC) में एक ऐसी इमारत की नींव रखी गई, जो भविष्य में दुनिया के सबसे शक्तिशाली पद अमेरिकी राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास बनी। जिसे आज हम व्हाइट हाउस (White House) के नाम से जानते हैं, वह न केवल एक ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक इमारत है, बल्कि यह अमेरिकी राजनीति का केंद्र भी है। व्हाइट हाउस अमेरिकी इतिहास में शक्ति और लोकतंत्र का प्रतीक भी है। आइए जानते हैं व्हाइट हाउस के निर्माण से जुड़े रोचक तथ्य।

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कैसे शुरू हुआ व्हाइट हाउस का निर्माण?White House Built Story

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश के नेताओं को एहसास हुआ कि केंद्र सरकार को एक स्थायी राजधानी और राष्ट्रपति के लिए एक स्थायी निवास की आवश्यकता है। 1792 में, आयरिश मूल के वास्तुकार जेम्स होबन ने एक डिज़ाइन तैयार किया। यह डिज़ाइन ब्रिटिश और आयरिश वास्तुकला से प्रेरित था, और इसमें सफ़ेद बलुआ पत्थर से बनी एक भव्य इमारत की कल्पना की गई थी।

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व्हाइट हाउस की आधारशिला (White House cornerstone) 13 अक्टूबर 1792 को रखी गई थी और इसके निर्माण में करीब 8 साल लगे थे। संयुक्त राज्य अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन (US First President George Washington) ने इस परियोजना की शुरुआत की थी, लेकिन जब इमारत बनकर तैयार हुई, तब वे अपने पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे। संयुक्त राज्य अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति जॉन एडम्स (US Second president John Adams) और उनकी पत्नी एबिगेल एडम्स 1800 में व्हाइट हाउस में रहने वाले पहले राष्ट्रपति और पहली महिला बने।

निर्माण में कौन-कौन हुआ शामिल?

व्हाइट हाउस के निर्माण में कई स्थानीय कारीगरों और मजदूरों ने योगदान दिया था। हालांकि, इस इमारत का निर्माण इतिहास विवादास्पद भी है, क्योंकि इसमें अफ्रीकी-अमेरिकी दासों (African-American slaves) ने भी काम किया था। उस समय निर्माण कार्य के लिए दास श्रम का उपयोग करना आम बात थी और यह अमेरिकी इतिहास की एक कड़वी सच्चाई है।

1814 में हुआ आक्रमण और पुनर्निर्माण- Attack on White House

व्हाइट हाउस को पहली गंभीर चुनौती 1814 में मिली, जब ब्रिटिश सेना ने 1812 के युद्ध के दौरान वाशिंगटन डीसी पर हमला किया। ब्रिटिश सैनिकों ने व्हाइट हाउस को आग लगा दी, जिससे इमारत को बहुत नुकसान पहुंचा। व्हाइट हाउस को बाद में फिर से बनाया गया और 1817 में राष्ट्रपति जेम्स मोनरो ने इसका फिर से इस्तेमाल किया।

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विस्तार और आधुनिकीकरण

1900 के दशक की शुरुआत में, राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट (US 26th President Theodore Roosevelt) ने व्हाइट हाउस में बड़े पैमाने पर सुधार और विस्तार किए। इसके बाद, वेस्ट विंग और ईस्ट विंग का निर्माण किया गया, जिससे राष्ट्रपति और उनके प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए अधिक जगह उपलब्ध हुई। वेस्ट विंग में राष्ट्रपति का प्रसिद्ध ओवल ऑफिस है, जहां से अमेरिकी राष्ट्रपति अपना प्रशासनिक और कूटनीतिक कार्य करते हैं।

व्हाइट हाउस की महत्वपूर्ण विशेषताएं

– ओवल ऑफिस: व्हाइट हाउस का सबसे प्रतिष्ठित स्थान, जहां राष्ट्रपति का कार्यालय होता है।

– पब्लिक टूर: व्हाइट हाउस के कुछ हिस्से जनता के लिए भी खुले होते हैं। हालांकि, सुरक्षा कारणों से विशेष टूर की अनुमति होती है।

– राष्ट्रीय प्रतीक: व्हाइट हाउस सिर्फ एक सरकारी इमारत नहीं है, यह अमेरिकी लोकतंत्र और शक्ति का प्रतीक है।

व्हाइट हाउस: आज का परिप्रेक्ष्य

वर्तमान में व्हाइट हाउस दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है। यह न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास है, बल्कि यह देश की सत्ता और वैश्विक राजनीति का केंद्र भी है। इस इमारत ने अमेरिकी इतिहास के कई महत्वपूर्ण क्षणों जैसे युद्ध, शांति संधि, राजनीतिक परिवर्तन और ऐतिहासिक भाषणों को देखा है।

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Y कैटेगरी की सुरक्षा के बावजूद आखिर कैसे हो गई बाबा सिद्दीक़ी की हत्या? जानिए कैसे मिलती है ये सुरक्षा

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Baba Siddiqui Y category security
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महाराष्ट्र के मुंबई में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या (Baba Siddiqui Murder) के बाद पूरा राज्य सदमे में है। शनिवार देर रात तीन हमलावरों ने उन पर तीन गोलियां चलाईं। उन्हें लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी मौत हो गई। बिस्नोई गैंग (Bisnoi Gang) ने उनकी मौत की जिम्मेदारी ली है। हैरान करने वाली बात यह है कि उन्हें केंद्र सरकार की ओर से वाई श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी। इसके बावजूद उनकी हत्या को लेकर सवाल उठ रहे हैं। आइए आपको बताते हैं कि उनकी सुरक्षा में कहां चूक हुई और भारत में किसे वाई श्रेणी की सुरक्षा (Y Category Security) दी जाती है।

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Y सिक्योरिटी पर उठे सवाल- Questions raised on Y Security

रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाबा सिद्दीकी ने 15 दिन पहले बताया था कि उनकी जान को खतरा है। उन्होंने उपमुख्यमंत्री अजित पवार (Deputy Chief Minister Ajit Pawar) को इस बारे में जानकारी दी थी। इसके बाद उन्हें केंद्र सरकार की ओर से वाई लेवल की सुरक्षा दी गई थी। वहीं, जब सिद्दीकी पर हमला हुआ, तब वे अपने बेटे जीशान सिद्दीकी (Baba’s son Zeeshan Siddiqui) के बांद्रा ईस्ट स्थित ऑफिस से बाहर निकल रहे थे। इसी ऑफिस के बाहर तीन लोगों ने फायरिंग की। उन्हें दो से तीन गोलियां लगीं। घायल अवस्था में उन्हें लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। सिद्दीकी की मौत ने सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बाबा सिद्दीकी सुरक्षा में चूक- Baba Siddiqui security lapse

सूत्रों का दावा है कि हमलावरों ने विजयादशमी का दिन बहुत सोच समझकर चुना था। जिस समय बाबा सिद्दीकी पर हमला हुआ, उस समय आसपास के इलाके में बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे। चूंकि यह विजयादशमी का दिन था, इसलिए मुंबई के साथ-साथ पूरे भारत में यह बहुत आम घटना थी। लेकिन इन पटाखों के शोर के बीच हमलावरों ने जीशान सिद्दीकी के दफ्तर से बाहर निकल रहे बाबा सिद्दीकी पर हमला कर दिया। जानकारी के मुताबिक, हमले के कुछ देर बाद तक किसी को समझ नहीं आया कि बाबा सिद्दीकी पर हमला हुआ है।

Baba Siddiqui vs Lawrence Bishnoi
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बाबा सिद्दीकी पर हमला होने की बात सबसे पहले उनके ड्राइवर को पता चली। उसे सबसे पहले एहसास हुआ कि कार के शीशे पर गोली लगने से पता चलता है कि हमला हुआ है। हालांकि, हमलावरों ने भीड़ का फायदा उठाया और ड्राइवर के बचाव या कार को सुरक्षित जगह पर ले जाने से पहले ही बाबा सिद्दीकी पर तीन गोलियां दाग दीं।

क्या कर रही थी सिक्योरिटी?

सीआईएसएफ अधिकारियों को आम तौर पर वाई श्रेणी की सुरक्षा दी जाती है। हालांकि, सीआईएसएफ ने हमले के दौरान बाबा सिद्दीकी के सुरक्षा कर्मचारियों की हरकतों के बारे में पूछताछ का अभी तक जवाब नहीं दिया है। मुंबई पुलिस भी पूरे मामले की जांच कर रही है। उम्मीद है कि मुंबई पुलिस रविवार रात तक सुरक्षा समस्या पर अपना आधिकारिक रुख सार्वजनिक कर देगी।

Baba Siddiqui Y category security
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वाई श्रेणी की सुरक्षा कैसे मिलती है?

मंत्रियों की सुरक्षा वाई श्रेणी की सुरक्षा (How to get Y category security) जैसी नहीं होती। इसके लिए सरकार को पहले आवेदन करना होता है। उसके बाद सरकार द्वारा ख़तरे का आकलन करने के लिए ख़ुफ़िया सेवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। ख़तरे की पहचान होते ही सुरक्षा प्रदान की जाती है। वाई श्रेणी में ग्यारह लोग सुरक्षाकर्मी के तौर पर काम करते हैं। दो पीएसओ (निजी सुरक्षा गार्ड) भी होते हैं। इस श्रेणी में कोई कमांडो नहीं होता। ये सुरक्षा उपाय देश के उन गणमान्य लोगों और सांसदों को दिए जाते हैं जिनकी जान को ख़तरा हो।

विपक्ष के सवाल

शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने एक्स पर पोस्ट कर इसे सरकार की गंभीर लापरवाही बताया है। उन्होंने कहा है कि इस हत्या के बाद ऐसा लग रहा है कि मुंबई में एक बार फिर 80 का दशक लौट आया है, जहां गैंगवार एक कड़वी सच्चाई हुआ करती थी। उन्होंने लगातार कई हत्याओं का जिक्र करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था में इतनी गंभीर लापरवाही लंबे समय से नहीं देखी गई थी।

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Baba Siddiqui: बिहार में जन्मे सिद्दीकी का अंडरवर्ल्ड कनेक्शन! जानिए बांद्रा से MLA और फिर मंत्री बनने तक का सफर

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Baba Siddiqui's underworld connection
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NCP (अजीत गुट) के नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री बाबा सिद्दीकी (NCP leader Baba Siddiqui) की हत्या कर दी गई। शनिवार रात करीब 9:15 बजे मुंबई में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। बाबा सिद्दीकी की हत्या (Baba Siddiqui Murder) बात करें तो लॉरेंस बिश्नोई गैंग (Lawrence Bishnoi Gang) ने इसकी जिम्मेदारी ली है। मुंबई की राजनीति में अपनी प्रसिद्ध भागीदारी के अलावा सिद्दीकी ने अपने सामाजिक और धर्मार्थ कार्यों के लिए भी लोकप्रियता हासिल की है। लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी के बाद उनकी इफ्तार पार्टी में सलमान खान और शाहरुख खान (Salman Khan and Shahrukh Khan) के फिर से शामिल होने से वे कई मौकों पर लोगों की नजरों में आए और उनके कार्यक्रम की अहमियत बढ़ गई। राजनीति से इतर भी इस क्षेत्र में उनका दबदबा था। अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद ने भी उन्हें धमकियां भेजी थीं। बाबा सिद्दीकी के जन्म से लेकर बिहार में विधायक बनने तक के सफर के बारे में जानें।

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बाबा सिद्दीकी बिहार कनेक्शन – Baba Siddique Connection

बाबा सिद्दीकी का जन्म अब्दुल रहीम और रजिया सिद्दीकी के घर पटना, बिहार में हुआ था। बाबा अपने पिता की घड़ियों की मरम्मत में मदद करते थे। इसके बाद वे मुंबई चले गए। मुंबई के सेंट ऐनी हाई स्कूल में 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एमएमके कॉलेज मुंबई से डिग्री हासिल की। ​​बाबा की पत्नी का नाम शाहजिम सिद्दीकी है। वे दो बच्चों के माता-पिता हैं। जीशान सिद्दीकी कांग्रेस के विधायक (Congress MLA Zeeshan Siddiqui) हैं और बेटी अर्शिया सिद्दीकी डॉक्टर हैं।

Baba Siddiqui's family
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 स्टूडेंट पॉलिटिक्स  से MLA का सफर तय किया

बाबा सिद्दीकी ने अपने करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी। वे 1977 से 1980 तक कांग्रेस की छात्र शाखा NSUI से जुड़े रहे। 1982 में वे बांद्रा यूथ कांग्रेस के महासचिव बने। 1988 में वे मुंबई यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1993 में वे BMC पार्षद चुने गए। बाबा पहली बार 1999 में कांग्रेस के टिकट पर बांद्रा पश्चिम सीट से विधायक चुने गए। इसके बाद वे 2014 तक लगातार तीन बार विधायक रहे। 2004 से 2008 तक बाबा ने राज्य के श्रम और खाद्य मंत्री का पद भी संभाला। फिर भी 2014 में वे निर्वाचित नहीं हुए। उसी साल उन्हें मुंबई क्षेत्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

इसी साल उन्हें मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया और 2019 में उन्हें महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया। फरवरी 2024 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और अजित पवार की एनसीपी में शामिल हो गए। वे महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के मुंबई डिवीजन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

दाऊद और बाबा सिद्दीकी के बीच लड़ाई- Fight between Dawood-Baba Siddiqui

बाबा सिद्दीकी को बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के बीच ब्रिज भी कहा जाता रहा है। इसके अलावा, उन पर दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी से संबंध रखने का आरोप है। सामना की एक स्टोरी में दावा किया गया है कि बाबा सिद्दीकी और दाऊद के निजी सहयोगी अहमद लंगड़ा मुंबई में एक ज़मीन के टुकड़े को लेकर झगड़ रहे थे। इसके बाद छोटा शकील ने बाबा को इस स्थिति से दूर रहने की धमकी दी।

Fight between Dawood-Baba Siddiqui
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बाबा ने इस बारे में मुंबई पुलिस को बताया। इसके बाद अहमद को मकोका के तहत हिरासत में ले लिया गया। दाऊद ने कथित तौर पर बाबा को फ़ोन पर धमकाते हुए कहा था- रामगोपाल वर्मा से बोलकर तुम्हारी फिल्म बनवा दूंगा, एक था MLA।

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Salman-Shah Rukh का पैचअप कराने वाले बाबा सिद्दीकी की हुई हत्या, बिश्नोई गैंग ने ली जिम्मेदारी

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Baba Siddiqui vs Lawrence Bishnoi
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बॉलीवुड में इस समय शोक की लहर है। हर साल ईद के मौके पर बड़ी इफ्तिहार पार्टी करने वाले सीनियर एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी (NCP leader Baba Siddiqui Murder) की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। उनकी हत्या मुंबई के बांद्रा ईस्ट में हुई, जिससे पूरे शहर में सनसनी फैल गई। बाबा, उनके बेटे और विधायक जीशान सिद्दीकी (zeeshan siddiqui) के दफ्तर के बाहर थे, तभी शूटरों ने उन पर फायरिंग कर दी। बाबा सिद्दीकी को इलाज के लिए लीलावती अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। बाबा सिद्दीकी की हत्या के तार गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई से जुड़ रहे हैं। इस बीच लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने भी बाबा सिद्दीकी की हत्या की जिम्मेदारी ले ली है।

बाबा सिद्दीकी की मौत के बाद सलमान गहरे सदमे में हैं, क्योंकि बाबा ने ही शाहरुख खान और सलमान खान के बीच सालों पुरानी लड़ाई को खत्म कर दोनों में सुलह कराई थी। हालांकि, बाबा सिद्दीकी की सलमान से गहरी दोस्ती को भी उनकी मौत का कारण बताया जा रहा है।

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सलमान-शाहरुख खान पैचअप- Salman-Shahrukh Khan Patch Up

साल 2008 में कैटरीना कैफ की बर्थडे पार्टी के दौरान शाहरुख खान और सलमान खान के बीच झगड़ा (Fight Between Salman-Shahrukh Khan)हो गया था। दोनों के बीच तीखी बहस हुई थी। इसके बाद शाहरुख और सलमान खान ने 5 साल तक एक-दूसरे से बात नहीं की। फिर साल 2013 में बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी (Baba Siddiqui’s Iftar Party) में दोनों की दोस्ती हो गई। रिपोर्ट्स की मानें तो बाबा ने पार्टी में शाहरुख खान को सलमान के पिता सलीम खान (Salman’s Father Salim Khan) के बगल में बैठाया था, ताकि दोनों का झगड़ा खत्म हो सके।

Baba Siddiqui patched up Salman Shahrukh
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इस पार्टी में हुआ ये था कि सलमान के आने से पहले शाहरुख सलीम खान से बात कर रहे थे। तभी सलमान आते हैं और शाहरुख को गले लगा लेते हैं। इस तरह दोनों के बीच लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी खत्म हो जाती है और इस तरह से झगड़े को सुलझाने में बाबा सिद्दीकी का अहम योगदान रहा।

क्या सलमान से दोस्ती सिद्दीकी को भारी पड़ी?

दशहरा के दौरान सड़क पर सिद्दीकी की हत्या से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। सवाल ये है कि क्या बाबा सिद्दीकी को सलमान खान से करीबी रिश्ता रखने की कीमत चुकानी पड़ी? दरअसल, लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने भी बाबा सिद्दीकी की हत्या की जिम्मेदारी ले ली है। सूत्रों के मुताबिक, लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने कथित सोशल मीडिया पोस्ट में कहा है कि जो भी सलमान की मदद करेगा, उसे अपना हिसाब चुकाना होगा।

Baba Siddiqui vs Lawrence Bishnoi
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सिद्दीकी को गोली मारने वाले दोनों संदिग्ध बिश्नोई गिरोह के थे

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, सिद्दीकी को गोली मारने के आरोप में हिरासत में लिए गए दोनों संदिग्धों ने बिश्नोई गैंग (Bishnoi Gang) के सदस्य होने का दावा किया है। इनमें से एक हरियाणा का गुरमेल सिंह नाम का बंदूकधारी है। दूसरा शूटर धर्मराज कश्यप यूपी का रहने वाला है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, हिरासत में लिए गए दोनों बंदूकधारियों ने कथित तौर पर कहा है कि वे लॉरेंस बिश्नोई गैंग के सदस्य हैं। वे एक-दो महीने पहले बाबा सिद्दीकी के घर की टोह लेने आए थे।

‘जो सलमान का दोस्त, वह लॉरेंस का दुश्मन’

दरअसल, पिछले साल न्यूज़18 इंडिया को दिए इंटरव्यू में लॉरेंस बिश्नोई के करीबी रोहित गोदारा ने कहा था कि सलमान खान के दोस्त सभी हमारे दुश्मन हैं। वहीं सलमान खान और बांद्रा ईस्ट के पूर्व विधायक बाबा सिद्दीकी की दोस्ती जगजाहिर है। इस गिरोह को लॉरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) का भाई अनमोल चलाता है, जो अमेरिका में है। बिश्नोई फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद है। सलमान के घर फायरिंग के पीछे भी अनमोल की पहचान मास्टरमाइंड के तौर पर सामने आई है। पुलिस अभी भी मामले की जांच कर रहे हैं और उनकी रिपोर्ट अभी भी लंबित है।

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जब करण जौहर खत्म करना चाहते थे. अनुष्का शर्मा का करियर

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Anushka And Karan johar
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बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. अनुष्का शर्मा ने अपने करियर में कई सुपरहिट फिल्में दी है. उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत फिल्म बैंड बाजा बारात से की थी..करियर की शुरुआत से ही उन्होंने अपनी एक्टिंग से लोगों का दिल जीता है. एक वक्त में आकर तो वह मेकर्स की पहली पसंद ही बन गई थी. लेकिन क्या आप जानते है कि फिल्म डायरेक्टर करण जौहर उनका करियर ख़त्म करना चाहते थे. अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में बताते है उस वजह के बारे में बताते है.

खूब वायरल हुआ था वीडियो

वैसे तो आप सभी जानते है कि फिल्म डायरेक्टर करण जौहर ने इंडस्ट्री में कई स्टारकिड को लॉन्च किया है. उन पर कई बार नेपोटिज्म के आरोप लग चुके हैं. बहुत से लोग उन पर आरोप लगाते हैं कि वह फिल्मी सितारों के बच्चों को अपनी फिल्मों में कास्ट करते हैं. वही पिछले दिनों सोशल मीडिया पर करण जौहर का एक विडियो काफी वायरल हो रहा था. जिसमें करण इस बात का खुलासा करते नजर आ रहे थे, कि वह अनुष्का का करियर खत्म करना चाहते थे. क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि अनुष्का शर्मा आदित्य चोपड़ा की फिल्म रब ने बना दी जोड़ी में काम करें. गौरतलब है कि इस फिल्म में अनुष्का और शाहरुख की जोड़ी काफी पसंद की गई थी.

दरअसल, इस फिल्म में करण किसी और एक्ट्रेस को कास्ट करना चाहते थे. क्योंकि जब आदित्य चोपड़ा ने मुझे उनकी तस्वीर दिखाई, तो मैं ऐसा था, ‘नहीं, नहीं, पागल है क्या, तुम उसे साइन कर रहे हो, तुम पागल हो! आपको इस अनुष्का शर्मा को साइन करने की कोई जरूरत नहीं है’. इसलिए मैं अपनी मर्जी से रब ने बना दी जोड़ी नहीं देख रहा था. लेकिन जब मैंने बैंड बाजा बारात देखी, तो मैंने अनुष्का को फोन किया और मुझे लगा कि मुझे उनसे माफी मांगनी चाहिए और तारीफ करनी चाहिए. माफी क्योंकि मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई कि मैं ऐसा गजब का टैलेंट इंडस्ट्री में आने से रोक रहा था.

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कैसा रहा अनुष्का का फ़िल्मी करियर

अगर अनुष्का शर्मा के फ़िल्मी करियर की बात करे तो एक्ट्रेस ने अपने 16 साल के करियर में 19 फिल्मों में काम किया, जिनमें से 13 फिल्में हिट रहीं. इनमें साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म संजू और ‘पीके’ थी. उनकी इस फिल्म ने दुनियाभर में 616 करोड़ की कमाई की थी. वही साल 2017 में भारतीय क्रिकेट टीम के स्टार क्रिकेटर विराट कोहली से शादी करने के बाद अनुष्का के एक्टिंग करियर में ब्रेक लगा. वो बीते 6 साल से एक्टिंग से दूर हैं. हालांकि, इसके बावजूद अनुष्का की सोशल मीडिया फैन फॉलोइंग कोई फर्क नहीं पड़ा

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