Sikhs in the partition of India : हमारे देश की आजादी और बटवारें में पंजाब, खासकर सिखों के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी. भारत और पाकिस्तान के बटवारें का आधार हिन्दू और मुसलमान थे. मतलब जिन प्रांतों में मुस्लिम आबादी ज्यादा है उन्हें पाकिस्तान में शामिल होना था पर जिन प्रांतों में हिन्दू अधिक है उन्हें भारत में शामिल होना था. बटवारें से पहले पंजाब में 2.84 करोड़ की जनसंख्या में 1.62 करोड़ मुस्लिम थे यानी आधी से अधिक आबादी मुस्लिम थी. जिस हिसाब से पंजाब को पाकिस्तान का हिस्सा बनना था. लेकिन मुगलों ने सिख गुरुओं का बहुत उत्पीड़न किया है, हमेशा से ही मुगलों और सिखों के बीच मनमुटाव रहे है. उसी कारण सिख मुसलमानों के देश नहीं जाना चाहते थे. आईए जानते है सिखों की भारत के विभाजन के समय क्या स्थिति थी?
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भारत के बंटवारे में सिखों की स्थिति
भारत के विभाजन में बटवारा भले ही हिन्दू और मुसलमानों के बीच लगता हो. लेकिन वहां इनसे अलग एक और पक्ष भी था वो है सिख समुदाय. उस समय सिख समुदाय के सामने ऐसी स्थिति खड़ी हो गई थी, जिसकी वजह से पंजाब के सिखों को बहुत कुछ सहना पड़ा था. दरअसल देश के विभाजन का आधार हिन्दू और मुस्लिम था. जिन प्रान्तों में मुस्लिमों की आबादी अधिक थी उन्हें पाकिस्तान में शामिल किया जाना था और जिन प्रान्तों में हिन्दू आबादी अधिक थी, उन्हें भारत में शामिल होना था.
विभाजन के समय पंजाब में मुसलमानों की संख्या हिन्दुओ से अधिक थी. जिस हिसाब से उन्हें पाकिस्तान में शामिल होना था लेकिन इतिहास में मुगलों ने सिखों के गुरुओं पर बहुत अत्याचार किया है जिसके चलते सिख मुस्लिम देश में शामिल होने के पक्ष में नहीं थे. ऐसा कह सकते है कि एक बड़े विभाजन के बीच कई छोटे-छोटे विभाजन भी शामिल थे. उस समय भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदाय ही नहीं बल्कि सिख भी थे जो इस बटवारे में जूझ रहे थे. बता दे जब भारत की आजादी अपने अंतिम चरण में थी उस समय केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि सिख भी संविधान का बहिष्कार कर रहे थे.
सिखों ने किया था संविधान सभा का बहिष्कार?
दूसरे विश्व युद्ध में कांग्रेस ने ब्रिटेन की सेना की सहायता करने से इंकार कर दिया था, वहीं दूसरी तरफ जापान की सेना बहुत तेजी से आगे बढ़ रही थी, जिसके चलते ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल उनकी सेना की सहायता करने के बदले,भारत को आजादी देने के लिए तैयार हो गए थे. जिसके लिए हमारे देश के पास खुद का संविधान होना जरूरी था. आजादी के साथ-साथ देख के विभाजन की भी बात चलने लगी.
कैबिनेट मिशन ने संविधान बनाने के लिए सभा का गठन किया, जिसमे 389 सदस्यों की संविधान सभा का सदस्य निर्धारित करने थे. इनमें से पंजाब प्रान्त के कुल 28 प्रतिनिधि होने थे जिनमें 16 मुस्लिम, 8 सामान्य और 4 सिख प्रतिनिधि होने की बात कही गई. सिखों ने इस प्रस्ताव के लिए आपनी असहमति जाहिर करते हुए कहा कि ‘सिखों को लगता है कि उन्हें वाजिब प्रतिनिधित्व नहीं मिला है’. और सिखों ने संविधान सभा का विरोध जताया. साथ ही विभाजन के समय सिखों के प्रतिनिधि कम होने की वजह से उनके हाथो में विरोध करने की शक्ति नहीं थी.
(जबकि भारत में उस समय ऐसा करना ही सबसे वाजिब था क्योंकि उस समय भारत में मुसलामानों की जनसंख्या 9 करोड़ और सिखों की केवल 55 लाख थी, वो भी देश के अलग-अलग कोनों में थे. ऐसे में सिखों को खुद ही एकमत होना होगा.)
जिसके बाद 10 जून 1946 को सिख पंथिक कमेटी ने कहा ‘कैबिनेट मिशन योजना देश की स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि दासता का विस्तार करेगी.’ साथ ही सिखों ने कहा कि ‘हम इस प्रस्ताव की निंदा करते है और अस्वीकार करती है. सिखों को ऐसा कोई संविधान मंज़ूर न होगा, जो उनकी मांगों के साथ न्याय न करता हो और जिससे सिखों की सहमति न हो’.